सत्य ख़बर, दिल्ली
कुलदीप बिश्नोई के साथ कर दिया बीजेपी ने खेल। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि आए दिन खबर आती है। कि कुलदीप बिश्नोई अदा कदा कभी भी बीजेपी में शामिल हो सकते है। लेकिन वो दिन नही आता जब कुलदीप बीजेपी में शामिल हो। राज्यसभा चुनाव हुए एक महीने हो चुके है। बीजेपी ने कुलदीप की वजह से अपना सांसद भी बनवा लिया है। लेकिन कुलदीप के बीजेपी में आने की तस्वीर अभी भी साफ नही हुई है। राज्यसभा चुनाव में जिस दिन कुलदीप बिश्नोई ने बीजेपी समर्थित राज्यसभा उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा को क्रॉस वोटिंग की थी। उसी दिन ये साफ हो गया था कि कुलदीप बिश्नोई अब कांग्रेस के साथ नही रहने वाले है। हुआ भी यही बिश्नोई के बगावत के बाद कांग्रेस ने उन्हें सभी महत्वपूर्ण पदों से हटा दिया। जहा कुलदीप ने राज्यसभा चुनाव में अंतरात्मा की आवाज सुनते हुए अलग राह चुनने की ओर इशारा किया तो कांग्रेस ने भी उन्हें सभी पदों से हटाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया। दरअसल राजनीति तराजू की तरह होती है।
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नेता की हैसियत उसके नाम से नही बल्कि जनशक्ति से मापी जाती है। अक्सर नेता ये भूल कर बैठते है कि वो बहुत बड़े नेता है लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और होती है। कुलदीप बिश्नोई के साथ भी कुछ ऐसा ही है। जबभी कुलदीप ने जनता की न सुनकर अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी है धोखा खाया है। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हजका में गठबंधन था। बीजेपी कुलदीप को 25 सीट देना चाहती थी लेकिन कुलदीप 35 पर अड़े रहे । नतीजा ये हुआ कि कुलदीप ने अंतरात्मा की आवाज सुनी और गठबंधन टूट गया । बीजेपी ने तो 2014 के विधानसभा चुनाव में पूर्णबहुमत की सरकार बना ली लेकिन कुलदीप को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने का खमियाजा भुगतना पड़ा जहा चुनाव में उन्हें 2 सीट के भी लाले पड़ गए। इसके लिए भी उन्होंने खुद को दोष न देते हुए बीजेपी को ही दोष दिया और एक बार फिर अलग राह चुनी और कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि कुलदीप अपने को जितना बड़ा नेता समझते है उतना बड़ा प्रदर्शन उनका कभी नही रहा। भजनलाल की छोड़ दे तो कुलदीप अपने बल पर कभी भी दो सीट नही जीत पाए है। 2019 के चुनाव में तो वो अपनी ही सीट बचा पाए। ऐसे प्रदर्शन पर वो चाहते थे कि कांग्रेस उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दे । वो भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नजरअंदाज करके जिसके साथ 20 – 25 विधायक हमेशा साथ खड़े होते है। अब जब कि कांग्रेस ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है तो वो बीजेपी की ओर देख रहे है। कुलदीप और बीजेपी के बीच कई दौर की बात हो चुकी है । दोनो ही अपने राजनीतिक नफे नुकसान का आकलन कर रहे है। लेकिन अभी तक कोई फैसला नही हुआ है इसमें भी लगता है कुलदीप की अंतरात्मा बीच मे आ गई है। दरअसल बीजेपी सूत्रों की माने तो बीजेपी ने कुलदीप को फिर से चुनाव लड़ने को कहा है।
वो चुनाव जीतते है तो सरकार में मंत्री भी बनाए जा सकते है। लेकिन कुलदीप की बीजेपी से और भी मांग है वो चाहते है कि बीजेपी उन्हें अगले चुनावो में एक सांसदी सीट के साथ चार से पांच विधानसभा सीट देने का वादा करे। बस पेंच यही फसा है। बीजेपी को लगता है कि जिस आदमपुर की सीट पर कुलदीप चुनाव लड़कर जीतते आये है वहाँ भी बीजेपी के बिना अगले चुनाव में उनका जितना मुश्किल है क्योंकि बीजेपी संगठन के नेता सोनाली सिंह फोगाट और कर्ण सिंह रानोलिया जिस तरह से आदमपुर में मेहनत कर रहे है उससे तो अगली बार कुलदीप का ही जीतना मुश्किल जान पड़ता है। ऐसे में बीजेपी उन्हें आदमपुर विधानसभा सीट के अलावा 3 -4 सीट और कैसे दे दे। जबकि कुलदीप खेमे के वो सभी बड़े नेता जो कभी भजनलाल या कुलदीप बिश्नोई के साथ होते थे उन सभी को बीजेपी ने अपने साथ पहले ही मिला लिया है। कुलदीप बिश्नोई के रिश्तेदार दुड़ाराम खुद फतेहाबाद से बीजेपी के विधायक है। वही हांसी से विनोद भ्याना बीजेपी से मौजूदा समय मे विधायक है जो कभी कुलदीप के साथ हुआ करते थे। जिस हिसार बेल्ट में कुलदीप बीजेपी से सीटे मांग रहे है। पिछले चुनाव में उसी हिसार बेल्ट में बीजेपी का शानदार प्रदर्शन रहा है । ऐसे में बीजेपी उन्हें 3 से 4 विधानसभा की सीट क्यों देगी। अब फैसला कुलदीप को ही करना होगा कि वो सियासी हकीकत को समझकर फैसला लेते है या फिर एक बार फिर अपने अंतरात्मा की आवाज सुनते है।
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