84 योनियों में भटकने के बाद मनुष्य तन की प्राप्ति होती है: दीपक वशिष्ट
सत्यखबर, सफीदों ( सत्यदेव शर्मा )
वेदाचार्य दंडीस्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज के पावन सानिध्य में नगर के ऐतिहासिक नागक्षेत्र मंदिर प्रांगण में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ में व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को संबोधित करते कथावाचक दीपक वशिष्ट ने कहा कि जिस घर में नित्य भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। केवल पठन-श्रवण ही पर्याप्त नहीं इसके साथ अर्थबोध, मनन, चिंतन, धारण और आचरण भी आवश्यक है। त्रिविधि दु:खों के नाश, दरिद्रता, दुर्भाग्य एवं पापों के निवारण, काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय, ज्ञानवृद्धि, रोजगार, सुख-समृद्धि भगवतप्राप्ति एवं मुक्ति यानी सफल जीवन के संपूर्ण प्रबंधन के लिए भागवत का नित्य पठन-श्रवण करना चाहिए, क्योंकि इससे जो फल अनायास ही सुलभ हो जाता है वह अन्य साधनों से दुर्लभ ही रहता है। वस्तुत: जगत में भागवत शास्त्र से निर्मल कुछ भी नहीं है। इसलिए भागवत रस का पान सभी के लिए सर्वदा हितकारी है। उन्होंने कहा कि श्रीमद भागवत कथा श्रवण मात्र से ही जन्म जन्मांतर का विकार नष्ट हो जाता है और मन का शुद्धीकरण होता है। भागवत कथा ऐसी कथा है जिससे जीवित प्राणी का तो कल्याण होता ही है जीवात्मा का भी कल्याण हो जाता है। भागवत पुराण हिन्दुओं के 18 पुराणों में से एक है और इसका मुख्य विषय भक्ति योग है। भगवान के विभिन्न कथाओं का रूप भी श्रीमद भागवत है। उन्होंने कहा कि अपने से बड़ों को सम्मान करो। घर में माता पिता की सेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं है। मनुष्य तन बहुत भाग्य से मिलता है। 84 योनि में आत्मा भटकता है तब बहुत तप के बाद मनुष्य तन की प्राप्ति होती है। जब मनुष्य तन मिलता है तो मनुष्य को अच्छे कर्म करना चाहिए, ताकि इस जन्म जन्मांतर की बंधन से मुक्ति मिले।