Haryana News: गुरुग्राम के एचएसवीपी विभाग में भ्रष्टाचार का बौलबाला, OC देने के नाम पर मची है लुट
हरियाणा की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने के कितने ही दावे कर ले लेकिन भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रही है। जबकि प्रदेश की एसीबी आए दिन भ्रष्टाचारियों को पड़कर जेल की हवा खिला रही है,फिर भी अधिकारियों में भ्रष्टाचार की लत दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है।

सत्य ख़बर,गुरूग्राम, सतीश भारद्वाज : हरियाणा की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने के कितने ही दावे कर ले लेकिन भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रही है। जबकि प्रदेश की एसीबी आए दिन भ्रष्टाचारियों को पड़कर जेल की हवा खिला रही है,फिर भी अधिकारियों में भ्रष्टाचार की लत दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। वैसे तो सरकार के अधिकतर विभागों में फैले भ्रष्टाचार के मामले आए दिन उजागर हो रहे हैं।
वहीं दबंग रसूखदार अधिकारियों के खिलाफ शिकायत करने के बाद भी कार्रवाई न होने से भ्रष्टाचारियों के दिनों दिन होंसले बढ़ रहे हैं। ऐसा एक भ्रष्टाचार का मामला एचएसवीपी टू का सामने आया है जिसमें सीट पर बैठे अधिकारी ने मोटा लेनदेन कर सभी नियम व कानून को ताक पर रखकर आधे अधूरे मकान को ओसी दे दी है। जिसकी शिकायत भी प्रदेश के आला अधिकारियों के कानों तक भी पहुंच चुकी है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संपदा अधिकारी टू कार्यालय में तैनात कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से सैक्टर 52 के प्लाट नम्बर 5पी व 6 पी गेस्ट हाऊस (होटल) गलत तरीके से बनाया गया है, जिसमें कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने बड़ी सिफारिश व दबाव में आकर कंप्लीशन पार्टी को ग़लत तरीके से दे दिया। जिसमें सभी वेंटीलेशन बन्द कर दिए गए हैं। तथा आगे के जो नियमों के अनुसार जो छज्जे छोड़े जाते हैं, वह भी कवर कर लिए गए।
इससे पहले भी इस गेस्ट हाऊस की फाईल ओसी के लिए जेई के पास आई थी, जिसमें एक जेई ने गलत निमार्ण करने पर नोटिस भी जारी किया था। क्योंकि कि उपरोक्त दोनों प्लाट को अलग अलग ना करके एक ही दिवार से बनाया गया है,जिसके बीच में कोई दिवार भी नहीं बनाई गई है।
क्या कहते हैं अधिकारी
जब इस मामले पर हक विभाग के एसडीओ सर्वे टू ज्ञानचंद सैनी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि योगेश के से इस बार में पता करो वही कुछ बता सकते हैं, मेरी जानकारी में ऐसा कोई मामला नहीं आया है आएगा तो अवश्य कार्रवाई की जाएगी। वहीं क्षेत्र के के योगेश से फोन पर बात की गई तो उन्होंने भी कोई स्पष्ट संतोषजनक जवाब नहीं दिया।
जिससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उपरोक्त मामले में कुछ ना कुछ तो अवश्य हुआ है अब देखते हैं कि अधिकारी इस पर कितना संकल्प लेते हैं मामले में लिपापोती कर दबा देते हैं।