सत्यखबर,चण्डीगढ़
पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल ने बड़ा दांव चल दिया है। अकाली दल ने चुनाव के लिए बीएसपी के साथ गठबंधन का एलान किया है। 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में बीएसपी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। माना जा रहा है कि यह क़दम पंजाब में दलित समुदाय के वोटों को अपने पाले में लाने के लिए उठाया गया है। भारत में दलितों की सबसे ज़्यादा आबादी पंजाब में है और यह 32 फ़ीसदी के आसपास है। पंजाब में फरवरी, 2022 में विधानसभा के चुनाव होने हैं।अकाली दल का बीजेपी के साथ गठबंधन टूट चुका है, ऐसे में उसे एक नए सहयोगी दल की ज़रूरत थी जिसकी वह तलाश भी कर रहा था।
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पंजाब में इस बार दलित मुख्यमंत्री या दलित उप मुख्यमंत्री का मुद्दा बेहद गर्म है। बीजेपी की ओर से यह एलान किए जाने के बाद कि वह अगर पंजाब की सत्ता में आई तो दलित समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी, बाक़ी दलों ने भी इस समुदाय को रिझाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने भी इस साल अप्रैल में वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो डिप्टी सीएम का पद दलित समुदाय के खाते में जाएगा। बादल ने यह भी कहा था कि दलित समुदाय की अधिकता वाले दोआबा इलाक़े में एक विश्वविद्यालय भी बनाया जाएगा। दोआबा में जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला के इलाक़े आते हैं। इस इलाके में विधानसभा की 23 सीटें पड़ती हैं। पंजाब कांग्रेस के भीतर जो खटपट चल रही है, उसमें भी एक दलित डिप्टी सीएम बनाने की चर्चा जोरों पर है। दलित वोटों को लेकर चल रही सियासत को देखते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी एलान किया है कि उनकी सरकार सभी योजनाओं का 30 फ़ीसदी पैसा दलित समुदाय की बेहतरी के लिए ख़र्च करेगी। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा तूल पकड़ गया है क्योंकि दलित समुदाय का कहना है कि पंजाब की सबसे बड़ी आबादी होने के बाद भी आज तक उनके समुदाय के किसी शख़्स को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौक़ा नहीं मिला है। पंजाब में अधिकतर मुख्यमंत्री सिख जाट बिरादरी से ही हुए हैं जिनकी राज्य में तादाद 20 से 22 फ़ीसदी है। अकाली दल और बीएसपी ने 1996 के लोकसभा चुनाव में भी गठबंधन किया था और तब पंजाब में इस गठबंधन को जोरदार सफलता मिली थी। राज्य की 13 में से 11 लोकसभा सीटें इस गठबंधन ने झटकी थीं। अकाली दल को 8 और बीएसपी को 3 सीटें मिली थीं। लेकिन उसके बाद अकाली दल ने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया था और तब से यह गठबंधन 2020 तक चला था। सुखबीर बादल को उम्मीद है कि कांग्रेस में चल रहे घमासान के कारण उसका सत्ता में वापसी करना मुश्किल है। ऐसे में उन्होंने बहुत सोच-समझकर ही बीएसपी के साथ जाने का एलान किया है। बीजेपी की हालत पंजाब में पस्त है और किसान आंदोलन के कारण उसके नेताओं को जगह-जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इस साल फरवरी में हुए नगर निगम चुनाव में बेहद ख़राब प्रदर्शन के कारण भी सुखबीर बादल काफी सतर्क हैं और वह चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को 8 में से 7 नगर निगमों में जीत मिली थी और लेकिन सिद्धू के कैप्टन के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने के कारण कांग्रेस की राह मुश्किल हो गई है। आम आदमी पार्टी पंजाब में इस बार भी काफ़ी जोर लगा रही है इसलिए यह तय है कि पंजाब का घमासान बेहद दिलचस्प होगा
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