सत्य खबर
कपालमोचन तीर्थ में गुरुद्वारा पहली व दसवीं पातशाही ऐतिहासिक हैं। गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने यहां रहते हुए गुरु नानक देव महाराज का प्रकाश उत्सव मनाया। गुरु नानक देव के कपालमोचन में आगमन को याद रखते हुए सिख संगतों को हुकम दिया था कि सारी सिख संगत हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा में कपालमोचन पहुंच कर गुरु नानक देव महाराज का प्रकाश दिहाड़ा श्रद्धा व सत्कार से मनाएं। तब से हर साल लाखों की संख्या में सिख श्रद्धालु कपालमोचन पहुंच कर गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व श्रद्धा के साथ मनाते हैं। कोरोना के चलते पहली बार यहां पर मेले का आयोजन नहीं किया जा रहा है।
परमात्मा एक होने का दिया संदेश
प्रबंधक नरेंद्र सिंह ने बताया कि समाज का कल्याण करते हुए गुरु नानक देव हरिद्वार से सहारनपुर होते हुए संवत 1584 विक्रमी को कार्तिक पूर्णिमा को कपालमोचन में पहुंचे। यहां गुरु नानक देव ने संगत को संदेश दिया था कि परमात्मा एक है। उसकी पूजा अर्चना किसी भी रूप में की जा सकती है।
प्रबंधक नरेंद्र सिंह ने बताया कि गुरु ने सूतक व पातक परंपरा का खंडन करते हुए कहा था कि यह दोनों मानव के शरीर में लोभ, लालच, गुस्सा,झूठ के रूप में विद्यमान है। सूतक एक भ्रम है जिसको परमात्मा की उपासना से ही खत्म किया जा सकता है। जन्म व मृत्यु परमात्मा की लीला है।
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गुरु गोबिंद सिंह ने किया था आराम
नरेंद्र सिंह ने बताया कि दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह महाराज 1742 में पौंटासाहिब जाते हुए कुछ दिनों के लिए कपालमोचन रुके। संवत 1746 में भंगानी के युद्ध के पश्चात कपालमोचन में रुककर 52 दिन आराम किया। विश्राम के दौरान गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने देखा की आसपास के क्षेत्र के लोग इन पवित्र सरोवरों की बेअदबी कर रहे हैं। उन्होंने अपने सिंहों को हुकम दिया कि जो आसपास के लोग सरोवरों की बेअदबी कर रहे हैं, उनकी पगड़ियां उतार लाओ। गुरु साहब का आदेश मानकर सिंहों ने सरोवरों की बेअदबी करने वालों की पगड़ियां उतार दी। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने सरोवरों की पवित्रता बहाल करवाई। इस पवित्र स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने भंगानी के युद्ध में वीरता दिखाने वाले योद्धाओं को सिरोपा भेंट कर सम्मानित करने की परंपरा चलाई। ऐसा भी कहा जाता है कि सिरोपा भेंट करते समय दस्तार कम पड़ने पर गुरु साहिब ने सरोवरों की बेअदबी करने वाले की उतारी हुई पगड़ियों को नया करने के लिए कार्य किया।
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