सत्यखबर,उत्तर प्रदेश
देश में सबसे लंबे समय तक शासन चलाने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस 2014 से काफी मुश्किलों के दौर से गुजर रही है। 2014 में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत के बाद 2019 में फिर से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल यह है कि पार्टी सिर्फ चुनाव ही नहीं हा रही है बल्कि अपने नेताओं के भरोसे को भी खो रही है। एक-एक करके पार्टी के कई वरिष्ठ नेता कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। कांग्रेस पार्टी की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2014 के बाद से सबसे ज्यादा नेताओं ने कांग्रेस का ही साथ छोड़ा है। वर्ष 2014 में केंद्र में एनडीए की सरकार आने के बाद कांग्रेस के सबसे ज्यादा नेताओं ने पार्टी को छोड़ा है। पिछले सात साल में कांग्रेस के सबसे ज्यादा चुनावी उम्मीदवारों, सांसदों और विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ा है। गुरुवार को एक रिपोर्ट सामने आई जिसमे कहा गया है कि कांग्रेस पार्टी ने कुल 222 चुनावी उम्मीदवारों का साथ गंवाया है। 2014 से 2021 के बीच कांग्रेस के 177 सांसद और विधायकों ने पार्टी को छोड़ दिया है।
असोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने इन उम्मीदवारों के चुनावी नामांकन पत्र का विश्लेषण करके इन आंकड़ों को जारी किया है।कांग्रेस के बाद भाजपा ने पिछले साल सालों में अपने सबसे अधिक नेताओं को खोया है। भाजपा ने कुल 111 नेताओं का साथ गंवाया है, जिसमे 33 सांसद और विधायक भी हैं। हालांकि सबसे ज्यादा लाभ भाजपा को ही इस काल में हुआ है। पार्टी के साथ 243 उम्मीदवार जुड़े हैं जिसमे 173 सांसद और विधायक हैं। कांग्रेस के 399 नेताओं ने पार्टी छोड़ दूसरे दल का हाथ थाम लिया। जबकि 115 उम्मीदवार जिसमे 61 सांसद और विधायक शामिल हैं वो कांग्रेस के साथ जुड़े। नेशनल इलेक्शन वाच और एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2014 के बाद से 1133 उम्मीदवार, 500 सांसद और विधायकों ने अपने दल बदले हैं।
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कांग्रेस के बाद मायावती की बहुजन समाज पा्टी का नंबर आता है जिसने अपने सबसे अधिक उम्मीदवारों, विधायक और सांसदों को चुनाव काल में खोया है। रिपोर्ट के अनुसार 153 उम्मीदवारों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया, जिसमे पार्टी के 20 सांसद और विधायक शामिल हैं। इन लोगों ने बसपा छोड़ दूसरे दल का हाथ थाम लिया। जबकि 65 उम्मीदवार और 12 विधायक वह सांसद दूसरी पार्टी के बसपा के साथ जुड़े। रिपोर्ट के अनुसार समाजवादी पार्टी ने अपने 60 उम्मीदवारों को खोया जबकि 18 विधायक और सांसद ने दूसरी पार्टी का हाथ थाम लिया। वहीं 29 उम्मीदवार और 13 विधायक व सांसद पार्टी के साथ जुड़े।
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