सत्य खबर
रणदीप सिंह सुरजेवाला, महासचिव, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बयान मोदी सरकार राजनैतिक तौर से बेईमान – किसान की पीठ में छुरा घोंप रही, देश में ‘भाजपा सरकार’ नहीं, ‘कंपनी राज’ है – संघर्ष ही इसका इलाज है!
राजनैतिक ‘लॉलीपॉप व झुनझुने’ पकड़ाने की बजाय तीनों खेती विरोधी कानून खत्म करे मोदी सरकार!!!पिछले एक हफ्ते से देश का किसान ‘करो या मरो’ आंदोलन की राह पर है। किसान-मजदूर की आत्मा कराह रही है, देश की मिट्टी, खेत-खलिहान के लिए न्याय मांग रही है, अन्नदाता अपना अधिकार मांग रहा है और मोदी सरकार उन्हें घाव देने में जुटी है। कभी राष्ट्रीय राजमार्ग खुदवाकर, कभी कंटीले तार लगवाकर, कभी मिट्टी के बांध बनवाकर, कभी सड़कों पर खाईयां खुदवाकर, कभी ठंड के मौसम में धरती के बेटों पर वॉटर कैनन चलवाकर और किसानों के बेटों यानि पुलिस और फौज के जवानों की रायफल की संगीनों के साये में किसानों को डराने की कोशिश करवाकर।
क्या यह महात्मा गांधी का भारत है? क्या भाजपा सरकार के मालिक ‘मुट्ठीभर उद्योगपति’ हैं या देश के 130 करोड़ लोग? क्या दिल्ली दरबार पूंजीपतियों की तिजोरी का गुलाम है या फिर देश के संविधान का? समय आ गया है कि हर देशवासी को यह सवाल पूछना पड़ेगा।
काले कानूनों पर ‘विशेष कमेटी’ का लॉलीपॉप पकड़ाकर बेईमानी बंद करे मोदी सरकार
कल जब किसान संगठनों को बातचीत के लिए बुलाया गया, तो हम सबको उम्मीद थी कि चंद धन्ना सेठों की ‘चौकीदार सरकार’, 62 करोड़ अन्नदाताओं की पुकार सुनेगी और तीन खेती विरोधी काले कानून खत्म करने की घोषणा करेगी। पर दुर्भाग्य ये कि देश के कृषि मंत्री ने ‘विशेष कमेटी’ का जुमला पेश कर देश व किसानों की आंख में धूल झोंकने का तरीका अपनाया।
क्या प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सरकार बताएगी कि तीन खेती विरोधी काले कानून बनाने से पहले यह कमेटी क्यों नहीं बनानी चाहिए थी?
मोदी सरकार ने ये काले कानून चोर दरवाजे से ‘अध्यादेश’ लाकर क्यों बनाए?
जब कांग्रेस व विपक्षी दलों ने संसद में इन तीन काले कानूनों का विरोध करते हुए इन्हें संसद की विशेष समिति को भेजने की मांग रखी, तो मोदी सरकार ने उसे क्यों नहीं माना? कांग्रेस और विपक्षी दलों के सांसदों को संसद से निलंबित क्यों कर दिया? राज्य सभा में बहुमत न होते हुए भी ‘वॉईस वोट’ से तीन काले कानून जबरन पास क्यों करवाए?
क्या जो काम ‘विशेष कमेटी’ करेगी, वो काम संसद की विशेष समिति को नहीं करना चाहिए था?
संविधान में ‘खेती’ तो प्रांत का विशेषाधिकार है फिर मुट्ठीभर उद्योगपतियों को 25 लाख करोड़ का खेती उपज का कारोबार सौंपने के लिए तीन काले कानून जबरन ‘कॉनकरेंट लिस्ट’ में डालकर क्यों पारित करवाए?
देश के कृषि मंत्री किसानों को ‘विशेष कमेटी’ गठन करने का झुनझुना पकड़ा रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी ‘मन की बात’ तथा वाराणसी में खेती विरोधी काले कानूनों को सही बता रहे हैं। यदि तीनों काले कानून सही हैं, तो फिर कृषि मंत्री किसानों से क्या बातचीत कर रहे हैं।
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किसान विरोध के खलनायक मोदी सरकार के साथ-साथ श्री मनोहर लाल खट्टर-दुष्यंत चौटाला भी हैं
73 साल के देश के इतिहास में पहली बार यह हुआ कि पूर्व घोषित कार्यक्रम में शांतिपूर्ण तरीके से धरना देने जा रहे किसानों का रास्ता रोकने के लिए खट्टर-चौटाला सरकार ने हरियाणा में राष्ट्रीय राजमार्ग खुदवा दिए। सड़कों में खाईयां खुदवा दीं और मिट्टी के ट्रकों से सारे रास्ते जाम कर दिए। क्या सरकारों का काम सड़कें बनाना है या खुदवाना।
क्या पीडब्लूडी मंत्री, दुष्यंत चौटाला जी जवाब देंगे, जो सड़क विभाग के मंत्री हैं?
किसान रास्ता रोकने नहीं गए, वो तो शांतिपूर्वक धरने के लिए जा रहे थे। फिर खट्टर-चौटाला की जोड़ी ने रोड जाम क्यों किया?
क्या इस गतिरोध से जो नुकसान हुआ, किसान को-इंडस्ट्री को- आम जनता को, इसकी जिम्मेदार खट्टर-चौटाला की जोड़ी नहीं?
मोदी जी इन काले कानूनों के बारे में कहते हैं कि अब किसान अपनी फसल पूरे देश में कहीं भी बेच सकता है पर खट्टर साहब ट्वीट कर कहते हैं कि हरियाणा में बाहर का बाजरा नहीं बेचने देंगे। क्या यह अपने आप में इन काले कानूनों की ढोल की पोल नहीं खोलता?
अकाली दल बादल मजबूरी में भाजपा का साथ छोड़ चला गया। RLP राजस्थान में बीजेपी से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर रही है। पर भाजपा के किसान विरोध के चलते, श्री दुष्यंत्र चौटाला उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा कब देंगे? खट्टर सरकार से समर्थन कब वापस लेंगे? क्या दुष्यंत चौटाला और जजपा के लिए ‘सत्ता की मलाई’ किसान की भलाई से बड़ी है?
मोदी सरकार को किसान से बेईमानी और विश्वासघात बंद कर खुले मन से बातचीत करनी चाहिए और उसकी पहली शुरुआत होगी कि तीनों काले कानूनों को बगैर विलंब के सस्पेंड कर दिया जाए। प्रधानमंत्री किसानों से खुद बात करें तथा सभी प्रकार का पूर्वाग्रह छोड़कर ही किसानों से बातचीत हो। मोदी सरकार अगर ‘कंपनी राज’ बनेगी तो फिर किसानों मजदूरों का संघर्ष ही इसका इलाज होगा। मुट्ठीभर पूंजीपतियों की गोद में बैठी अहंकारी मोदी सरकार इसे देश के 130 करोड़ लोगों की आखिरी चेतावनी माने।
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