सत्यखबर हरियाणा (अशोक छाबड़ा) – हरियाणा के विश्वविद्यालयों और सरकारी कालेजों में अनुबंध पर लगे असिस्टेंट प्रोफेसर स्कूलों में अनुबंध पर लगे जेबीटी गेस्ट टीचर से भी कम वेतन लेने को मजबूर हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों और पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के एक आदेश के अनुसार जिस पद पर कर्मचारी काम कर रहा है, वह उसका प्रारंभिक वेतन लेने का पात्र है। इसके अनुसार असिस्टेंट प्रोफेसर को 57 हजार 700 रुपये मासिक वेतन मिलना चाहिए, लेकिन यूनिवॢसटी में अनुबंध पर लगे असिस्टेंट प्रोफेसर और सरकारी कॉलेजों में लगे एक्सटेंशन लेक्चरर को 25 हजार रुपये मासिक वेतन में ही संतोष करना पड़ रहा है।
सरकारी स्कूलों में अनुबंध पर लगे गेस्ट लेक्चरर को करीब 40 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों से 32 हजार 700 रुपये और स्कूलों के गेस्ट लेक्चरर से 15 हजार रुपये कम वेतन मिल रहा है। उन्हें यह वेतन भी दो से तीन महीने तक नहीं मिल पाता है। विश्वविद्यालयों में लगे असिस्टेंट प्रोफेसर की शैक्षणिक योग्यता यूजीसी नेट व पीएचडी है। इन सभी का चयन यूजीसी द्वारा निर्धारित सभी पात्रता शर्तों एवं चयन प्रक्रिया के मापदंडों तथा गठित चयन समिति द्वारा साक्षात्कार के आधार पर किया गया था।
प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में करीब एक हजार और इनसे संबंधित महाविद्यालयों में दो हजार अनुबंधित/अस्थायी शिक्षक जो कि अलग-अलग पदनाम जैसे असिस्टेंट प्रोफेसर (अनुबंध/अस्थायी), गेस्ट फैकल्टी/रिसोर्स पर्सन/एक्सटेंशन लेक्चरर के पदों पर लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के अध्यक्ष सुभाष लांबा ने इस भेदभावपूर्ण आॢथक शोषण की आलोचना की है। सरकार ने पिछले कार्यकाल में हुए आंदोलन में असिस्टेंट प्रोफेसर व एक्सटेंशन लेक्चरर को 57 हजार 700 रुपये मासिक वेतन देने की मांग को स्वीकार कर लिया था।
कुछ यूनिवर्सिटी में इसे लागू भी कर दिया गया, लेकिन कई विश्वविद्यालयों चौधरी देवीलाल यूनिवर्सिटी सिरसा, भगत फूल सिंह महिला विश्विद्यालय खानपुर कलां सोनीपत,चौधरी बंसीलाल यूनिवर्सिटी भिवानी एवं कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी कुरुक्षेत्र के शिक्षक इससे वंचित हैैं। सुभाष लांबा ने बताया कि पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एक निर्णय के अनुसार सभी कर्मचारियों को न्यूनतम पे स्केल दिया जाना है, चाहे उनकी नियुक्ति वर्क लोड पर की गई हो या स्वीकृत रिक्त पदों के विरुद्ध की गई हो, लेकिन बावजूद इसके यह विश्वविद्यालय उक्त वेतन देने में आनाकानी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में यह आंदोलन के लिए उचित समय नहीं है,लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार इन शिक्षकों की वाजिब मांग की भी अनदेखी करने लगे।
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