Supreme Court: ‘यौन उत्पीड़न की पीड़ित नाबालिग को बार-बार गवाही देने के लिए नहीं बुलाया जा सकता’
Supreme Court ने कहा है कि यौन उत्पीड़न की पीड़ित नाबालिग को बार-बार गवाही देने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जा सकता। आरोपी ने नाबालिग पीड़ित को अदालत में पेश करने की अपील की थी। इसके बाद, ट्रायल कोर्ट ने POCSO एक्ट की धारा 33 (5) का हवाला देते हुए कहा कि बच्चे को गवाही देने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जाएगा।
मामले का विवरण
कोर्ट ने ओडिशा हाई कोर्ट और नयागढ़ की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-विशेष अदालत के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई की। इन आदेशों में नाबालिग पीड़ित को गवाह के रूप में दोबारा बुलाने से इनकार किया गया था। इस मामले में आरोपी ने नाबालिग लड़की का अपहरण किया, उसे मंदिर में विवाह कराया और बलात्कार किया। पीड़ित को बाद में पुलिस की मदद से उसके माता-पिता ने बचाया।
दोबारा बुलाने की अपील अस्वीकृत
आरोपियों के खिलाफ 2020 में IPC, POCSO एक्ट और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए गए थे। विशेष अदालत ने आरोपी द्वारा पीड़ित को दोबारा गवाह के रूप में बुलाने की अपील को अस्वीकार कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने POCSO एक्ट की धारा-33(5) पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया है कि बच्चे को गवाही देने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जाएगा।
धारा-33(5) की भूमिका
Supreme Court ने इस निर्णय को सही ठहराते हुए कहा, “POCSO एक्ट एक विशेष कानून है, जो बच्चों को यौन अपराधों से बचाने और उनकी भलाई सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। धारा-33(5) अदालत की जिम्मेदारी डालती है कि बच्चे को बार-बार गवाही देने के लिए नहीं बुलाया जाए।”
क्रॉस-एक्जामिनेशन का मौका
पीठ ने कहा कि धारा-33(5) पीड़ित को फिर से गवाह के रूप में बुलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाती, इसलिए हर मामले की अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार जांच की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटना के समय पीड़ित की उम्र लगभग 15 वर्ष थी और बचाव पक्ष के वकील को नाबालिग लड़की का क्रॉस-एक्जामिनेशन दो बार करने का मौका मिला। उसे दोबारा बुलाना कानून के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।