सत्यखबर, हरियाणा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के बाद हरियाणा में भी किसानों और सरकार के बीच दूरियां कम होंगी और एक साल से बना गतिरोध भी खत्म हो जाएगा। हालांकि प्रदेश सरकार अब भी दावा कर रही है कि निश्चित तौर पर ये कानून किसानों के हित में थे। लेकिन चूंकि कुछ किसान नेता इसे रद्द करवाने की जिद्द पर अड़े थे और जनता भी किसानों के आंदोलन से लगातार परेशान हो रही थी। इसलिए तमाम पहलूओं और कठिनाइयों को देखते हुए प्रधानमंत्री ने कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी है। मगर अब प्रदेश सरकार के समक्ष किसानों का खोया विश्वास जीतने और अपने वायदे पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती है, क्योंकि पिछले एक साल में इस किसान आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा टकराव और गतिरोध की स्थिति हरियाणा में ही बनी रही। हालांकि यह आंदोलन देशव्यापी था, लेकिन इस आंदोलन में सबसे ज्यादा भागीदारी पंजाब और हरियाणा के किसानों की रही। किसान संगठनों के साथ-साथ हरियाणा में खाप पंचायतों समेत कई मजदूर व अन्य संगठनों ने भी आंदोलन को अपना खुला समर्थन दे रखा था। सूबे की विपक्षी पार्टियां भी किसानों को समर्थन देते हुए प्रदेश सरकार को निशाना बनाती रही।
सरकार को किसानों ने लगातार घेरा
इस दौरान हालात यह रहे कि किसानों ने हरियाणा में मुख्यमंत्री समेत सरकार के मंत्रियों, भाजपा के सांसदों और विधायकों के सार्वजनिक कार्यक्रमों तक का खुला विरोध किया और ये विरोध कई बार जबरदस्त टकराव में भी बदला। मगर अब तमाम गतिरोध खत्म कर सरकार को फिर से किसानों को साधना होगा, क्योंकि हरियाणा की राजनीति में किसानों का हमेशा से बड़ा दखल रहता है। हालांकि हरियाणा में अभी विधानसभा चुनावों को करीब तीन साल शेष हैं, लेकिन उससे पहले प्रदेश सरकार को किसानों की नाराजगी दूर करते हुए उनसे किए वादे को पूरा करना होगा।
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कृषि आय बढ़ाने का विजन तैयार कर मजबूत करनी होगी सियासी जमीन
किसान आंदोलन के दौरान भी प्रदेश सरकार हरसंभव प्रयास से सूबे के किसानों को यह समझाने में जुटी रही कि कृषि कानून उनके हित में हैं और ये उनकी आय बढ़ाने करने में बड़े मददगार साबित होंगे। केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 के अंत तक किसानों की आय दोगुना करने का वादा किया हुआ है और इसी वादे को साकार करने का दावा हरियाणा सरकार ने भी कर रखा है। चूंकि अब कृषि कानूनों के वापस होने की घोषणा हो चुकी है, तो ऐसी परिस्थिति में अब प्रदेश सरकार को यह विजन तैयार करना होगा कि अगले एक साल के भीतर किसानों की आय दोगुनी कर कैसे अपना वादा पूरा किया जाए। इसका गणित भी किसानों को इस तरह से समझाना होगा, जिससे वाकई किसान सरकार पर भरोसा करें और प्रदेश सरकार इसके बूते अगले विधानसभा चुनाव के लिए अपनी सियासी जमीन को मजबूत करे।
अभी भी किसानों को दी जा रही हवा
कृषि कानून वापस होने की घोषणा के बाद आंदोलन खत्म होगा या नहीं, इस पर अभी फैसला होना बाकी है। लेकिन अभी भी किसानों को हवा दी जा रही है। स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर भाजपा नेताओं के उन तमाम बयानों को सार्वजनिक किया है, जो किसान आंदोलन के दौरान कहीं न कहीं किसान नेताओं पर तंज कसने वाले थे। उन्होंने लिखा है कि ‘सब याद रखा जाएगा…जीत ऐतिहासिक है लेकिन लड़ाई अभी अधूरी है, अहंकार, चालाकी और तिकड़म अभी खत्म नहीं हुआ है, इसलिए संघर्ष जारी रखना है।’ इसी तरह भाकियू के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी कहते हैं कि अगला फैसला संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में लिया जाएगा। भाकियू नेता राकेश टिकैत कहते हैं कि सिर्फ घोषणा पर किसान घर वापस नहीं जाएगा, सरकार को किसानों से बात करनी पड़ेगी, हम लड़ेंगे और जीतेंगे, एमएसपी पर गारंटी कानून बनाने पर आंदोलन जारी रहेगा। जबकि नरेश टिकैत ने ट्वीट कर कहा कि किसान बारूद के ढेर पर बैठे हैं। आंदोलन से ही जिंदा रहेंगे। यह जिम्मेदारी सबको निभानी होगी।
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