सत्यखबर
एलियंस की मौजूदगी पर वैज्ञानिक अब सहमत होने लगे हैं, लिहाजा धरती से लेकर मंगल ग्रह तक एलियंस के निशान खोजे जा रहे हैं। वैज्ञानिक पता लगाना चाह रहे हैं कि क्या मंगल वो ग्रह हो सकता है, जहां से एलियंस धरती पर आ रहे हों। इसके साथ ही वैज्ञानिक इस खोज के जरिए ये भी पता लगाना चाहते हैं, कि क्या मंगल ग्रह पर इंसानी जिंदगी मुमकिन है। इस खोज के लिए अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा.लगातार नये नये एक्सपेरिमेंट कर रहा है और इसी कड़ी में नासा के रोबोट ने मंगल ग्रह पर पहाड़ों पर खुदाई भी की है।अमेरिकन अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पर्सर्वरेंस रोवर लगातार मंगल ग्रह पर नमूनों को जुटा रहा है और उन नमूनों को लेकर नासा के वैज्ञानिक रिसर्च करते हैं। इसी कड़ी में नासा अपने रोवर के जरिए मंगल के सतह पर छेद कर वहां के पत्थरों के नमूने इकट्ठे करने की कोशिश कर रहा था, जिसमें वैज्ञानिकों के हाथ बड़ी नाकामयाबी लगी है। रिपोर्ट के मुताबिक नासा का रोबोट रॉक नमूने एकत्र करने के अपने प्रारंभिक प्रयास में विफल रहा है। नासा के रोबोट ने अपने हिसाब से पत्थर के नमूने ही भेजा था, लेकिन वो नमूना पत्थर का नहीं था। नासा का मानना है कि जिस जगह पर पत्थर में ड्रिल किया जा रहा है, वहां पर अलौकित शक्तियों का निवास रहा होगा। वैज्ञानिकों के इस विश्वास के पीछे कई वजहें हैं।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने शुक्रवार को रोवर के बगल में एक छोटे से टीले के केंद्र में एक छेद के साथ कुछ तस्वीरों को प्रकाशित किया था, जिसमें बताया गया है कि रोबोट द्वारा पहली बार लाल ग्रह की पहली बार खुदाई की गई है, लेकिन लेकिन रोवर द्वारा एक नमूना एकत्र करने और इसे एक ट्यूब में सील करने के पहले प्रयास के बाद पृथ्वी पर भेजे गए डेटा से संकेत मिलता है, कि कोई चट्टान एकत्र नहीं हुई थी।पहली बार में हाथ लगी बड़ी नाकामयाबी को लेकर नासा ने कहा है कि हम आगे भी कोशिश जारी रखेंगे। नासा के विज्ञान मिशन निदेशालय के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस जुर्बुचेन ने एक बयान में कहा कि, “हालांकि यह ‘होल-इन-वन’ नहीं है, जिसकी हमें उम्मीद थी, नई जमीन में ड्रिल करने में हमेशा जोखिम होता है।
” उन्होंने कहा कि ”मुझे विश्वास है कि हमारे पास यह काम करने वाली सही टीम है, और हम भविष्य की सफलता सुनिश्चित करने के लिए एक समाधान की तरफ प्रयास करेंगे।” आपको बता दें कि ड्रिल होल एक नमूना कलेक्ट करने की प्रक्रिया का पहला चरण है, जिसमें प्राचीन माइक्रोबियल जीवन के संकेतों की तलाश करने के उद्देश्य से लगभग 11 दिन लगने की उम्मीद है, जो प्राचीन झील के आसपास या धरती के अंदर संरक्षित हो सकते हैं। जैसा पृथ्वी पर अकसर पुरातत्वविदों के हाथ प्राचीन मानव जीवन या प्राचीन जीवों के अवशेष मिलते रहते हैं।
नासा की टीम पहले प्रयास में जरूर नाकामयाब रही है, लेकिन वैज्ञानितों को पूरी उम्मीद है कि वो मंगल ग्रह के भू-विज्ञान को धीरे-धीरे समझ रहे हैं और आगे उन्हें काफी कुछ समझने की जरूरत है। आपको बता दें कि नासा के इस मिशन ने एक साल पहले अमेरिका के फ्लोरिडा से उड़ान भरी थी और ये रॉकेट, जो एक बड़े कार की तरह है, वो इस साल 18 फरवरी को मंगल ग्रह के जेज़ेरो क्रेटर में उतरी थी।
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जिसके बाद नासा का रोवर लगातार वहां से नमून नासा को भेज रहा है। जिसमें मंगल ग्रह की तस्वीरें और वीडियो शामिल होती हैं।नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल ग्रह पर मिले गड्ढे में 3.5 अरब साल पहले एक गहरी झील थी, और वहां जो स्थितियां मिली हैं, उससे पता चलता है कि मंगल ग्रह पर अलौकित शक्तियों का निवास होगा। ऐसी शक्तियां, जो इंसानों से काफी अलग और काफी शक्तिशाली रहे होंगे। हालांकि, नासा अभी तक किसी आखिरी नतीजे पर नहीं पहुंचा है, क्योंकि नासा का रोबोट मंगल ग्रह के उस जगह का नमूना लेने में पहली बार नाकामयाब रहा है। लेकिन, नासा का अब भी मानना है कि जो स्थितियां वहां पर हैं, वो अलौकिक शक्तियों के जीवन होने का समर्थन करती हैं। आपको बता दें कि नासा 2030 के दशक में लगभग 30 नमूनों को पृथ्वी पर वापस लाने के लिए एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसका विश्लेषण उन उपकरणों द्वारा किया जाएगा, जो वर्तमान में मंगल ग्रह पर लाए जा सकने वाले उपकरणों की तुलना में बहुत अधिक उन्नत हैं।
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