Atul Subhash की पत्नी को सजा होगी या पूरा परिवार बच पाएगा, जानें सुप्रीम कोर्ट वकील का क्या है कहना
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बेंगलुरु में आत्महत्या करने वाले इंजीनियर Atul Subhash के पिता ने अपने बेटे की अस्थियां विसर्जित करने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि जब तक उनके बेटे को न्याय नहीं मिलता, वह अस्थियां विसर्जित नहीं करेंगे। अतुल सुभाष ने अपनी आत्महत्या नोट में लिखा था कि यदि उसे न्याय नहीं मिलता, तो उसकी अस्थियां कोर्ट के बाहर नाले में फेंक दी जाएं। इस मामले में कर्नाटक पुलिस ने अतुल की पत्नी निकिता और उनके परिवार के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार किया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की वकील कनिक भardwaj ने बताया है कि किस धारा के तहत निकिता को सजा हो सकती है और उन्हें कितनी सजा मिल सकती है।
पति के अधिकारों की स्थिति
कानिका भारद्वाज ने बताया कि शादी के बाद पुरुषों के पास घरेलू हिंसा के मामलों में लगभग कोई अधिकार नहीं होते हैं। उनके पास तलाक का अधिकार तो होता है, लेकिन घरेलू हिंसा के मामले में वे लड़की के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं कर सकते। यह स्थिति पुरुषों के अधिकारों को लेकर एक बड़ी समस्या है।
कानून का दुरुपयोग
कानिका भारद्वाज ने कहा कि जब भारतीय कानून में बदलाव हुआ और भारतीय न्याय संहिता को आईपीसी के स्थान पर लागू किया गया, तो सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से धारा 498A में बदलाव करने के लिए कहा था, क्योंकि इसका दुरुपयोग हो रहा था। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अब भी महिलाएं इस कानून का दुरुपयोग कर रही हैं। उन्होंने बताया कि धारा 498A के तहत यदि कोई पुरुष या उसके नजदीकी व्यक्ति लड़की को किसी भी प्रकार से प्रताड़ित करते हैं, तो उन्हें सात साल तक की सजा हो सकती है।
मामले में जिम्मेदारी
कानिका भारद्वाज ने कहा कि पुलिस अधिकारियों ने जानबूझकर गलत धाराओं का इस्तेमाल किया। इसमें अप्राकृतिक सेक्स, हत्या और यौन शोषण की धाराएं लगाई गईं, जबकि इसके लिए कोई साक्ष्य नहीं थे। अतुल सुभाष को सही मदद नहीं मिल पाई क्योंकि उन्हें उचित जानकारी नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट से मुफ्त में जानकारी प्राप्त करने की सुविधा है, लेकिन लोग इस बारे में अज्ञात हैं। समाज भी अतुल सुभाष की मौत के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि ऐसे मामलों में लोग अनुमानों के आधार पर फैसला करते हैं और दबाव में पड़े व्यक्ति की मदद नहीं करते। कानूनी दृष्टिकोण से भी, अतुल सुभाष के पास तलाक के अलावा कोई विकल्प नहीं था, और इस प्रकार, कानून की कमी भी इस घटना के लिए जिम्मेदार है।
निकिता को सात साल की सजा हो सकती है
कानिका भारद्वाज ने बताया कि यदि यह साबित होता है कि अतुल सुभाष को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया, तो उसकी पत्नी निकिता और अन्य जिम्मेदार लोगों को सात साल तक की सजा हो सकती है। हालांकि, यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है। पुलिस जांच के बाद चार्जशीट दायर की जाएगी और इसके बाद कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। कोर्ट में यह साबित करना कठिन हो सकता है कि निकिता ने अतुल को आत्महत्या के लिए मजबूर किया, लेकिन यदि यह साबित हो जाता है, तो निकिता को जेल की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है।
समाज और कानून की भूमिका
इस मामले में समाज और कानून दोनों की भूमिका अहम है। जहां एक तरफ समाज को ऐसे मामलों में जागरूकता और संवेदनशीलता दिखानी चाहिए, वहीं दूसरी तरफ कानून को इस तरह के मामलों में सुधार करने की आवश्यकता है। कानिका भारद्वाज ने यह भी बताया कि ऐसे मामलों में सही कानूनी सलाह और सहायता की बहुत कमी होती है, जो कि प्रभावित व्यक्ति को सही समय पर मदद नहीं मिल पाती।
अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला एक गंभीर मुद्दा बन चुका है, जो न केवल घरेलू हिंसा की समस्या को उजागर करता है, बल्कि कानून और समाज की जिम्मेदारी को भी सामने लाता है। निकिता और अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों को सजा मिलने की संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि पुलिस जांच और कोर्ट में कितने साक्ष्य पेश किए जाते हैं। इस मामले में न्याय का मिलना समय ले सकता है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि समाज और कानून दोनों इस दिशा में सुधार लाने के लिए काम करें।