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Caste census: जाति जनगणना से किसे लाभ होगा और किसे नुकसान? जानें यहाँ

Caste census: जाति जनगणना का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चुका है। कांग्रेस, आरजेडी और एसपी जैसी कई पार्टियाँ लंबे समय से सरकार से जाति जनगणना की मांग कर रही हैं। हालांकि, अब तक मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि जाति जनगणना से किसे लाभ होगा और किसे नुकसान हो सकता है। आइए जानें इस मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क दिए जा रहे हैं।

Caste census: जाति जनगणना से किसे लाभ होगा और किसे नुकसान? जानें यहाँ

जाति जनगणना का इतिहास क्या कहता है?

दरअसल, भारत में जनगणना की शुरुआत 1872 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। 1931 तक जाति से संबंधित जानकारी भी भारत की जनगणना में दर्ज की जाती थी। हालांकि, स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना 1951 में हुई, जिसमें केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के वर्गीकरण की जानकारी दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून के अनुसार जाति जनगणना नहीं की जा सकती।

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2011 में जाति जनगणना

1980 के दशक में भारत में कई राजनीतिक पार्टियाँ जाति आधारित राजनीति पर केंद्रित थीं। इस दौरान जाति आरक्षण को लेकर कई अभियान भी चलाए गए। इसके बाद, 2010 में यूपीए-2 के शासनकाल में सांसदों ने जाति जनगणना की मांग की। 2011 में समाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराई गई, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। इसका कारण यह बताया गया कि जाति डेटा में कई discrepancies थीं। जुलाई 2022 में, केंद्रीय सरकार ने संसद में इस बारे में जानकारी दी कि 2011 की जाति जनगणना के आंकड़े जारी करने की कोई योजना नहीं है।

वर्तमान स्थिति क्या है?

वास्तव में, कांग्रेस, एसपी, आरजेडी, और डीएमके जैसी कई विपक्षी पार्टियों ने लोकसभा चुनाव 2024 में जाति जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाया। हालांकि, एक बार फिर से भाजपा-नीत एनडीए गठबंधन सरकार केंद्र में बनी, लेकिन इस मुद्दे का चुनाव परिणाम पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। 2019 के मुकाबले विपक्षी पार्टियों की सीटों में बड़ा इज़ाफा देखा गया। मोदी सरकार के सहयोगी नीतीश कुमार की जेडीयू और चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) भी जाति जनगणना के समर्थन में हैं।

जाति जनगणना से किसे लाभ होगा?

कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियाँ जाति जनगणना की मांग कर रही हैं। कांग्रेस को छोड़ दें, तो भारत गठबंधन में कई ऐसी पार्टियाँ हैं जिनकी राजनीति जाति पर केंद्रित है। ऐसे में इन पार्टियों का ध्यान जाति जनगणना के आधार पर ओबीसी वोट बैंक को आकर्षित करने पर है। ओबीसी वोटर मोदी सरकार की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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जाति जनगणना से किसे नुकसान होगा?

पिछले दशक में, भाजपा की राजनीति का आधार हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद रहा है। हिंदू धर्म में ओबीसी यानी पिछड़ी जातियों की बड़ी संख्या है। इसलिए कांग्रेस की जाति आधारित जनगणना की मांग को भाजपा द्वारा हिंदुत्व के मुद्दे पर एक काउंटर अटैक के रूप में देखा जा रहा है। अगर विपक्ष इस मुद्दे पर ओबीसी जातियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, तो भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक प्रभावित हो सकता है।

जाति जनगणना के पक्ष में तर्क

जाति जनगणना के पक्ष में दिए जा रहे तर्कों में से एक यह है कि इससे देश में वंचित वर्गों की पहचान की जा सकेगी। यह पता चलेगा कि अब तक की गई कोशिशें कितनी प्रभावी रही हैं। इसके बाद, कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से इन्हें मुख्यधारा में लाया जा सकता है और नीति निर्माण में शामिल किया जा सकता है। दूसरा तर्क यह है कि जाति जनगणना के माध्यम से समाज में फैली असमानताओं को दूर किया जा सकता है। तीसरा तर्क यह है कि जनसंख्या के हिस्से के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।

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