सत्य खबर, धर्म व्रत कथा। भाई दूज पर्व भाईयों के प्रति बहनों की श्रद्धा और विश्वास का पर्व है. इस पर्व को हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन ही मनाया जाता है. लेकिन इसे मनाने की वजह क्या है इस बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है. भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है. इसे यम द्वितीया भी कहते हैं।
इसी वजह से इस पर्व पर यम देव की पूजा की जाती है. मान्यता के अनुसार जो यम देव की उपासना करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है. हिंदुओं के बाकी त्योहारों कि तरह यह त्योहार भी परंपराओं से जुड़ा हुआ है. इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर और उपहार देकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं।
बदले में भाई अपनी बहन कि रक्षा का वचन देता है. इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रूप से शुभ होता है. मिथिला नगरी में इस पर्व को आज भी यमद्वितीया के नाम से जाना जाता है. इस दिन चावलों को पीसकर एक लेप भाईयों के दोनों हाथों में लगाया जाता है. साथ ही कुछ स्थानों में भाई के हाथों में सिंदूर लगाने की भी परंपरा देखी जाती है।
इन चीजों के बिना अधूरी भाई दूज की थाली
भाई के हाथों में सिंदूर और चावल का लेप लगाने के बाद उस पर पान के पांच पत्ते, सुपारी और चांदी का सिक्का रखा जाता है. उस पर जल उड़ेलते हुए भाई की दीर्घायु के लिये मंत्र बोला जाता है. भाई अपनी बहन को उपहार देते है. भाई की आरती उतारते वक्त बहन की थाली में सिंदूर, फूल, चावल के दाने, पान, सुपानी, नारियल, फूल माला और मिठाई होना जरूरी है।
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