प्रीतम , सतनाली मंडी , सत्यखबर
सरकार ने लॉक डाउन के दौरान तंम्बाकु उत्पादकों पर रोक लगाई है, तभी से इन उत्पाकों के रेट तीन से चार गुना बढ़ गए है। ऐसे में लोगों को एक बार फिर से हुक्के व चिलम की याद आ गई है। लॉक डाउन में लोगों को काम धंधे भी पूरी तरह से बंद हो गए है। महंगाई के इस दौर में लोग भारी भरकम खर्च से बचने के लिए गरीब मजदूर ,किसान एक बार फिर से हुक्के व चिलम का इस्ते मान करने लग गए है। तम्बाकु का सेवन करने वाले लोग जेब में चिलम व घरों पर हुक्का पीते देखे जा सकते है……
आपकों बता दे कि आजादी के बाद से ही हरियाणा की संस्कृति में हुक्के को सामाजिक भाईचारे का प्रतीक माना गया है। गांवों में बड़े बुजुर्ग व्यक्ति कुछ लोगों के साथ बैठकर समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने के लिए अपने विचार रखते है। कुछ लोग आज भी हरियाणवी संस्कृति की पहचान बनाए रखने तथा भाईचारे को कायम रखने के लिए लगातार प्रयास में जुटे हुए हैं। हुक्के को जब लोग एक साथ बैठकर पीते हैं तो उससे आपसी भाईचारा बढ़ता है। हरियाणवी संस्कृति की पहचान बनाए रखने तथा भाईचारा कायम रखने के लिए इस हुक्के का निर्माण किया गया है।
लॉक डाउन में इन दिनों यहां चिलम और हुक्के की भी खूब बिक्री होती रही है। सतनाली कस्बे के मजदूरी का काम करने वाले गजेन्द्र सिंह उर्फ गज्जे का कहना है कि प्राचीन काल से ही ‘हुक्का’ हरियाणवी संस्कृति में अपना गौरवमयी तथा गरिमापूर्ण इतिहास संजाये है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘हुक्के’ ग्रामीण जीवन से गहरा संबंध रखता था। वर्तमान में चिलम व हुक्के का चलन काफी पीछे छूट गया था। उन्होंने बताया कि पहले हुक्के मिट्टी व लकड़ी के बनाये जाते थे, मगर आधुनिकता के युग में ये पीतल और लोहे के रूप में उपलब्ध है……
उन्होंने बताया कि लॉक डाउन में जब से बीडी, तम्बाकु पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया है। सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से ही दुकानदार 5 रूपये में मिलने वाली खैनी,गुटखा 20 से 30 रूपये में तो 10 रूपये में मिलने वाली बीडी 25 से 30 में बेच रहे है। उन्होंने बताया कि गरीब मजदूर लोगों को काम मिलना बंद हो गया है। वह घर का खर्च चलाने में भी भारी परेशानी हो रही है। उपर से महंगाई ने आमजन की कमर तोड़़कर रख दी है। किसान अपने खेतों में तंम्बाकु की फसल बुआई करता है। तंम्बाकु सस्ता मिलने के कारण उन्हें हुक्के व चिलम का सहारा लेना पड़ता है……..
सतनाली के प्रताप सिंह, राजेन्द्र सिंह,किरसन समेत अनेकों किसानों ने बताया कि हुक्के का देसी तंबाकू बड़ी मेहनत से तैयार किया जाता है। तंबाकू के पौधे को अच्छी तरह से सुखाकर के कुटते समय उसमें गुड़ डाला जाता है, जिससे उसमें निकोटीन का बहुत ही प्रभाव कम हो जाता है।जब ग्रामीण हुक्का पीते है तो उसमें थोड़ा तंबाकू डालने पर ज्यादा देर चलता है। उन्होंने बताया कि ग्रामीणों का दिनचर्या प्रात: हुक्के से ही आरंभ होती है, जो सायं देर तक चलती है।
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