शहरी सुधारों में अहम कदम, Development authorities की भूमिका की समीक्षा
शहरों में Development authorities की भूमिका की समीक्षा का काम तेजी से हो रहा है। खास बात यह है कि पहली बार केंद्र स्तर पर इनकी जवाबदेही और स्वायत्तता पर विचार किया जा रहा है। इस समीक्षा के लिए एक कार्य समूह का गठन किया गया है, जिसकी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश को दी गई है। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां विकास प्राधिकरणों और नगर निगमों के कार्यों की जिम्मेदारियों को लेकर भ्रम की स्थिति होती है।
शहरी सुधारों के तहत विकास प्राधिकरणों की समीक्षा
शहरी सुधारों की प्रक्रिया में यह कार्य समूह विकास प्राधिकरणों को लेकर बड़ा फैसला ले सकता है। सूत्रों के अनुसार, पहले दौर की बैठक में कई सुझाव सामने आए हैं। इन सुझावों में सबसे अहम है कि विकास प्राधिकरणों के कार्यों को नगर निगमों के अधिकार क्षेत्र में लाने के लिए स्पष्ट और पारदर्शी प्रणाली बनाई जाए। इस प्रक्रिया के तहत नगर निगमों के अधिकार बढ़ाने की जरूरत पर भी जोर दिया गया है।
क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों के गठन का प्रस्ताव
बड़े शहरों में क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण बनाने का एक सुझाव सामने आया है। इस प्रणाली के तहत पास के चार-पांच शहरों को मिलाकर समग्र योजना बनाई जाएगी। इससे शहरी विकास को समग्र रूप दिया जा सकेगा। कार्य समूह के सदस्यों का कहना है कि अधिकांश समस्याएं अधिकार और जिम्मेदारियों के स्पष्ट न होने के कारण उत्पन्न होती हैं। देश भर के उदाहरणों को सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि यहां तक कि सड़कों के रखरखाव जैसे बुनियादी कार्य भी इस अस्पष्टता के कारण पूरे नहीं हो पाते हैं।
विकास प्राधिकरणों और नगर निगमों के बीच टकराव
शहरों में विकास प्राधिकरणों के कार्यों में पारदर्शिता की कमी और अधिकारों के अस्पष्ट विभाजन के कारण नगर निगमों और विकास प्राधिकरणों के बीच टकराव की स्थिति बनी रहती है। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि शहरी क्षेत्रों में योजना और विकास के लिए दो अलग-अलग प्राधिकरण बनाए जाएं। वर्तमान में विकास प्राधिकरणों का मुख्य कार्य शहरी योजना बनाना और नई योजनाओं को लाना है, लेकिन वे अपनी भूमिका से आगे बढ़कर नगर निगमों के कामकाज में हस्तक्षेप करते हैं। इससे कई पुराने इलाकों में सुविधाओं और रखरखाव को लेकर विवाद की स्थिति बनती है।
विकास प्राधिकरणों के कामकाज की समीक्षा करने वाले प्रमुख अधिकारी
इस कार्य समूह के संयोजक उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (शहरी विकास) अमृत अभिजीत हैं। इनके साथ केरल की प्रमुख सचिव शर्मिला मैरी जोसेफ, हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के नगर आयुक्त जफर इकबाल और त्रिपुरा के अगरतला के नगर आयुक्त शैलेश यादव को भी इस समूह में शामिल किया गया है। इसके अलावा, मुजफ्फरनगर के नगर आयुक्त विक्रम वीरकर को भी स्थान दिया गया है।
राष्ट्रीय राजमार्ग लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड के सीईओ प्रकाश गौर और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव समीर शर्मा को विशेषज्ञों के रूप में इस समूह में शामिल किया गया है। यह कार्य समूह तीन महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। उम्मीद है कि यह विकास प्राधिकरणों जैसे संस्थानों के कामकाज के लिए एक मानक एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) तैयार करेगा।
अधिकार और शक्तियों का स्पष्ट विभाजन
केंद्र सरकार का मानना है कि राज्य सरकारों, शहरी स्थानीय निकायों और विकास प्राधिकरणों के बीच अधिकारों का स्पष्ट विभाजन होना चाहिए। तभी शहरों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। केवल अधिकारों और शक्तियों का विभाजन ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके साथ मिलकर काम करने के लिए एक मानक मैनुअल होना भी आवश्यक है।
विकास प्राधिकरणों को नगर निगमों की मदद करनी होगी
नई प्रणाली के तहत विकास प्राधिकरणों को केवल शहरी योजनाएं बनाने तक सीमित नहीं रहना होगा। उन्हें नगर निकायों को इन योजनाओं के क्रियान्वयन में भी मदद करनी होगी। इसके लिए विकास प्राधिकरणों और नगर निगमों के बीच सहयोग बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।
नगर निगमों के अधिकार बढ़ाने पर जोर
समीक्षा के दौरान नगर निगमों के अधिकार बढ़ाने की जरूरत पर विशेष ध्यान दिया गया है। नगर निगमों को अधिक स्वायत्तता और शक्तियां देकर शहरी विकास के कार्यों को तेजी से पूरा किया जा सकेगा। इसके अलावा, विकास प्राधिकरणों को योजनाओं के क्रियान्वयन में निगमों के साथ तालमेल स्थापित करना होगा।
शहरी क्षेत्रों के समग्र विकास की दिशा में कदम
कार्य समूह के सुझाव शहरी क्षेत्रों के समग्र विकास की दिशा में अहम साबित हो सकते हैं। क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों के गठन और अधिकारों के स्पष्ट विभाजन से शहरों में बुनियादी ढांचे के रखरखाव और विकास कार्यों में तेजी आएगी।
शहरों में विकास प्राधिकरणों के स्वरूप और कार्य प्रणाली में बदलाव की यह प्रक्रिया शहरी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। नगर निगमों को अधिक अधिकार देने और विकास प्राधिकरणों के साथ सहयोग की नई प्रणाली से शहरी क्षेत्रों में बुनियादी समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा। केंद्र और राज्य सरकारों को इस दिशा में ठोस निर्णय लेते हुए शहरी विकास को नई दिशा देनी होगी।