सत्यखबर, जींद , अशोक छाबड़ा
जींद। हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला और गृह मंत्री अनिल विज के बीच चल रही तनातनी से शराब घोटाले की जांच प्रभावित हो सकती है। गृह मंत्री विज कई बार कह चुके कि पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत के बिना न तो शराब घोटाला हो सकता है और न ही शराब की तस्करी की जा सकती है। इसके विपरीत आबकारी एवं कराधान मंत्री के नाते डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की राय है कि जब्त की गई शराब चूंकि पुलिस के माल गोदाम में रखी जाती है, इसलिए घोटाले या तस्करी की मुख्य सूत्रधार पुलिस ही है। इसकी तह में पहुंचने के लिए गृह मंत्री अनिल विज ने स्पेशल इंक्वायरी टीम (एसईटी) को स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (एसआइटी) का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया शुरू की तो एडवोकेट जनरल ने अडंगा डाल दिया। शराब घोटाले की जांच कर रही एसईटी को यह कहते हुए एसआइटी की पावर नहीं दी गई कि ऐसा कोई प्रावधान भारतीय दंड संहिता में नहीं है, लेकिन एसईटी जांच कर सकती है,जिसके आधार पर एफआइआर संभव है।
सीनियर आइएएस अधिकारी टीसी गुप्ता के नेतृत्व वाली एसईटी को 31 मई तक अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी है। एसईटी को यदि एसआईटी की पावर मिल जाती तो निसंदेह जांच का दायरा बढ़ता और उसमें देरी होती,लेकिन एसईटी अपने मौजूदा स्वरूप के बावजूद अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। एसईटी को हर जिले में शराब के फिजिकल स्टाक की भी जांच करनी है। अभी कई जिले बाकी हैं, जहां स्टाक का मिलान किया जाना है। ऐसे में 31 मई तक जांच रिपोर्ट नहीं आ सकेगी और सरकार को इस कमेटी का कार्यकाल बढ़ाना पड़ सकता है। टीसी गुप्ता की कमेटी में एडीजीपी सुभाष यादव भी शामिल हैं। उनका कार्यकाल 31 मई को पूरा हो रहा है। सरकार के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी आइएएस या आइपीएस अधिकारी को तीन माह तक एक्सटेंशन दे सकती है। सरकार नहीं चाहती कि सुभाष यादव को एक्सटेंशन मिले,लेकिन जांच कमेटी में शामिल होने की वजह से उन्हेंं एक्सटेंशन दी जा सकती है। एसईटी को एसआइटी का दर्जा नहीं मिलने की वजह से हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं जन्म ले रही हैं। इस पूरे प्रकरण को दुष्यंत चौटाला और अनिल विज की लड़ाई के रूप में पेश किया जा रहा है,जबकि कुछ लोग ऐसे भी हैं,जो इस परदे के पीछे रहकर इस लड़ाई को हवा देने का काम कर रहे हैं। इसमें उनका फायदा भी है। दरअसल,कुछ लोगों की मंशा दोनों को लड़ाकर रखने की है। सार्वजनिक तौर पर भले ही नहीं, लेकिन अंदरूनी तौर पर दुष्यंत और विज में टकराव किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में विपक्ष भी इस लड़ाई का पूरा लुत्फ उठाने में लगा है।
शराब घोटाले से परदा उठाने को लेकर विपक्ष में भी दो तरह के लोग हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि इस घोटाले में दुष्यंत चौटाला के राजनीतिक करियर पर आंच आए,जबकि कुछ चाहते हैं कि अनिल विज को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हुए नया गेम बनाया जाए।
अनिल विज पर सबकी निगाह
यह दूसरा मौका है,जब अनिल विज की बात नहीं मानी गई है। पिछले दिनों उनसे सीआइडी वापस ले ली गई थी। अब उनके कहने पर एसईटी को एसआइटी का दर्जा नहीं मिल पाया है। ऐसे में अनिल विज का अगला कदम क्या होगा,इस पर सबकी निगाह टिकी है। साथ ही दुष्यंत चौटाला पूरे मामले को कैसे मैनेज करते हैं,इसका आकलन भी राजनीतिक लोग करने में जुटे हैं।
अब डिस्लरी से भी एसआईटी करेगी पूछताछ
गुजरात के जूनागढ़ की पुलिस भी कर रही जांच
खरखौदा में रेड कर सील की गई शराब को बेचने के मामले में अब एसआईटी पंजाब के डिस्लरी संचालकों से पूछताछ करेगी। डीएसपी जितेंद्र ने बताया डिस्लरी संचालकों के नाम पूछताछ में सामने आए हैं। इनमें राजपुरा का एक डिस्लरी संचालक भी है। आरोपी भूपेंद्र ठेकेदार पर आरोप है कि वह शराब पंजाब से लेकर आता था। तस्करी की इस चेन में जिन -जिन लोगों के नाम पता चले हैं, उन सबसे पूछताछ की जाएगी। मामले में बर्खास्त इंस्पेक्टर जसबीर की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। जबकि उसकी कोर्ट से अग्रिम जमानत याचिका भी बुधवार को खारिज हो गई थी। आरोपी भूपेंद्र व उसके भाई जितेंद्र की जमानत पर फैसला कोर्ट ने सुरक्षित रखा हुआ है। अब एक जून को इनकी जमानत पर सुनवाई होगी। भूपेंद्र व उसका साथी सतीश गुजरात के जूनागढ़ के रहने वाले धीरेंद्र को शराब की सप्लाई करते थे। गुजरात पुलिस भी जांच में जुटी हुई है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी-
इंटरस्टेट शराब तस्करी का इतना
बड़ा मामला,कैसे दे दें अग्रिम जमानत
मार्च माह में खरखौदा में पकड़े गए दो ट्रक शराब की तस्करी के मामले में आरोपी शक्ति कॉन्ट्रैक्टर को बड़ा झटका देते हुए पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इतने बड़े स्तर पर शराब की तस्करी से जुड़े मामले में आरोपी को किसी भी सूरत में अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। याचिका दाखिल करते हुए पंजाब के राजपुरा निवासी शक्ति कांट्रैक्टर ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए अग्रिम जमानत देने की अपील की थी। याचिकाकर्ता ने बताया कि गुप्त सूचना के आधार पर 6 मार्च को सोनीपत के खरखौदा में पुलिस ने दो ट्रक तस्करी से लाई गई शराब पकड़ी थी। ट्रकों के भीतर 285 पेटी शराब मौजूद थी। इसके बाद पकड़े गए आरोपियों ने बताया कि यह ट्रक शक्ति कांट्रैक्टर के हैं, जिन्हें राजपुरा से लाया गया है। आरोपियों के बयान के आधार पर शक्ति कांट्रैक्टर का नाम भी एफआईआर में शामिल किया गया था।
याचिकाकर्ता का दावा-ट्रक उसका नहीं
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ना तो वह ट्रक उसके नाम पर रजिस्टर है और न ही उसका इस मामले से कोई लेना-देना है। इसके विरोध में हरियाणा सरकार की ओर से कहा गया कि आरोपियों के बयान के आधार पर ही एफआईआर दर्ज की गई है। इसके अतिरिक्त भी याचिकाकर्ता पर चार अन्य केस हैं, जिनमे से केवल एक में वह बरी हुआ है। बाकी तीन लंबित हैं। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में इतने बड़े स्तर पर तस्करी हुई है कि आरोपी को अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता को छूट दी कि वह आत्मसमर्पण करें और निचली अदालत में नियमित जमानत की मांग को लेकर याचिका दाखिल कर दे।
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