Supreme Court ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा को चेतावनी दी, सख्त निर्देशों का पालन अनिवार्य
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आशीष मिश्रा, जो पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र हैं, को लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में जमानत की शर्तों का पालन करने के लिए सख्त निर्देश दिए। इसी दिन, विवाह बलात्कार के मामले की सुनवाई को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया।
आशीष मिश्रा पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा को जमानत दी थी, लेकिन अब अदालत ने उन्हें स्पष्ट चेतावनी दी है कि जमानत की शर्तों का पालन करना अनिवार्य है। न्यायमूर्ति सुर्यकांत, दीपंकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने इस मामले में पीड़ितों को अवमानना याचिका दायर करने की अनुमति दी।
आशीष मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने 2021 में हुए लखीमपुर खीरी हिंसा में हत्या की साजिश में शामिल थे। पीड़ितों की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि आशीष ने जमानत मिलने के बाद भी शर्तों का उल्लंघन किया। उन्होंने 1 अक्टूबर को एक विशाल जनसभा को संबोधित किया, जबकि उनकी जमानत की शर्तों में ऐसा करना मना था।
विवाह बलात्कार मामले की सुनवाई का स्थगन
इस बीच, विवाह बलात्कार के मामले की सुनवाई को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह निर्णय लिया, क्योंकि दोनों पक्षों के वकीलों को अपने तर्क प्रस्तुत करने के लिए एक दिन की आवश्यकता थी। कोर्ट ने महसूस किया कि दीवाली की छुट्टियों से पहले इस मामले की सुनवाई पूरी करना संभव नहीं था।
इस मामले में, कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें मांग की गई है कि विवाह बलात्कार को एक अपराध घोषित किया जाए। याचिकाओं में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद दो और नए कानून BNS की धारा 63 के अपवाद दो को समाप्त करने की मांग की गई है, जो पति को बलात्कार से छूट देती है।
स्वामी श्रद्धानंद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्वामी श्रद्धानंद की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया। स्वामी श्रद्धानंद, जिन पर जेल में अपनी पत्नी की हत्या का आरोप है, ने अदालत के उस फैसले की समीक्षा की मांग की थी जिसमें उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। न्यायालय ने कहा कि वे मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर बहस कर सकते हैं, लेकिन सजा को बरकरार रखा गया है।
अदालत के समक्ष राज्य कर्नाटक और याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ताओं ने सूचित किया कि स्वामी श्रद्धानंद ने पहले ही राष्ट्रपति को एक प्रतिनिधित्व दिया है। इस पर पीठ ने कहा कि मामले को देखते हुए इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।
आगे की कार्रवाई और संभावित प्रभाव
आशीष मिश्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख यह संकेत देता है कि अदालत कानून के प्रति अपनी गंभीरता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं विवाह बलात्कार के मामले में सुनवाई का स्थगन उन बहसों को जन्म देता है जो भारतीय कानून के तहत विवाह के भीतर बलात्कार के मुद्दे पर जारी हैं।
स्वामी श्रद्धानंद के मामले में अदालत का निर्णय भी न्यायिक प्रणाली की सीमाओं और उसके फैसलों की समीक्षा के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं को दर्शाता है। ऐसे मामलों में, न केवल पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा की जाती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि न्याय का मार्ग प्रशस्त हो।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले लखीमपुर खीरी हिंसा और विवाह बलात्कार के मामलों में न केवल कानून की व्याख्या करते हैं, बल्कि वे सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर भी प्रभाव डालते हैं। अदालत का यह रुख दिखाता है कि वह कानूनी मानकों को बनाए रखने के लिए किसी भी तरह की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करेगी। ऐसे मामलों की संवेदनशीलता को देखते हुए, न्यायालय की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वह सही और त्वरित न्याय सुनिश्चित करे।
आगे आने वाले दिनों में, इन मामलों के निपटारे के दौरान न्यायालय का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण रहेगा, क्योंकि इससे समाज में कानून के प्रति विश्वास बना रहेगा और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।