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Punjab: माँ-बेटी ने रचा इतिहास, विकलांगता को पार कर एक साथ प्राप्त की डिग्री

Punjab के एक छोटे से शहर में एक माँ-बेटी की जोड़ी ने अद्वितीय साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया है। माँ, मंप्रीत कौर, और उनकी विकलांग बेटी, गुरलीन ने साथ में अपने स्नातक की डिग्री प्राप्त की है, जो न केवल उनकी मेहनत का परिणाम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि शिक्षा ही सबसे बड़ी शक्ति है, जो किसी भी बाधा को पार कर सकती है।

कठिनाइयों से लड़ाई

गुरलीन, जो जन्म से ही दृष्टिहीन है, ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है। उसके पिता, सुखविंदर सिंह, जो एक पेंट व्यवसायी हैं, ने शुरू में अपनी बेटी को कॉलेज में दाखिल कराने के लिए केवल उसे ही कॉलेज में दाखिल कराने की योजना बनाई थी। लेकिन प्रिंसिपल डॉ. नवजोत के आग्रह पर, उन्होंने अपनी पत्नी मंप्रीत को भी कॉलेज में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया। मंप्रीत ने विवाह के समय स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं की थी, और उन्हें हमेशा पढ़ाई करने की इच्छा थी।

Punjab: माँ-बेटी ने रचा इतिहास, विकलांगता को पार कर एक साथ प्राप्त की डिग्री

शिक्षा का सफर

मंप्रीत ने अपनी बेटी की शिक्षा के लिए एक नई राह चुनी। उन्होंने शुरुआत में ऑडियो रिकॉर्डिंग का उपयोग कर गुरलीन को पढ़ाने का निर्णय लिया। मंप्रीत ने घर के कामों के बाद, अपनी बेटी के साथ कॉलेज जाने का काम किया और घर लौटने के बाद रात को पढ़ाई के लिए ऑडियो संदेश रिकॉर्ड किए। उन्होंने अपनी दिनचर्या को इस तरह से व्यवस्थित किया कि उनकी बेटी सुबह उठकर इन रिकॉर्डिंग्स को सुन सके और पढ़ाई कर सके।

यह प्रक्रिया तीन साल तक चली, जिसके बाद मंप्रीत ने अपनी बेटी के साथ स्नातक की डिग्री प्राप्त की। दोनों ने एक साथ लायलपुर खालसा कॉलेज फॉर विमेन से डिग्री हासिल की। यह एक प्रेरणादायक कहानी है जो यह साबित करती है कि कठिनाइयों के बावजूद शिक्षा की मशाल को जलाए रखना संभव है।

अपनी पहचान बनाने की चाह

गुरलीन ने हमेशा से ही अपने लिए एक अलग पहचान बनाने का सपना देखा था। उन्होंने यह सुनिश्चित करने का निर्णय लिया कि वे केवल एक संगीत शिक्षिका के रूप में पहचानी न जाएं, जो दृष्टिहीन लोगों की सामान्य पहचान होती है। कक्षा दस तक पढ़ाई के दौरान, उन्होंने तय किया कि वे सिविल सेवाओं की परीक्षा पास करेंगी, ताकि लोग उन्हें उनके नाम से जानें।

गुरलीन ने प्रारंभिक शिक्षा जालंधर से चंडीगढ़ के स्कूलों में ली, लेकिन उन्हें वहाँ अपने लिए अनुकूलता नहीं मिली। इसके बाद, उन्होंने सामान्य बच्चों के स्कूल में दाखिला लिया और अंततः Mayor World स्कूल से 10वीं और Cambridge स्कूल से 12वीं पास की। अब उन्होंने LKC महिला कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की है और बी.एड. भी कर रही हैं।

माँ का समर्पण

मंप्रीत कौर ने अपनी बेटी के भविष्य को लेकर हमेशा चिंता व्यक्त की। उन्होंने न केवल ब्रेल लिपि सीखी बल्कि उनकी पढ़ाई में मदद करने के लिए अपने ज्ञान को भी बढ़ाया। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें न केवल अपनी बेटी की शिक्षा में मदद की, बल्कि उन्हें एक सफल माता-पिता का उदाहरण भी बनाया।

जब मंप्रीत को लगा कि गुरलीन अन्य बच्चों से पीछे रह गई है, तो उन्होंने खुद को पढ़ाने का निर्णय लिया। वह हमेशा उस स्कूल की तलाश में रहती थीं जो उनकी बेटी के लिए सबसे उपयुक्त हो, और आखिरकार उन्होंने सामान्य बच्चों के स्कूल में पढ़ाने का निर्णय लिया।

पिता का संघर्ष

सुखविंदर सिंह ने अपनी बेटी की स्थिति के बारे में जब जाना, तो उन्होंने हर संभव मदद के लिए दर-दर की ठोकरें खाई। जब गुरलीन का जन्म हुआ, तो खुशी का माहौल था, लेकिन जब डॉक्टर ने बताया कि उनकी आँखें नहीं चल रही हैं, तो उनके जीवन में अंधेरा छा गया। उन्होंने हर जगह मदद मांगी, लेकिन हर दरवाजे पर उन्हें निराशा ही मिली।

हालांकि, उन्होंने यह मान लिया कि यह सब भगवान की इच्छा थी और आगे बढ़ने का फैसला किया। उनके संघर्ष और मंप्रीत के समर्पण ने उन्हें एक नई दिशा दी, और अंततः, उन्होंने अपनी बेटी की शिक्षा में सहायता की।

विद्यालय की प्रतिक्रिया

LKC महिला कॉलेज की प्रिंसिपल, डॉ. नवजोत ने इस पूरी प्रक्रिया के दौरान गुरलीन के माता-पिता की मदद की। उन्होंने बताया कि जब गुरलीन और उनके माता-पिता दाखिले के लिए आए थे, तो उन्हें तुरंत मंजूरी दे दी गई थी।

डॉ. नवजोत ने यह भी कहा कि उन्हें शुरू में डर था कि एक विशेष बच्चे के रूप में गुरलीन के साथ कोई दिक्कत न हो। लेकिन उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उन्हें कॉलेज में कोई परेशानी न हो, और अब दोनों, गुरलीन और मंप्रीत कौर ने स्नातक की डिग्री पूरी की है।

शिक्षा की रोशनी

इस माँ-बेटी की जोड़ी की कहानी यह साबित करती है कि जब शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है, तो किसी भी प्रकार की विकलांगता को पार किया जा सकता है। यह एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

गुरलीन और उनके माता-पिता का यह अनुभव हमें यह सिखाता है कि शिक्षा की मशाल कभी बुझनी नहीं चाहिए। चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें अपनी राह खुद बनानी होगी।

अंततः, मंप्रीत और गुरलीन की यह कहानी समाज के लिए एक उदाहरण है कि कैसे शिक्षा को प्राथमिकता देकर हम अपने और दूसरों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं। यह दिखाता है कि साहस, समर्पण और मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

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