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“One Nation One Election” का मुद्दा, सरकार और विपक्ष के बीच तीव्र संघर्ष

भारत में “एक देश, एक चुनाव” (One Nation One Election – ONOE) का विचार एक लंबे समय से बहस का विषय रहा है। इस मुद्दे को लेकर अब केंद्रीय सरकार ने अपनी योजना को वास्तविक रूप देने के लिए कदम बढ़ाया है और लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पेश किया है। इस बिल के माध्यम से सरकार का उद्देश्य है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित किया जाए। इस प्रस्ताव का विरोध विपक्षी दलों द्वारा तीव्र रूप से किया जा रहा है, और यह मुद्दा भारतीय राजनीति में एक बड़ा विवाद बन चुका है। आइए, इस मुद्दे की विस्तार से समझते हैं।

“एक देश, एक चुनाव” के बिल की प्रस्तुति और विपक्ष का विरोध

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पेश किया। यह बिल “एक देश, एक चुनाव” की अवधारणा को साकार करने के लिए एक अहम कदम है। इसके साथ ही, केंद्र सरकार ने एक और विधेयक भी पेश किया, जो केंद्र शासित प्रदेशों पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ जोड़ने का प्रस्ताव करता है।

बिल की पेशकश के साथ ही विपक्ष ने इसका विरोध किया। विपक्षी दलों ने इस बिल के खिलाफ मत विभाजन (division of votes) का सहारा लिया और स्पष्ट कर दिया कि वे इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे। लोकसभा में 269 सदस्यों ने सरकार का समर्थन किया, जबकि 198 सदस्यों ने विरोध किया। हालांकि, सरकार के लिए यह चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि इस विधेयक को संविधान संशोधन के रूप में पास कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। इस कारण सरकार ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने का प्रस्ताव दिया।

"One Nation One Election" का मुद्दा, सरकार और विपक्ष के बीच तीव्र संघर्ष

संविधान संशोधन बिल और इसकी चुनौती

संविधान संशोधन विधेयक को पास कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, जो केवल तब संभव है जब संसद में पर्याप्त संख्या में सदस्य इसका समर्थन करें। वर्तमान में, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसकी सहयोगी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के पास लोकसभा में 293 सांसद हैं, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले भारत गठबंधन के पास 234 सांसद हैं। इसके बावजूद, लोकसभा में 362 वोटों की आवश्यकता है।

इस संदर्भ में, मंगलवार के मतदान का उद्देश्य यदि बिल को पास कराना होता, तो यह प्रस्ताव असफल हो सकता था। इस स्थिति में, बीजेपी को 64 और वोटों की आवश्यकता थी। ऐसे में इस बिल को पास करने के लिए सरकार को विपक्षी दलों से भी समर्थन जुटाना होगा।

संविधान संशोधन के अलावा अन्य विधेयक

साथ ही, केंद्रीय सरकार ने एक और विधेयक पेश किया, जो केंद्र शासित प्रदेशों पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की विधानसभाओं के चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ जोड़ने का प्रस्ताव करता है। इसके अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इन तीन केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा चुनाव भी उसी समय हों, जब लोकसभा चुनाव होंगे।

यह बिल इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है, जिससे चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया है और इसे भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए खतरे के रूप में देखा है।

संविधान संशोधन बिल का विरोध

विपक्षी दलों ने “एक देश, एक चुनाव” की अवधारणा का विरोध करते हुए कई आपत्तियां उठाई हैं। कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने इस विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की और इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में पेश किया। उनका कहना था कि यह प्रस्ताव राज्यसभा और राज्यों की विधानसभाओं को कमजोर करेगा, और यह भारतीय संघीय ढांचे पर हमला होगा।

तृणमूल कांग्रेस के कालन बनर्जी ने इस विधेयक को राज्य विधानसभा के कार्यकाल को लोकसभा के कार्यकाल से जोड़ने की योजना पर भी आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इससे राज्यों का अधिकार केंद्र के अधीन हो जाएगा और इससे राज्यों की स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी। यह बिल केवल सत्ता के केंद्रीकरण की ओर बढ़ने का प्रयास है और राज्यों की भूमिका को कमजोर करने वाला है।

समाजवादी पार्टी ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया और इसे “तानाशाही” की ओर एक कदम बताया। उनका कहना था कि बीजेपी इस विधेयक का उपयोग अपने राजनीतिक फायदे के लिए करना चाहती है, और यह देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करेगा।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी ने इसे संविधान के खिलाफ बताया और कहा कि यह विधेयक क्षेत्रीय दलों की आवाज को दबाने के लिए लाया जा रहा है। उनका आरोप था कि इससे क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, क्योंकि यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के नियंत्रण को बढ़ाता है।

संविधान संशोधन और लोकतांत्रिक ढांचा

“एक देश, एक चुनाव” की अवधारणा का प्रस्ताव भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को चुनौती दे सकता है। वर्तमान समय में, भारत में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती है। यदि राज्य विधानसभाओं के चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ जोड़ दिया जाता है, तो राज्यों को अपनी स्वतंत्रता खोने का खतरा हो सकता है।

इसके अलावा, यह सवाल भी उठता है कि क्या यह प्रस्ताव भारतीय लोकतंत्र में बहुलवाद और विविधता के सिद्धांत को बनाए रख पाएगा? भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, राज्यों के अपने अधिकार और स्वायत्तता को बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है।

संविधान संशोधन के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC)

संविधान संशोधन विधेयक को पास कराने के लिए सरकार ने इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने का प्रस्ताव किया है। यह समिति इस बिल पर विचार करेगी और अपने सुझाव देगी। संयुक्त संसदीय समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा किया जाएगा। इस समिति का काम बिल के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार करना होगा और इसे अंतिम रूप देने से पहले सभी पक्षों से सुझाव प्राप्त करना होगा।

संविधान संशोधन विधेयक को पास करने के लिए ज्वाइंट कमेटी का महत्व बहुत बढ़ जाएगा। इस समिति में अधिकतम 31 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 21 सदस्य लोकसभा से होंगे। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि प्रत्येक पार्टी को कितने सदस्य मिलेंगे, लेकिन यह संभावना जताई जा रही है कि बीजेपी को इस समिति में बहुमत मिलेगा।

“एक देश, एक चुनाव” का प्रस्ताव भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मुद्दा बन चुका है। इसके लिए सरकार को विपक्षी दलों से समर्थन जुटाना होगा, ताकि संविधान संशोधन बिल को पास कराया जा सके। इसके साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि इस प्रस्ताव से भारतीय लोकतंत्र और संघीय ढांचे पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह विधेयक न केवल चुनाव प्रक्रिया को बदलने की कोशिश कर रहा है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की दिशा को भी प्रभावित करेगा।

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