United Nations को विदेश मंत्री जयशंकर की आलोचना, “यह एक पुरानी कंपनी जैसी हो गई है”
विदेश मंत्री S. Jaishankar ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए इसे एक पुरानी कंपनी के रूप में वर्णित किया, जो वर्तमान बाजार की गति के साथ कदम नहीं मिला पा रही है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अब उतना प्रासंगिक नहीं रहा जितना इसे होना चाहिए था। रविवार को कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन में दिए गए अपने भाषण में विदेश मंत्री ने यह भी इशारा किया कि इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने खुद को केवल एक स्थान भर बनाए रखा है, लेकिन आज के वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिए इसकी भूमिका कमजोर होती जा रही है।
भारत हमेशा से सुधार का पक्षधर रहा है
- Jaishankar ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि यद्यपि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था अभी भी अस्तित्व में है, लेकिन इसका कामकाज उतना प्रभावी नहीं है। उन्होंने कहा कि जब इस संस्था द्वारा वैश्विक मुद्दों पर निर्णायक कार्रवाई नहीं होती, तो देशों को अपनी अलग राह चुननी पड़ती है। भारत ने हमेशा बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की वकालत की है, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार का समर्थन किया है। यह एक लंबे समय से उठाया गया मुद्दा है, और भारत इस बात पर जोर देता रहा है कि वैश्विक शासन प्रणाली में समकालीन परिवर्तनों के आधार पर सुधार की आवश्यकता है।
संयुक्त राष्ट्र अब वैश्विक समस्याओं का एकमात्र समाधान नहीं है
विदेश मंत्री ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि आज की तारीख में संयुक्त राष्ट्र वैश्विक समस्याओं को हल करने का एकमात्र मार्ग नहीं रह गया है। उन्होंने कोविड-19 महामारी का उदाहरण दिया और सवाल उठाया कि इस वैश्विक संकट के दौरान संयुक्त राष्ट्र ने क्या किया? उन्होंने कहा कि इस दौरान संयुक्त राष्ट्र की भूमिका बहुत कम दिखाई दी, और देशों ने अपनी-अपनी पहल जैसे COVAX के जरिए खुद ही समाधान निकाले। COVAX की पहल संयुक्त राष्ट्र के ढांचे से बाहर कुछ देशों के समूह द्वारा तैयार की गई थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अब अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए अन्य रास्ते भी खोजे जा रहे हैं।
महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक संकटों में संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता
Jaishankar ने यूक्रेन और मध्य पूर्व में जारी दो बड़े संघर्षों का भी जिक्र किया और सवाल किया कि इन गंभीर संकटों के दौरान संयुक्त राष्ट्र की क्या भूमिका रही है? उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र इन संघर्षों में एक मूकदर्शक बनकर रह गया है। जब बड़े भू-राजनीतिक संकटों से निपटने की बात आती है, तो यह संस्था कहीं न कहीं निष्क्रिय हो जाती है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व बना रहेगा, लेकिन अब तेजी से एक नया क्षेत्र बन रहा है जो सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है और यह गैर-संयुक्त राष्ट्र गठजोड़ों का क्षेत्र है। इसका मतलब यह है कि अब देश संयुक्त राष्ट्र के बाहर भी गठबंधन बना रहे हैं और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए नये मार्ग खोज रहे हैं।
बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता
- Jaishankar ने कहा कि दुनिया के कई बड़े मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र की धीमी प्रतिक्रिया इस बात का प्रमाण है कि बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की तत्काल आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र, जो कि वैश्विक शासन का प्रतीक है, अब नए दौर की चुनौतियों का सामना करने में उतना सक्षम नहीं रह गया है। इसी कारण से, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पुनर्गठन की आवश्यकता पर जोर दिया है ताकि इसे अधिक समावेशी और प्रभावी बनाया जा सके।
भारत का यह मत है कि आज की दुनिया की जटिलताओं और बहु-आयामी समस्याओं को हल करने के लिए केवल कुछ देशों के समूह पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। इसके बजाय, इसे अधिक व्यापक, प्रासंगिक और प्रभावशाली बनाना होगा ताकि यह तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में बेहतर ढंग से काम कर सके।
कोविड-19 महामारी में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका
कोविड-19 महामारी ने संयुक्त राष्ट्र के कमजोर पड़ते प्रभाव को उजागर किया। जब पूरी दुनिया महामारी के संकट से जूझ रही थी, तब संयुक्त राष्ट्र ने इस दिशा में कोई प्रमुख भूमिका नहीं निभाई। इसके बजाय, देशों ने अपने स्तर पर या छोटे-छोटे गठजोड़ बनाकर समस्या का समाधान किया। COVAX जैसी पहल इसका उदाहरण है, जो देशों के समूह द्वारा संयुक्त राष्ट्र के ढांचे से बाहर बनाई गई थी। यह इस बात का संकेत है कि अब देश वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि अपने स्वयं के समाधान तैयार कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार: समय की मांग
विदेश मंत्री S. Jaishankar ने अपने भाषण में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह समय की मांग है कि इस महत्वपूर्ण संस्था का विस्तार किया जाए और इसे अधिक समावेशी बनाया जाए। वर्तमान में, सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य हैं, जिनके पास वीटो का अधिकार है। लेकिन यह ढांचा दुनिया के वर्तमान परिदृश्य को सही तरीके से प्रतिबिंबित नहीं करता। दुनिया में कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं और महत्वपूर्ण देश हैं, जो कि वैश्विक निर्णयों में अधिक प्रभावी भूमिका निभाने के हकदार हैं।
बहुपक्षीय संस्थानों के विकल्प
Jaishankar ने यह भी कहा कि अब देश बहुपक्षीय संस्थानों के साथ-साथ अन्य विकल्पों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि अब वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सिर्फ संयुक्त राष्ट्र पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता। इसके अलावा, अन्य गठजोड़ और गठबंधन भी बन रहे हैं जो विभिन्न वैश्विक समस्याओं के समाधान की दिशा में काम कर रहे हैं।