ताजा समाचार

उत्तराखंड सरकार पड़ी-बड़ी परेशानी में, जानिए किस वजह से

सत्य खबर , नई दिल्ली।
उत्तराखंड में उच्च हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर में 13 झील चिन्हित की गई हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार इनमें से 4,351 से 4,868 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेश्यिर मोरेन में बनी पांच बड़ी झीलें बेहद खतरनाक हैं, जो टूटी तो निचले क्षेत्रों में तबाही बरपा सकती हैं. उत्तराखंड में जून 2013 में केदारनाथ के ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर में बनी झील के टूटने से केदारनाथ में जो तबाही बरपी, उसे कोई भूल नहीं सकता.

इसके ठीक आठ साल बाद 2021 में चमोली में ग्लेश्यिर टूटने से धौली गंगा में आई बाढ़ 200 से अधिक लोगों का जीवन लील गई. उत्तराखंड में वैज्ञानिकों ने गंगा से लेकर धौलीगंगा और पिथौरागढ़ की दारमा वैली तक उच्च हिमालयी क्षेत्र में ठीक इसी तरह की ग्लेश्यिर मोरेन में बनी 13 झीलें चिन्हित की हैं. इन 13 झीलों में से भी पांच झीलों को हाई रिस्क कैटागरी में रखा गया है, जो काफी बडे़ आकार की हैं जिनमें एक चमोली और चार पिथौरागढ़ में हैं.

Neeraj Chopra: पेरिस में सिल्वर के बाद अब टोक्यो में गोल्ड की तलाश, तैयार हैं नीरज!
Neeraj Chopra: पेरिस में सिल्वर के बाद अब टोक्यो में गोल्ड की तलाश, तैयार हैं नीरज!

ग्लेशियर में लेक फ़ार्मेशन ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है. इससे चिंतित आपदा प्रबंधन विभाग अब दो जुलाई को सबसे पहले वसुधारा ताल के वैज्ञानिक परीक्षण के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम भेजने जा रहा है. उत्तराखंड के सचिव आपदा प्रबंधन रंजीत सिंह का कहना है कि इस टीम में जएसआई, आईआईआरएस, एनआईएच के साइंटिस्ट शामिल होंगे. टीम के साथ आईटीबीपी और एनडीआरएफ के जवान भी रहेंगे. यह टीम वसुधारा ताल पहुंचकर लेक का वैज्ञानिक अध्ययन करेगी. वहां जरूरी उपकरण लगाने की भी योजना है. अगर जरूरी हुआ तो झील को पंचर भी किया जा सकता है.

नित्यानंद सेंटर ऑफ हिमालयन स्टडीज, दून यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यशपाल सुंद्रियाल का कहना है कि ग्लेशियर मोरेन में बनने वाली झील, मिटटी-पत्थर और रेत लिए होती है. झील टूटने पर ये लूज सेडिमेंट जब पानी के साथ बहता है तो निचले क्षेत्रों में तबाही का सबब बन जाता है. जैसा कि 2013 में हुआ था. मौसम में बदलाव के कारण पहले जहां हाई एल्टीट्यूड एरिया में बर्फबारी होती थी, वहां अब बारिश हो रही है. यह बारिश इन झीलों के लिये और खतरनाक साबित हो सकती है. पानी के ज्यादा दबाव के कारण झील टूटी तो वो अपने साथ निचले क्षेत्रों में तबाही ला सकती है.

Indian Premier League And Pakistan Super League: IPL और PSL में खेल रहे अब्दुल समद का धमाल क्या दोनों लीगों में अपनी छाप छोड़ पाएंगे
Indian Premier League And Pakistan Super League: IPL और PSL में खेल रहे अब्दुल समद का धमाल क्या दोनों लीगों में अपनी छाप छोड़ पाएंगे

उत्तराखंड के लिए चिंता की बात इसलिए भी ज्यादा है कि यहां अधिकतर बसावट नदियों के किनारे ही हैं. चारधाम यात्रा रूट पर तो सड़कें नदियों के समानांतर चल रही हैं. प्रोफेसर सुन्दरियाल का कहना है कि सरकार को इसके लिए झीलों की प्रॉपर मॉनिटरिंग के साथ ही निचले क्षेत्रों में भी लोगों को अलर्ट मोड़ पर रखने के साथ ही किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम कर लेने चाहिए.

Back to top button