सत्यखबर
भारत की आन बान और शान कहने जाने वाले मिल्खा सिंह का 91 साल की उम्र में निधन हो गया. चंडीगढ़ पीजीआई में शुक्रवार देर रात मिल्खा सिंह ने अंतिम सांस ली. पिछले कुछ समय से फ्लाइंग सिख कोरोना से जूझ रहे थे. जिसके चलते कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद उन्हें पीजीआई के सामान्य आईसीयू में शिफ्ट किया गया था. करीब एक महीना कोरोना से जूझने के बाद देर रात मिल्खा सिंह की तबीयत बिगड़ गई. और वो देश को अलविदा कह गए
5 दिन पहले हुआ था पत्नी निर्मल कौर का निधन
13 जून रविवार को शाम 4 बजे मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर ने अंतिम सांस ली थी. जिसके बाद रविवार को चंडीगढ़ में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था. निर्मल कौर भी कोरोना की चपेट में आने के बाद इस दुनिया को अलविदा कह गई थी. जिसके 5 दिन बाद शुक्रवार को मिल्खा सिंह का भी निधन हो गया.
मिल्खा सिंह से ‘फ्लाइंग सिख’ बनने की कहानी
देश के बंटवारे के बाद 1960 में मिल्खा को पाकिस्तान की इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता में भाग लेने का न्योता मिला, लेकिन मिल्खा देश विभाजन के दर्द को अभी तक भूल नहीं पाए थे, विभाजन के वक्त मिला जख्म मानो अभी भी ताजा हो, यही कारण था कि वो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर वो पाकिस्तान गए. और पाकिस्तान के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिक को भी धूल चटा भारत की जीत का परचम लहराया. मिल्खा सिंह की इस जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ का नाम दिया था.
एक रुपये में ‘भाग मिल्खा भाग’ के लिए दी अपनी कहानी
अपनी बायोपिक ‘भाग मिल्खा भाग’ के लिए मिल्खा सिंह ने मात्र एक रुपये चार्ज किए थे. डायरेक्टर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने मिल्खा सिंह की इस फिल्म में उनके जीवन के संघर्ष की कहानी दिखाई. इस फिल्म के लिए राकेश ओम प्रकाश मेहरा मिल्खा सिंह को कुछ खास और कुछ ऐसा देना चाहते थे जो उन्हें हमेशा याद रहे. जिसके लिए उन्होंने उन्हें 1958 में छपा एक रुपये का नोट दिया. वो इस लिए क्योंकि 1958 में ही मिल्खा सिंह ने आजाद भारत के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स में पहला गोल्ड मेडल जीता था.
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1959 में मिला पद्मश्री का सम्मान
खेल में लगातार मिल रही शानदार सफलताओं के लिए साल 1959 में, मिल्खा सिंह को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जिसके बाद 1960 में हुए ओलंपिक खेलों में 400 मीटर की फाइनल दौड़ के लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है, इस दौड़ में मिल्खा सिंह ने चौथा स्थान हासिल किया था.
पत्नी निर्मल कौर का खेलों से नाता
मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर भी अपने पति की तरह स्पोर्ट्स पर्सन थी. निर्मल कौर भारतीय वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकी है. निर्मल कौर की शादी मिल्खा सिंह से रोम ओलंपिक के बाद 1962 हुई थी. कहा जाता है कि फ्लाइंग सिंह अपनी पत्नी को मेडल कहा करते थे. 1960 में हुए रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह को कोई मेडल नहीं मिला था. लेकिन इसके बाद मेडल के तौर पर उन्हें निर्मल कौर मिल गईं.
फ्लाइंग जट का भूख से आधा खाने का मंत्र
कई रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले मिल्खा सिंह 90 साल की उम्र में भी बेहद फिट थे. इस उम्र में भी उनका फिटनेस को लेकर जुनून कम नहीं हुआ था. उनका कहना था कि बदलाव फिटनेस से ही आएगा. मैं जो चल-फिर पा रहा हूं, वो सिर्फ फिजिकल फिटनेस की वजह से ही संभव है. कम खाओ, क्योंकि सारी बीमारी पेट से ही शुरू होती हैं. मेरी राय है कि चार रोटी की भूख है तो दो खाइए, जितना पेट खाली रहेगा आप उतने ठीक रहेंगे, साथ ही चाहे 10 मिनट के लिए ही सही पर खेल के मैदान में जाना बेहद जरूरी है.
जादुई जूतों को नीलाम कर दिखाई उदारता
साल 1960 की रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह जिन जूतों को पहनकर दौड़े थे, उन जूतों से उन्हें बेहद प्यार था. इसलिए उन्होंने उन जूतों को संभालकर अपनी अलमारी में रखा था. लेकिन दृष्टिहीन बच्चों की मदद के लिए मिल्खा लिंह ने उन जूतों को निलाम कर दिया. जिसके बाद मुंबई में उन जूतों की नीलामी की गई. जिसकी बोली 10 लाख रुपये से शुरू हुई और बॉलीवुड निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने उन जूतों को 24 लाख रुपये में खरीद लिया.
तुसाद म्यूजियम में आज भी जिंदा है उड़न सिख
मैडम तुसाद म्यूजियम जहां दुनियाभर की अनेकों बड़ी हस्तियों का पुतला बनाया गया है. वहां इस उड़न सिख को भी जगह मिली. तुसाद म्यूजियम में दुनियाभर की हस्तियों के साथ मिल्खा सिंह का भी मोम का पुतला लगाया गया है. जिसे बनाने के लिए बड़ी जदौजहद की गई. इस पुतले को बनाने के लिए छोटी से छोटी चीज पर भी बारीकी से गौर किया गया. जिसे देखकर मिल्खा सिंह ने कहा था कि मेरे जाने के बाद ये लोगों को मेरी याद दिलाएगा.
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