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Bihar Reservation Case: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और केंद्र को RJD की याचिका पर नोटिस जारी किया, पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती

Bihar Reservation Case: हाल ही में बिहार में आरक्षण को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी मामला Supreme Court में पहुंच गया है। Supreme Court ने शुक्रवार को राष्ट्रीय जनता दल (RJD) द्वारा पटना हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई याचिका पर बिहार सरकार और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के उस संशोधन को रद्द कर दिया था, जिसके तहत बिहार में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया गया था। इस मुद्दे को लेकर बिहार सरकार ने भी Supreme Court में याचिका दायर की है।

RJD की याचिका और Supreme Court की कार्रवाइयाँ

Supreme Court ने शुक्रवार को RJD की याचिका पर सुनवाई करते हुए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया। RJD ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण बढ़ाने के संशोधन को रद्द कर दिया गया था। Supreme Court ने इस याचिका को अन्य समान याचिकाओं के साथ टैग कर दिया है और इस मामले की जल्द सुनवाई करने का निर्णय लिया है।

Supreme Court के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं, ने RJD के वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन की दलीलों को सुना। पी. विल्सन ने बताया कि इस याचिका को जल्द निपटाया जाना आवश्यक है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “नोटिस जारी करें और इसे लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ दें।”

बिहार सरकार की याचिका भी दायर की गई

पिछले महीने, 29 जुलाई को, Supreme Court ने 10 अन्य समान याचिकाओं की सुनवाई के दौरान पटना हाई कोर्ट के आदेश पर स्थगन की याचिका को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने बिहार में संशोधित आरक्षण कानूनों को रद्द कर दिया था। हालांकि, बेंच ने बिहार सरकार की याचिका को सुनने पर सहमति जताई है, जिसमें बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की है।

Bihar Reservation Case: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और केंद्र को RJD की याचिका पर नोटिस जारी किया, पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती

आरक्षण संशोधन के विवरण

पटना हाई कोर्ट ने पिछले वर्ष बिहार विधानमंडल द्वारा पारित संशोधनों को रद्द कर दिया था। इन संशोधनों के अनुसार, बिहार सरकार ने पिछड़े वर्गों, अत्यंत पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था। इस संशोधन को जाति जनगणना के बाद लागू किया गया था, जो बिहार में 2022 में हुई थी।

RJD ने इस संशोधन को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद हाई कोर्ट ने इस संशोधन को रद्द कर दिया। RJD का कहना है कि यह संशोधन जातीय समता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक था, और इसीलिए इसे लागू किया जाना चाहिए।

आरक्षण से संबंधित मुद्दे और विवाद

आरक्षण का मुद्दा हमेशा से ही भारतीय राजनीति और समाज में एक संवेदनशील विषय रहा है। बिहार सरकार का कहना है कि जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण बढ़ाना समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आवश्यक है। वहीं, विरोधियों का कहना है कि आरक्षण के बढ़ने से अन्य वर्गों के अधिकारों का हनन हो सकता है और इससे समाज में असंतुलन पैदा हो सकता है।

पटना हाई कोर्ट का निर्णय इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण मुकाम है, जो यह तय करेगा कि क्या बिहार सरकार द्वारा किया गया आरक्षण का संशोधन संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप है या नहीं। Supreme Court में इस मामले की सुनवाई के बाद ही इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जा सकेगा।

भविष्य की दिशा और संभावनाएँ

Supreme Court में इस मामले की सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा। इनमें आरक्षण के संवैधानिक अधिकार, सामाजिक न्याय, और जातीय समता जैसे मुद्दे शामिल हैं। Supreme Court के फैसले से यह स्पष्ट होगा कि क्या बिहार सरकार का आरक्षण संशोधन संवैधानिक रूप से मान्य है और क्या यह सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है।

Supreme Court का निर्णय केवल बिहार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि यह भविष्य में आरक्षण से संबंधित मामलों की दिशा को प्रभावित कर सकता है। इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होगा कि जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण को बढ़ाने का क्या प्रभाव हो सकता है और इसके लिए कौन से कानूनी मानदंड होने चाहिए।

अंततः, Supreme Court का फैसला इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, जो यह तय करेगा कि बिहार सरकार द्वारा किया गया आरक्षण संशोधन लागू किया जाएगा या नहीं। इस निर्णय से न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर भी प्रभाव पड़ेगा।

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