हरियाणा

पूर्व एच् सी एस अधिकारी प्रेमचंद गंगले से जानिए उनके कश्मीर में बिताए ख़ौफ़नाक ड्यूटी के दिनों की कहानी

सत्यखबर हरियाणा (ब्यूरो रिपोर्ट)

जम्मू कश्मीर मसले को लेकर सरकार का एक प्रशंसनीय निर्णय सामने आया है। मेरी राय के अनुसार यदि इस मामले को सर्वदलीय बैठक में लाया जाता तो इस पर सहमति नहीं बन सकती थी। क्योंकि जिन दलों/नेताओं को इस व्यवस्था से सीधा लाभ मिल रहा था वो कभी भी इसके लिए राजी नहीं होते,सरकार सच में बधाई की पात्र है मुझे कश्मीर में 1996 के चुनाव में काम करने का अवसर मिला था। जब जम्मू कश्मीर के कर्मचरियों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था तो उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के उर्दू जानने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों को कश्मीर भेजा गया था कुरुक्षेत्र जिला से भी बीस कर्मचारियों का दल इस कार्य के लिए भेजा जाना था। परन्तु जब इस दल के लोगों को दिल्ली ले जाने के लिए बस में बिठाया गया तो दल का नेतृत्व करना वाला अधिकारी ही गायब मिला। उस समय मेरी नियुक्ति बतौर नायब तहसीलदार पेहवा में थी तथा मैं अन्य कर्मचरियों के साथ लोकसभा की मतगणना के कार्य में व्यस्त था तभी जिला निर्वाचन अधिकारी एवं उपायुक्त मेरे पास आकर बोले की आपका एक साथी बिना किसी सूचना के बस से गायब है और बस में सवार कर्मी दल को तुरंत दिल्ली रवाना करना है।

मैने कहा कि सर मुझे अवसर देंगे तो में इस कार्य के लिए त्यार हूं उपायुक्त महोदय मेरी तरफ देख कर बोले की यह तभी संभव होगा। यदि गृह मंत्रालय भारत सरकार इसकी अनुमति देगा मैने सुझाव दिया कि आप राज्य सरकार को सूचित कर दे की कुरुक्षेत्र जिला के दल का नेतृत्व प्रेम चन्द करेगा। यदि सरकार को स्वीकार होगा तो वो मुझे दल के साथ जाने की अनुमति भारत सरकार से दिलवा देंगे वरना में इस दल को दिल्ली छोड़ कर वापिस आ जाऊंगा। आनन फानन में मैं घर गया घरवाली को बताया तो उनको लगा की मैं मजाक कर रहा हूं मैने कहा कि समय नहीं है जल्दी से कुछ वस्त्र मेरी अटैची में रखो सब लोग इंतजार कर रहे हैं। तब तक उपायुक्त महोदय ने एक पत्र भी लिखवा दिया जिसे लेकर में बस में चढ़ कर दिल्ली पहुंच गया। दिल्ली में पहले से ही हजारों कर्मचारी जो विभिन्न राज्यों से आए थे हमारा इंतजार कर रहे थे उस दिन हमें दिल्ली में ही रखा गया तथा अगले दिन सेना के माल वाहक जहाज़ से हमें अवनतिपुर के वायु सेना के ठिकाने पर पहुंचा दिया गया।

वहां से सड़क मार्ग से हमें अनंतनाग के एक सरकारी विद्यालय में पहुंचा कर केंद्रीय सुरक्षा बल के हवाले कर दिया गया। अब शुरू हुई असली कहानी जैसे ही कश्मीर के कर्मचारी (जो मजबूरी में काम कर रहे थे) हमें मिले उनका पहला प्रश्न था कि आप लोग इंडिया से आए हो मैने कहा जी हम इंडिया से आए हैं क्या आप इंडियन नहीं हो तो उनका उत्तर था कि हम तो कश्मीरी है। तब लगा कि 1947 में कश्मीर का भारत में विलय होने के बावजूद कश्मीरी भारतीय नहीं बन पाए इस विषय पर जब हम वाद विवाद करने लगे तो वहां तैनात अर्ध सैनिक बलों ने मुझे समझाया कि इन लोगो से ज्यादा बात करने की जरूरत नहीं है। परन्तु मुझे मेरे सवाल का उत्तर नहीं मिला था कि कश्मीरी भारतीय हैं या नहीं। बातचीत करते जब काफी समय हो चुका तो मैने सुरक्षा कर्मी दल के इंचार्ज को बताया कि मुझे घर फोन करना है तो उसने कहा कि फोन करना संभव नहीं है। क्योंकि अलगाववादियों को यह पता नहीं चलना चाहिए कि आप की पहचान क्या है और आप कहां से आए हो यदि उनको ये पता चल गया कि आप अधिकारी हो तो ये आपको कोई भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

उस दिन तो वायरलेस संदेश से हमारे गांव स्थित पुलिस स्टेशन के माध्यम से मेरे घर वालों को सूचित कर दिया कि मैं व मेरे अन्य साथी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिए गए है। उसके बाद स्पष्ट निर्देश जारी कर दिए गए कि आप लोग कोई फोन नहीं करोगे यदि आपने ऐसा किया तो आप सुरक्षित नहीं रह सकते। खैर नसीहत को नजरंदाज करके एक रोज में फोन करने एक एस टी डी बूथ पर पहुंच गया। फोन करके जैसे ही में वापिस आया तो सुरक्षा कर्मियों ने मुझे घेर लिया व बाहर जाने का कारण पूछने लगे मैने बताया की घर फोन करना था इस लिए गया था। उन्होंने मुझे लगभग डांटते हुए कहा कि तुम खुद तो मरोगे ही घर वालों को भी मरवा दोगे आगे से ऐसा नहीं करना तब पहली बार एहसास हुआ था कि हमारे सैन्यबल किन परिस्थितियों में कश्मीर में काम करते हैं। अब शायद परिस्थितयों में कुछ अंतर आए इस आशा के साथ एक बार फिर से कल के ऐतिहासिक निर्णय के लिए सरकार को पुन: हार्दिक बधाई।

लिए सरकार को पुन: हार्दिक बधाई।

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