सत्यखबर, नरवाना, (सन्दीप श्योरान) :-
प्राचीन संस्कृति के सभी कार्य विज्ञान आधारित हुआ करते थे। केएम कालेज में रसायन विज्ञान के सहायक प्रोफेसर जयपाल आर्य ने तर्क देते हुए कहा कि देश में उत्तम प्रकार के भोजन की शुद्ध, सात्विक एवं शाकाहार व्यवस्था रही हैं। ये भोजन हमारे पूर्वज पीतल, कांसे और तांबे के बर्तनों में बनाते थे। शोध में पाया गया है कि बैक्टीरिया व विषाणु-जीवाणु पीतल, कांसे तथा तांबा के बर्तनों में नष्ट हो जाते हैं। कोरोना वायरस भी मात्र बीस सेकंड से दो घंटे में खत्म हो जाता है। साथ ही यह भी सिद्ध किया गया कि मिट्टी के बर्तनों में जो भोजन बनता है, वह उत्तम दर्जे का होता है, क्योंकि मिट्टी के बर्तनों में मिनरल अपने आप ही दूध, पानी एवं भोजन में घुलते रहते हैं। जबकि एल्युमिनियम, स्टील, प्लास्टिक एवं शीशे के बर्तनों में लंबे समय तक विषाणु जीवित रहते हैं।
इसके अतिरिक्त सिंथेटिक या कृत्रिम कपड़ों की बजाए सूती, रेजा एवं खद्दर के कपड़े सभी मौसमों में शरीर के अनुकूल होते हैं। इनमें कोई भी बैक्टीरिया या जीवाणु पैदा नहीं होते, जबकि सिंथेटिक कपड़े, प्लास्टिक, पॉलीथिन, शीशा, स्टील इत्यादि पर कोरोनावायरस 14 से 16 घंटे तक जीवित रह सकता हैं। इससे प्रमाणित होता है कि हमारी सभी गतिविधियों में सोना, चांदी, तांबा, पीतल, कांस्य, जस्ता-टिन के मिश्रित रूप तैयार बर्तन बहुत ही जीवन उपयोगी रहे हैं। अब इस संकट में भी हम सभी का कर्तव्य है कि सावधानी बरतें, घरों के अंदर रहें। क्योंकि कोरोना वायरस से बचाव का उपाय अपनी सुरक्षा है।
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