सत्यखबर, नरवाना (सन्दीप श्योरान) :-
भारतीय संस्कृति नैतिक एवं मर्यादा का आधार स्तंभ रही है, जिसके बलबूते पर यह राष्ट्र जगतगुरु भी रहा है। परन्तु आज गिरते संस्कारों व मानवीय मूल्यों के कारण भारतीयता की मूल विचारधारा का ह्रास हो रहा है। यह कहना है केएम राजकीय महाविद्यालय के एसोशिएट प्रो. जयपाल देसवाल का। देसवाल ने कहा कि हमारी चलती फिरती पाठशाला दादा- दादी, नाना-नानी, काका-काकी, ताऊ-ताई, भाई-भाभी, बड़े-बुजुर्ग मौजिज आदमी हुआ करते थे। जो खेल-खेल में ही बालकों को संस्कारों से ओतप्रोत किया करते थे, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में संयुक्त परिवारों के अभाव व एकल परिवार के प्रभाव से बच्चों में संस्कार हीनता बढ़ती जा रही है। परिणाम स्वरूप बहन, बेटियां, बच्चे इत्यादि दरिंदों के शिकार हो रहे हैं। यह सब पश्चिमी सभ्यता के खाओ-पियो और मौज करो के दुष्प्रभाव से हो रहा है। यह सभ्यता वासना को बढ़ा करके शरीर में विष उत्पन्न करती है। जिससे कामायनी मनुष्य की सोचने की शक्ति समाप्त हो जाती है। समाज में अश्लील वातावरण, गीत और सामाजिक कार्यक्रमों में छोटे से बड़ों तक नाचने और थिरकने की व्यवस्था सही नहीं है।
जयपाल ने कहा कि मेरा उद्देश्य प्रत्येक नागरिक के उज्ज्वल चरित्र के निर्माण के साथ महान व्यक्तित्व का विकास करना है। इस व्यक्तित्व का विकास बुराइयों को छोड़ कर के ही हो सकता है। साथ ही मौजूदा परिस्थितियों में अच्छाइयों को आलिंगन करना अनिवार्य भी है। हमने सभी कोणों और विचारों से समस्याओं का अवलोकन करना चाहिए। उनका अवलोकन करने के बाद मूल कारण पर जाकर उसका समाधान खोजना चाहिए। हमारा समाज तप, त्याग, पुरुषार्थ, संयम, ईमानदारी, सत्य कर्तव्यनिष्ठा इत्यादि से चलता है। हमारा धर्म- कर्म और न्याय भी यही कहता है कि सारा जगत एक ईश्वर की संतान है। इसलिए हम सब इसकी व्यापक गरिमा को समझने का प्रयास करें, जो आज की आवश्यकता भी है।
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