सत्यखबर संपादकीय
हिसार की सड़कों पर कल दिन भर किसान आंदोलन की काली छाया देखने को मिली। खासतौर पर सेक्टर नौ ग्यारह से लेकर फब्बारा चौक तक । दिन भर पुलिस व आंदोलनकारी किसानों के बीच एक युद्ध की स्थिति बनी रही जिसमें दोनों तरफ से लोग घायल भी हुए और दावे भी किये गये कि पहल किसने की और जवाब किसने दिया । जो भी हो यह स्थिति बहुत खेदजनक है । चाहे दिल्ली का कोई बाॅर्डर हो या फिर हिसार का सेक्टर नौ ग्यारह , कोई फर्क नहीं अलबत्ता।
मामला तो एक अस्थायी अस्पताल के उद्घाटन का था । जिंदल माॅडर्न स्कूल की ओर से पांच सौ बेड का अस्थायी अस्पताल कोरोना से लड़ने के लिए बनाया गया जिसका नाम सुन कर सभी हैरान हो गये -देवीलाल संजीवनी अस्पताल । आखिर जिंदल माॅडर्न स्कूल और जिंदल परिवार की पेशकश और नाम देवीलाल के नाम पर । लोगों को बड़ी हैरानी हो रही है । सबकी नज़रें सवाल पूछती उठ रही हैं जिंदल परिवार की ओर कि आखिर या इलाही, ये माजरा क्या है ? कोई कोई तो इसे मज़ाक में ऐसे भी कह रहा है जैसे आम भाषा में कहा जाता है -माल मालिकों का , मशहूरी कम्पनी की ।
हालांकि दोनों आदरणीय व्यक्तित्व हैं हरियाणा की राजनीति में । चौ देवीलाल ने अपनी राजनीति से देश के उपप्रधानमंत्री बनने तक का सफर तय किया और विपक्ष को एकजुट करने का श्रेय भी उनको जाता है जनता दल के गठन में । साधारण आदमी की राजनीति में भागीदारी की शुरूआत करने वालों में चौ देवीलाल एक मुख्य स्तम्भ रहे और उनकी कार्य शैली को बहुत से राजनेताओं ने अपनाने की कोशिश की । राह चलते सरकारी काफिला रोक कर आम आदमी से बतिया कर सुख दुख पूछना , यह कला उनमें ही थी । एक रुपये और एक वोट से कांग्रेस को हिला कर रख दिया था जलयुद्ध के बाद ।
दूसरी ओर बाबू जी के नाम से लोकप्रिय ओम प्रकाश जिंदल के भी बहुत निकट रहने का अवसर मिला और उन्होंने बताया था कि कैसे वे कोलकाता गये थे व्यापार करने । एक धर्मशाला में रुके और जब खाने की थाली आई तो उस पर लिखा पढ़ा-मेड इन इंग्लैंड । बस । यहीं से माथा ठनक गया कि मेड इन इंडिया क्यों नहीं? लौट आए हिसार और जिंदल चौक पर पहली फैक्ट्री लगाई बाल्टियां बनाने की और लोगों ने उन्हें खुद बाल्टियां कूटते बनाते देखा । वे तो चुनाव में यह भी कहा करते थे कि कोई उन्हें निरा बनिया ही न समझे वे जाट के बराबर हल चला सकते हैं और कोई भी कम्पीटिशन कर ले आकर खेत में । और ज्यादा खुशी में कह देते कि यदि हवाई जहाज की सैर नहीं की तो आ जाना वो भी अपने जहाज पे करवा दूंगा । स्टीलमैन में बहुत दम था और वे उतने ही कोमल दिल वाले भी थे । एक बार उनके साथ मैं सूर्यनगर फाटक में एक जन सभा में गया था । बरसात आने वाली थी और चारों ओर कीचड़, मक्खी और मच्छर का प्रकोप । जब वे भाषण देकर आए तो वापसी पर मैंने कहा कि भाषण अपनी जगह । आप इनकी आने वाली बीमारी का प्रबंध करो तो ये लोग आपको प्यार करेंगे।
-कैसे ?
-इनके लिए मेडिकल कैंप लगवा कर ।
-कहां से ?
-अरे । आपके जिंदल अस्पताल और अग्रोहा मेडिकल अस्पताल के डाॅक्टर्ज किस दिन काम आएंगे?
-बात तो पते की कही ।
और जिंदल गेस्ट हाउस जाते ही विपिन शर्मा और भूपेंदर गंगवा को बुला कर बता दिया कि भारती पत्रकार जो कह रहा है उसके मुताबिक सूर्यनगर में आने वाले रविवार को मेडिकल कैम्प लगवाओ और भारती को बुला लेना । इस तरह रविवार को पहले मेडिकल कैम्प लगवाने शुरू किये और फिर मेडिकल वैन ही चलवा दी । ऐसे थे आइडिया कैश करने वाले दोनों नेता । सरल और संवेदनशील । फिर नामकरण क्यों ऐसा जिस पर लोग आश्चर्यचकित रह गये ? जिंदल परिवार ने यदि खुशी से इसे स्वीकार किया तो बहुत सुखद संकेत और यदि कोई दबाव में आकर फैसला किया तो कभी न कभी बात निकलेगी और दूर तलक जायेगी । खैर दोनों को नमन् ।
अब बात मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के इस अस्पताल के उद्घाटन की । सभी कह रहे हैं कि यदि मुख्यमंत्री चाहते तो चंडीगढ़ बैठे ही इसका उद्घाटन कर सकते थे जैसे अन्य कार्यक्रमों का उद्घाटन करते हैं । न तो नियमों का उल्लंघन होता और न हिसार की सड़कों पर किसान आंदोलन की काली छाया पड़ती। न पुलिस किसानों के बीच टकराव होता । न ज़िंदगी अस्त व्यस्त होती कुछ घंटों के लिए । पर हो चुका सब कुछ ।
नियम , कायदे कानून पर किसान दोषी और हर बार की तरह नेता बरी । यह सब क्यों ? नेता ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें कि जनता उस पर चलने को फख्र समझे । जैसे लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था-जय जवान, जय किसान और एक दिन सोमवार का व्रत। सबने हंसी खुशी स्वीकार किया । कोई कानून नहीं बनाया था । आत्मा से माना । ऐसा दम हो आपकी आवाज़ में ।
कहा जा रहा है कि क्या भरोसा था कि किसान अस्पताल पर आ हंगामा कर देते । अरे , बार बार यह बात आ रही है किसानों की ओर से कि विरोध मुख्यमंत्री का है , अस्पताल का नहीं या कोविड से लड़ने के तरीकों से नहीं । चौ वीरेंद्र सिंह फिर कह रहे हैं कि सरकार किसानो
के साथ बैठ कर मसला सुलझाया और जवाब आ रहा है कि पहले सांसद बेटे से इस्तीफ दिलवायें ।
शुक्र है , शाम तक सरकार ने अपनी नीति बदली और पुलिस व किसान नेताओं के बीच समझौता हो गया। सभी रिहा कर दिये गये और हिसार कुछ दिन तक अस्त व्यस्त रहने से बच गया।
सबको सन्मति दे भगवान्
लेखक
कमलेश भारतीय
9416947075
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