सत्य खबर, चण्डीगढ़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार देश में आने के बाद स्थापित परिवारों एवं राजघरानों की राजनीति धीरे धीरे फीकी पड़ती जा रही है। चाहे दिल्ली में गांधी परिवार हो या यूपी में यादव परिवार और पंजाब में बादल परिवार। राजनीति की इस बदलती धारा से अहीरवाल की राजनीति भी अछूती नहीं रही। 2014 में कांग्रेस के लगातार गिरते ग्राफ को भांपकर अहीरवाल के राव इन्द्रजीत सिंह ने हवा का रुख देखते हुए बीजेपी का दामन थामा। 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राव को अच्छा भाव दिया तथा इस क्षेत्र की अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में उनके समर्थकों का न केवल टिकटों में दबदबा रहा बल्कि उन्हें मंत्रीमंडल में भी स्थान मिला। राव को भी केंद्र सरकार बनते ही राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार मिल गया। राव ने अपने चिर परिचित अंदाज में राजनीति जारी रखी परंतु भारतीय जनता पार्टी की अदृश्य आंखों ने उनकी हर गतिविधि को भली-भांति देखा और परखा। 2019 आते-आते राव को यह महसूस होने लगा कि भारतीय जनता पार्टी में उनको अपने स्वभाव के मुताबिक राजनीति करने का अवसर नहीं मिलेगा एवं एक समय पर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को अलविदा कहने की योजना पर काम करना भी शुरू कर दिया था। परन्तु बालाकोट के घटनाक्रम के बाद बीजेपी के आसमान छूते ग्राफ ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। यद्यपि 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने टिकटों में फिर वही मनमानी की और पार्टी ने रास्ता भी दिया परंतु राव ने संतुष्ट होकर ही नहीं दिया। सरकार और संगठन की स्थापित परंपराओं की बार-बार अनदेखी करना राव इन्द्रजीत सिंह की आदत सी बन गई और अपनी इसी शैली में राजनीति करते रहे ।
परंतु वह एक बात में गच्चा अवश्य खा गए। उन्होंने जनता की नब्ज को नहीं पहचाना। उनके अहंकार ने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 साल पूरे कर चुका था और भारतीय प्रजातंत्र अब वयस्क हो गया था। यहां का वोटर एवं जनता अपने नेता का आकलन करना सीख गया था।
2019 में मंत्रिमंडल के गठन के समय राव इन्द्रजीत सिंह ने अहीरवाल को पहला बड़ा झटका दिया जिसमें उन्होंने एक विधायक की योग्यता एवं गुणवत्ता को पीछे धकेल कर अंतिम क्षणों में अपने चहेते को मंत्री बनवाया था। यह घटना न केवल समस्त अहीरवाल में चर्चा का विषय रही अपितु क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग ने इसके प्रभाव का आकलन करना भी प्रारंभ कर दिया। यह पहला अवसर था जब अहीर समाज के किसी व्यक्ति को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं मिला और इस समाज को केवल बुढ़ापा पेंशन तक सीमित करके रख दिया। राव समर्थक इस वीटो पावर का अहंकार के साथ बखान करते रहे परंतु उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि इस घटना ने लोगों को कितना आहत कर दिया था। राव को इसके बाद लगातार राजनीतिक नुकसान होने लगा। उनके चहेते मंत्री अपने मंत्री पद से क्षेत्र के लोगों पर प्रभाव नहीं छोड़ पाए और क्षेत्र के लोगों के बीच लगातार आलोचना का शिकार न केवल राव समर्थक एक मंत्री बना बल्कि परोक्ष रूप से राव को क्षेत्र के नुकसान के लिए जिम्मेवार ठहराया जाने लगा।राव का यह विरोध किसी जाति तक सीमित न रहकर बढता चला गया।
परन्तु राजा को प्रजा की भावना का अहसास ही नहीं हुआ और वह अपनी ही शैली में फैसले लेते रहे। हाल ही में संपन्न नगर पालिका के चुनाव में राव के प्रति क्षेत्र के लोगों का नजरिया स्पष्ट रूप से सामने आया। नारनौल और बावल की नगर पालिकाओं में राव ने अपने चहेतों को अपने प्रभाव से न केवल टिकट दिलवाया अपितु पार्टी को नारनौल का टिकट आखरी समय में बदलने के लिए उन्होंने अपनी कथित वीटो पावर का एक बार फिर इस्तेमाल किया। परंतु वोटर इस बार राव को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए तैयार बैठा था और इस फैसले के बहुआयामी प्रभाव हुए। जहां शहर की जनता में इसकी व्यापक प्रतिक्रिया हुई तथा राव की आलोचना गली और मोहल्ले में होने लगी वहीं पिछले ढाई साल से राव के विरुद्ध सुलगता हुआ विरोध आक्रोश में बदलते देर नहीं लगी। चुनाव प्रारंभ होते ही संकेत स्पष्ट थे कि इस बार राव का वीटो राव समर्थकों के लिए मुसीबत बनने वाला था। भरसक प्रयासों के बाद भी जनता ने राव के फैसले को स्वीकार करने से मना कर दिया। परिणामस्वरूप नगर परिषद नारनौल के चुनाव में राव समर्थक उम्मीदवार संगीता यादव चौदह हजार से अधिक वोटों से परास्त हुई। इसके साथ ही बावल नगर पालिका में राव समर्थक को अपनी जमानत गंवानी पड़ी।
यह दोनों ही घटनाएं अपने आप में अनेक संदेश छुपाए बैठी हैं । जहां राव समर्थक उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा वहीं राव के खिसकते जनाधार का संदेश भी यह चुनाव दे गए। इन चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रजातंत्र में अहंकार की राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं है और न ही व्यक्तिगत अहंकार समाज के फैसले को बदल सकता है। समाज हर घटना को बड़ी सूक्ष्मता से देखता है और अपना मन बनाता है। यह सत्य है कि समाज जल्दबाजी में फैसला नहीं करता अपितु समय का इंतजार करता है। परन्तु जब समय आता है तो फैसला स्पष्ट देता है और यही फैसले राजनीति के इतिहास को बदलते हैं। यदि अब भी राव अथवा पार्टी अहीरवाल की जनता को किसी व्यक्ति विशेष की जायदाद समझते हैं तो यह उनकी भूल है।
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