सत्यखबर, नई दिल्ली,सतीश शर्मा
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के बीच लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। जिसकी वजह से तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के माथे पर चिंता की लकीरें आ गई हैं। माना जा रहा है कि इस तनाव का असर आने वाले दिनों में तेल की कीमतों पर भी पड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो भारत में फि र से पेट्रोल डीजल के दाम आसमान छूने लगेंगे। मेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन बढ़ाने को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है और संकट गहराता जा रहा है।
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पूरी दुनिया में साल 2014 के बाद से तेल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। पिछले वर्ष कोरोना वायरस महामारी की वजह से ओपेक देशों ने तेल की आपूर्ति में कटौती की थी। वर्तमान समय में अमेरिका में तेल की कीमतें तकरीबन 70 डॉलर प्रति बैरल की दर पर पहुंच गई हैं। यूएई लगातार तेल निर्यात के लिए बेहतर शर्तों की मांग कर रहा है और इस वजह से ही तनाव बढ़ता जा रहा है। माना जाता है कि ओपेक प्लस देशों की कमान सऊदी अरब और रूस के हाथ में है। सऊदी अरब और यूएई के बीच सार्वजनिक तौर पर किसी मुद्दे को लेकर मतभेद कम ही देखा गया है।
यूएई और सऊदी अरब के मतभेदों को दूर करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हो पाई और ओपेक प्लस देशों की बैठक बीच में ही खत्म करनी पड़ गई। अगली मीटिंग कब होगी, इस बारे में कोई भी फैसला नहीं लिया गया है। यानी अभी जिस स्तर पर उत्पादन हो रहा है वो आगे भी जारी रहेगा। विशेषज्ञों की मानें तो अगर यही हालात रहे, तो तेल की कीमतों में तेजी से इजाफा होगा और इसका असर पहले से ही कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। ठीक इसके उलट अगर ओपेक प्लस देशों ने तेल उत्पादन के लिए निर्धारित अपने कोटे को नजर अंदाज करने का कदम उठाया तो तेल की कीमतों का गिरना तय है। पिछले हफ्ते यूएई ने उत्पादन बढ़ाने के प्रस्ताव को इसलिए रोक दिया था क्योंकि वो अपने लिए बेहतर शर्तों की मांग कर रहा था। सऊदी अरब ने ओपेक में अगस्त से दिसंबर 2021 तक प्रति दिन दो मिलियन बैरल तेल का उत्पादन बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था लेकिन साथ ही बची हुई कटौती को साल 2022 के आखिर तक जारी रखने की बात भी कही गई थी।
पिछले साल जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी तो तेल की मांग में अचानक कमी आ गई थी। तब सऊदी अरब और रूस की अगुवाई वाले इस संगठन ने तेल से होने वाली कमाई बरकरार रखने के लिए उत्पादन में बड़ी कटौती की थी। ओपेक के 13 सदस्य देश और ओपेक प्लस में उनके 10 साथी देशों के समूह को इस रणनीति का फायदा हासिल हुआ और तेल की कीमतें 75 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक सुधर गई।
वहीं हालांकि आईएनजी बैंक के वॉरेन पैटरसन का कहना है कि दबाव केवल ओपेक प्लस देशों के समूह के भीतर से ही नहीं है बल्कि बड़े खरीदार देश भी बाजार में नरमी चाहते हैं क्योंकि कई देश अभी कोविड लॉकडाउन से उबर ही रहे हैं। ऑयल एक्सपर्ट स्टीफन ब्रेनॉक का कहना है कि भारत इसका उल्लेखनीय उदाहरण है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश बीते महीनों में कोरोना संकट से बुरी तरह से प्रभावित रहा है। भारत ने ओपेक प्लस देशों से तेल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाने की अपील की थी। लेकिन ओपेक और उसके साथी देश कच्चे तेल के उत्पादन पर लागू नियंत्रण हटाने की भारत की अपील को अनसुना कर चुके हैं।
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