सत्यखबर, नरवाना (सन्दीप श्योरान) :-
मैं एक किसान हूं। मुझे खुश करने के लिए कभी-कभी अन्नदाता भी कह दिया जाता है, ऐसा अन्नदाता जो बेशक दूसरों का पेट भरता हो, लेकिन अनेकों बार मुझे भूखा रहना पड़ जाता है। खेत में की गई मेरी मेहनत के फल मिलने का कोई भरोसा नहीं। पता नहीं, कब कोई प्राकृतिक आपदा पकी-पकाई फसल को नष्ट कर जाए। मेरे आराम करने का भी कोई समय नहीं। क्योंकि सारा दिन खेत में काम करने के बाद मुझे पशुओं को भी सम्भालना पड़ता है। सर्दी, गर्मी मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती। सर्दी में मुझे खेतों में पानी देने के लिए जाना पड़ता है, तो गर्मियों में बिजाई के लिए जमीन जोतनी पड़ती है।
मेरी तरक्की भी मेरा साथ नहीं देती
चाहे किसी ने कोई बड़ी तरक्की हासिल कर ली हो, तो मेरी तरक्की भी मेरा साथ नहीं देती। अच्छी फसल हुई है फिर भी दाम सही मिलेंगे, यह किसी दूसरे के हाथ होता है। हां, मेरे लिए थोड़ी संतुष्टि की बात यह है कि मेरे पड़ोसी दूसरे किसानों को भी वही सहना पड़ता है, जिसकी मार में झेल रहा होता हूं। जीवनयापन के लिए मेरा कोई बजट नहीं होता, यह आढ़ती पर निर्भर करता है कि मेरी हैसियत के मुताबिक मुझे कितना भाव देता है। इंसान ही नहीं, इस धरती के जीव-जंतु भी मुझ पर निर्भर करते हैं जो मुझे काम करने के लिए हौंसला देते हैं। राजनीति से मैं कोसों दूर हूं, लेकिन देश-प्रदेश की राजनीति मेरे नाम पर चलती है। फिर चुनाव हैं तो क्या कहने! क्योंकि उस समय अन्नदाता के साथ-साथ मुख्य मतदाता का सेहरा मेरे माथे पर बांधा जाता है। हां, इन सब परेशानियों, चिंताओं तथा कठिनाइयों के बाद भी मैं मजबूत हूं, क्योंकि कुदरत ने मुझे ये सब सहने की शक्ति दी है।
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