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कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न के जरिए PM की बड़ी छलांग, जदयू और राजद में बेचैनी

सत्य खबर/नई दिल्ली:

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, समाजवादी नेता और पिछड़े वर्ग में गहरी पकड़ रखने वाले कर्पूरी ठाकुर को मोदी सरकार ने भारत रत्न देने का ऐलान किया है. मोदी सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को 2024 के राजनीतिक युद्ध से पहले एक बड़ा राजनीतिक दांव माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले ही अयोध्या के भव्य मंदिर में भगवान राम लला की प्राण प्रतिष्ठा कर बड़ा हिंदुत्व कार्ड खेला था। ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा कर एक बड़ा कदम पीछे खींच लिया है. कमंडल के बाद मंडल की इस राजनीति ने विपक्षी दलों में भी खलबली मचा दी है.

दिवंगत कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती की पूर्व संध्या पर उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा से बिहार की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों जेडीयू और राजद में बेचैनी है. आज पटना में कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रमों से पहले पीएम मोदी ने इन दोनों पार्टियों से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है. आज दोनों पार्टियां कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग दोहराने की तैयारी में थीं, लेकिन अब मांग करना तो दूर दोनों पार्टियों को मोदी सरकार के प्रति आभार जताना होगा.

सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाले नेता

बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक न्याय की लौ जलाने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है. एक साधारण नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने जीवनभर कांग्रेस विरोधी राजनीति की और बड़ा राजनीतिक मुकाम हासिल किया। बिहार में मैट्रिक तक निःशुल्क शिक्षा पाने वाले कर्पूरी ठाकुर ने जीवन भर समाज के दबे-कुचले लोगों के हितों के लिए काम किया।

उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक के लिए कई ऐसे काम किये, जिससे बिहार की राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन आया. इससे कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक शक्ति काफी बढ़ गयी और वे बिहार की राजनीति में समाजवाद का चेहरा बन गये.

कर्पूरी नीतीश और लालू दोनों के गुरु थे

बिहार की राजनीति के सबसे बड़े दिग्गज माने जाने वाले दोनों नेताओं नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने राजनीति का ककहरा कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सीखा था. दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उनका पूरा जीवन सादगी से भरा रहा और उनकी सादगी के किस्से आज भी बिहार की राजनीति में मशहूर हैं.

मंडल आयोग से पहले भी जब वे मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया था. ऐसे में उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा बिहार की राजनीति में बड़ा असर डालने वाला कदम साबित हो सकती है.

मोदी के इस कदम से दोनों खेमों में खलबली मच गई है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सियासी कदम से नीतीश और लालू दोनों खेमों में खलबली मच गई है. अब तक पिछड़ेपन का खेल खेलते हुए ये दोनों नेता बिहार की राजनीति में काफी सफल रहे हैं. जातीय जनगणना के बाद नीतीश कुमार ने पिछड़े समाज का नेतृत्व करने का झंडा बुलंद करने की कवायद शुरू कर दी थी.

इससे बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन को 2024 की सियासी जंग में बड़ी जीत की उम्मीद थी, लेकिन पीएम मोदी के सियासी कदम ने इस राह में रोड़ा अटका दिया है. इसे पीएम मोदी और बीजेपी का बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है क्योंकि इससे नीतीश और लालू दोनों की राजनीति पर बड़ा असर पड़ना तय है.

बिहार की राजनीति में कर्पूरी एक बड़ा फैक्टर हैं

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु 1988 में हो गई, लेकिन इतने साल बाद भी वह बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं. गौर करने वाली बात यह भी है कि बिहार में पिछड़ों और अति पिछड़ों की आबादी करीब 52 फीसदी है.

पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के लिए सभी राजनीतिक दल कर्पूरी ठाकुर के नाम का इस्तेमाल करते रहे हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भी अनायास अपने घोषणा पत्र में कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र खोलने की घोषणा नहीं की थी. इसके पीछे भी सोची समझी राजनीति थी.

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