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“One Nation, One Election” Bill: संयुक्त संसदीय समिति का गठन और विपक्ष की आपत्तियाँ

“One Nation, One Election” Bill: भारतीय राजनीति में एक बार फिर से “एक राष्ट्र, एक चुनाव” (One Nation, One Election) बिल चर्चा का विषय बन गया है। इस बिल को लेकर संसद में भारी बहस हो रही है, जहां सरकार इसे पारित कराने के लिए प्रयत्नशील है, वहीं विपक्ष इसका विरोध कर रहा है। इस बिल को लेकर सरकार ने एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन किया है, जिसका उद्देश्य इस बिल के सभी पहलुओं पर गहन विचार करना है। इस लेख में हम इस बिल, संयुक्त संसदीय समिति के गठन और विपक्ष की आपत्तियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” बिल: क्या है इसका उद्देश्य?

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक ही समय पर कराना है। वर्तमान में, लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया में बार-बार खर्च और संसाधनों की बर्बादी होती है। इसके साथ ही चुनावी आदर्श और अनुशासन की भी कमी महसूस होती है।

इस बिल के माध्यम से सरकार का लक्ष्य चुनाव प्रक्रिया को सरल और खर्च-कम करना है। यदि यह बिल पास हो जाता है, तो देश में एक ही दिन सभी चुनाव आयोजित किए जा सकते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया में सुधार हो सकता है और राजनीति में स्थिरता आ सकती है।

 "One Nation, One Election" Bill: संयुक्त संसदीय समिति का गठन और विपक्ष की आपत्तियाँ

संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” बिल पर गहन विचार विमर्श के लिए सरकार ने एक 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया है। इस समिति का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद पीपी चौधरी करेंगे। इस समिति में लोकसभा के 21 सदस्य और राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे।

जिन सांसदों को इस समिति में शामिल किया गया है, उनमें कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी, राष्ट्रीय जनता पार्टी (NCP) की सुप्रिया सुले, तृणमूल कांग्रेस (TMC) के कalyan बनर्जी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पीपी चौधरी, बंसुरी स्वराज, अनुराग सिंह ठाकुर जैसी प्रमुख हस्तियाँ शामिल हैं।

लोकसभा के जिन सांसदों को समिति में शामिल किया गया है, उनमें भाजपा के पीपी चौधरी, सीएम रमेश, बंसुरी स्वराज, पुरषोत्तम भाई रुपाला, अनुराग सिंह ठाकुर, विष्णु दयाल राम, भार्तृहरी महताब, संबित पात्रा, अनिल बलूनी, विष्णु दत्त शर्मा, कांग्रेस के प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी, सुखदेव भगत, समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव, तृणमूल कांग्रेस के कalyan बनर्जी, NCP की सुप्रिया सुले, DMK के टीएम सेल्वगनपति, TDP के GM हरिश बलयोगी, शिवसेना (शिंदे गुट) के श्रीकांत एकनाथ शिंदे, राष्ट्रीय लोक दल के चंदन चौहान, और जनसेना पार्टी के बालाशोरी वल्लभनेनी शामिल हैं।

इस समिति का कार्य इस बिल पर व्यापक विचार और चर्चा करना है। सरकार चाहती है कि यह बिल संसद में जल्द से जल्द पारित हो सके, इसलिए उसे विस्तृत चर्चा के लिए इस समिति को भेजा गया है।

विपक्ष का विरोध और आपत्तियाँ

जहां एक ओर सरकार इस बिल को लागू करने के लिए उत्साहित है, वहीं विपक्ष इसके खिलाफ खड़ा है। विपक्ष का कहना है कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” का प्रस्ताव असंवैधानिक और लोकतंत्र के खिलाफ है। विपक्ष का मानना है कि इस प्रकार के बदलाव से केंद्रीय सरकार को अधिक ताकत मिल जाएगी और यह राज्य सरकारों और क्षेत्रीय दलों की स्वतंत्रता को नुकसान पहुँचाएगा।

विपक्षी दलों का यह भी कहना है कि इस प्रकार के चुनावी सुधार से केवल सत्तारूढ़ पार्टी को फायदा होगा, क्योंकि इससे राज्यों में चुनावों पर केंद्रीय सरकार का प्रभाव बढ़ेगा। इससे क्षेत्रीय दलों को कमजोर किया जाएगा और उनके प्रभाव में कमी आएगी।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने इस बिल का विरोध किया है। उनका मानना है कि इस बिल के जरिए चुनावों को एक ही समय में कराना केवल केंद्र सरकार के पक्ष में होगा और यह संघीय ढांचे को कमजोर करेगा।

विपक्ष ने यह भी कहा कि यह कदम लोकतांत्रिक प्रणाली को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि इससे राज्यों की चुनावी स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा। वे यह दावा कर रहे हैं कि इससे भारतीय राजनीति में एकरूपता आएगी, जो कि हर राज्य की राजनीतिक स्थिति और जरूरतों के अनुरूप नहीं होगी।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” बिल पर संसद में चर्चा

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” बिल को संसद में प्रस्तुत किया गया और इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल गई। इस बिल को पारित करने के लिए 269 सांसदों ने इसका समर्थन किया, जबकि 196 सांसदों ने इसके विरोध में वोट दिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बिल के लिए समर्थन जताया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अधिक गहन विचार के लिए JPC को भेजने की सिफारिश की थी।

अमित शाह ने यह भी कहा कि यह विधेयक देश में चुनावी प्रक्रिया को अधिक सुव्यवस्थित और व्यवस्थित बनाने के लिए है। इसके लागू होने से चुनावों के दौरान होने वाली बर्बादी और संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सकेगा।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” का प्रस्ताव भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव हो सकता है। यदि यह बिल पारित होता है, तो यह देश की चुनावी प्रक्रिया को एक नया मोड़ देगा। हालांकि, विपक्ष की चिंताएँ और आपत्तियाँ भी वाजिब हैं। यह देखा जाना होगा कि संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट के बाद इस बिल को संसद में किस प्रकार पारित किया जाता है। भारतीय लोकतंत्र में इस तरह के महत्वपूर्ण निर्णयों का गहन विचार और व्यापक चर्चा आवश्यक है, ताकि सभी पक्षों के हितों का ध्यान रखा जा सके।

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