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Punjab Crime: नेपाल की प्रथा कहकर पति-पत्नी ने बच्चे के शव को नहर में फेंका; पकड़े जाने पर बोले – यह रिवाज है

Punjab Crime: जालंधर के बस्ती बावा खेल इलाके में गुरुवार दोपहर 12:52 बजे एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। एक महिला पुल के पास से आई और पुलिस थाने से 500 मीटर दूर नहर में एक बच्चे का शव फेंककर भाग गई। दो मिनट बाद एक व्यक्ति, जो आदर्श नगर रोड की तरफ से आ रहा था, बच्चे के शव को कपड़े से ढकने लगा। उसी समय नहर में नहा रहे दो बच्चों ने यह देखा और उस व्यक्ति को आवाज़ लगाई, लेकिन वह व्यक्ति पुल की तरफ से ही वापस चला गया।

बच्चों ने इस घटना की जानकारी आस-पास के लोगों को दी, जिसके बाद वहां भीड़ जमा हो गई और लोगों को शक हुआ कि यह हत्या का मामला है। बस्ती बावा खेल पुलिस थाने के प्रभारी बलजींदर सिंह मौके पर पहुंचे और उन्होंने जांच शुरू की। देर शाम तक पुलिस ने बच्चे के माता-पिता को हिरासत में ले लिया। पूछताछ के दौरान, पति-पत्नी ने कहा कि यह नेपाल की एक प्रथा है।

Punjab Crime: नेपाल की प्रथा कहकर पति-पत्नी ने बच्चे के शव को नहर में फेंका; पकड़े जाने पर बोले - यह रिवाज है

घटना का पूरा मामला

बस्ती दानिशमंडा के निवासी चेतन ने बताया कि जब वह अपनी बेटी के साथ बाइक पर जा रहे थे, तब दो बच्चों ने उन्हें रोका और बताया कि नहर में एक बच्चे का शव पड़ा है। चेतन ने तुरंत नहर में जाकर बच्चे को बाहर निकाला, लेकिन तब तक बच्चे की मौत हो चुकी थी। इसके बाद उन्होंने पुलिस को सूचना दी और पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर जांच शुरू की।

सीसीटीवी से हुआ खुलासा

पुलिस ने घटना स्थल के आस-पास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच की, जिससे पता चला कि एक महिला ने बच्चे का शव नहर में फेंका था। जब पुलिस टीम ने 50 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, तब यह स्पष्ट हुआ कि बस्ती मिठ्ठू की निवासी बीरू और उसके पति दीपक ने इस कृत्य को अंजाम दिया था। पुलिस ने देर शाम तक दोनों को गिरफ्तार कर लिया।

शव को नहर में क्यों फेंका गया?

जांच के दौरान पता चला कि बीरू और उसका पति दीपक कुछ समय पहले नेपाल से जालंधर आए थे। दीपक एक मांस की दुकान में काम करता है, जबकि बीरू घर पर रहती है। उन्होंने पुलिस को बताया कि उनका बच्चा छह महीने पहले पैदा हुआ था और पिछले दस दिनों से बीमार था। उन्होंने कई डॉक्टरों से उसका इलाज करवाया, लेकिन उसकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ और गुरुवार सुबह बच्चे की मौत हो गई।

पति-पत्नी ने बताया कि नेपाल में एक रिवाज है कि जब तक बच्चे के दांत नहीं आते, तब तक उसे दफनाया नहीं जाता बल्कि उसे पानी में प्रवाहित किया जाता है। उन्होंने कहा कि बच्चे के इलाज में इतने पैसे खर्च हो गए थे कि उनके पास बच्चे को ब्यास नदी ले जाकर प्रवाहित करने के लिए पैसे नहीं बचे, इसलिए उन्होंने बच्चे को नहर में प्रवाहित कर दिया।

सीसीटीवी से ट्रैक किया गया महिला का रूट

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की मदद से महिला के आने और जाने के रास्ते का पता लगाया। पुलिस जांच में सामने आया कि महिला घटना स्थल के पास पीर की दरगाह के पुल से आई और बच्चे के शव को नहर में फेंक दिया। इसी समय, महिला का साथी आदर्श नगर रोड की तरफ से नहर के पास आया और बच्चे के शव को कपड़े से ढककर पुल के रास्ते चला गया।

नेपाल की प्रथा या जिम्मेदारी से भागना?

इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है और सवाल खड़े किए हैं कि क्या वाकई यह नेपाल की प्रथा है, या यह सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों से भागने का बहाना था? बच्चे की बीमारी और उसकी मौत एक दुखद घटना है, लेकिन उसके शव को इस प्रकार नहर में फेंकना अमानवीय कृत्य के रूप में देखा जा रहा है। यदि उनके पास आर्थिक संसाधनों की कमी थी, तो भी स्थानीय प्रशासन या किसी सहायता समूह से मदद ली जा सकती थी।

बच्चे की मौत के बाद उसका सही तरीके से अंतिम संस्कार न करने और उसे नहर में फेंकने से न केवल समाज में आक्रोश पैदा हुआ है, बल्कि यह भी सवाल उठता है कि क्या इस तरह की प्रथाएं आज के समय में लागू होनी चाहिए।

कानूनी और सामाजिक पहलू

इस घटना के बाद कानूनी और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोणों से कई मुद्दे सामने आते हैं। पुलिस ने अपनी जांच के दौरान पति-पत्नी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या इस प्रकार की प्रथाओं को उचित ठहराया जा सकता है?

भारत में प्राचीन और पारंपरिक प्रथाओं का आदर किया जाता है, लेकिन किसी भी प्रथा को कानून के दायरे में होना आवश्यक है। जब बात मानव जीवन और उसकी गरिमा की हो, तब किसी भी प्रकार की अमानवीय प्रथाएं या रिवाज स्वीकार्य नहीं होने चाहिए। इस मामले में भी, अगर यह दावा किया जा रहा है कि यह नेपाल की कोई प्रथा है, तो इसके बारे में समाज में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

समाज की भूमिका

समाज को भी इस प्रकार की घटनाओं के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है। किसी भी प्रथा या रिवाज के नाम पर अमानवीयता को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। बच्चे के माता-पिता की आर्थिक स्थिति चाहे जैसी भी हो, समाज और प्रशासन को उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए था। अगर सही समय पर उन्हें मदद मिलती, तो शायद इस तरह की घटना को रोका जा सकता था।

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