सत्य खबर,नई दिल्ली
अक्सर अपने देखा होगा की कोई महिला किसी पुरूष के साथ लिव इन रिलेशन में रहती है तथा बाद में किसी बात को लेकर अलग हो जाती है तो ज्यादातर मामलों में पुरूष पर रेप का केस दर्ज करा देती है। जबकि अब भविष्य में ऐसा होने की संभावना कम हो गई है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक महिला, जो कभी एक पुरुष के साथ रिश्ते में थी और मर्जी से उसके साथ रह रही थी, वह उनके रिश्ते में खटास आने के बाद रेप का मामला दर्ज नहीं करा सकती है । शीर्ष अदालत ने सुनवाई के बाद रेप के आरोपी युवक को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया । न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि युवती ने यह स्वीकार किया है कि वह चार साल की अवधि के लिए युवक के साथ रिश्ते में थी ।
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इसके अलावा, यह भी पाया गया कि शिकायतकर्ता के वकील द्वारा यह स्वीकार किया गया था कि जब रिश्ता शुरू हुआ, तब उसकी उम्र 21 वर्ष थी । पीठ ने कहा कि युवती मर्जी से युवक के साथ रह रही थी और संबंध रखती थी । इस तथ्य के मद्देनजर, अब अगर दोनों का रिश्ता नहीं चल रहा है, तो यह धारा 376 (2) (एन) आईपीसी (दुष्कर्म) के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता । पीठ राजस्थान हाईकोर्ट के मई के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी । जिसमें धारा 376 (2) (एन), 377 और 506 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए युवक की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी । अंसार मोहम्मद ने राजस्थान उच्च न्यायालय के 19 मई के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का का रुख किया था । सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद को अग्रिम जमानत दी । मोहम्मद पर युवती ने दुष्कर्म, अप्राकृतिक अपराध और आपराधिक धमकी का आरोप लगाया गया था । पीठ ने कहा कि नतीजतन, वे वर्तमान अपील को स्वीकार करते हैं और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हैं । युवक को सक्षम प्राधिकारी की संतुष्टि के लिए जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है ।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि वर्तमान आदेश में टिप्पणियां केवल जमानत आवेदन पर निर्णय लेने के उद्देश्य से हैं । पीठ ने कहा कि वर्तमान आदेश में की गई टिप्पणियों से जांच प्रभावित नहीं होगी । इससे पहले हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह एक स्वीकृत स्थिति है कि युवक ने युवती से शादी करने का वादा करके उसके साथ संबंध बनाए थे और उनके रिश्ते के बाद एक लड़की का जन्म हुआ था । अदालत ने कहा था कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज की जाती है ।
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