पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय के Professor GN Saibaba का निधन, नक्सल मामलों में थे आरोपी
पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के Professor GN Saibaba का शनिवार रात एक सरकारी अस्पताल में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से गॉल ब्लैडर संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। 50 वर्षीय जीएन साईबाबा को मार्च में बॉम्बे हाई कोर्ट ने माओवादी संगठनों से कथित संबंधों के मामले में बरी किया था। इससे पहले उन्हें 10 साल तक जेल में रहना पड़ा था।
साईबाबा की गिरफ्तारी और आरोप
जीएन साईबाबा को महाराष्ट्र पुलिस ने 2014 में माओवादी लिंक के संदेह में गिरफ्तार किया था। इसके बाद उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज से निलंबित कर दिया गया था, जहाँ वह अंग्रेजी के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे। साईबाबा पर नक्सलियों के साथ संबंध रखने का आरोप था और उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था। हालांकि, 10 साल की जेल के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने मार्च 2023 में उन्हें बरी कर दिया था। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा था।
जीएन साईबाबा के अंतिम दिन
साईबाबा को 20 दिन पहले निज़ाम्स इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (NIMS) में भर्ती कराया गया था। वह लंबे समय से बीमार थे और विभिन्न शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे थे। शनिवार की रात लगभग नौ बजे, उन्होंने अंतिम सांस ली। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार, साईबाबा का स्वास्थ्य काफी खराब था और उन्हें समय पर उचित चिकित्सा सुविधा नहीं मिल सकी थी।
न्यायिक प्रक्रिया और साईबाबा की रिहाई
जीएन साईबाबा को बरी करने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले ने अभियोजन पक्ष की असफलता को उजागर किया। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन ने उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत प्रस्तुत नहीं किए थे। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ UAPA (अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत मंजूरी प्राप्त करना भी अवैध था, और इस आधार पर साईबाबा और अन्य पांच अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था।
साईबाबा को बरी किए जाने के बाद वह नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा हुए। वह व्हीलचेयर पर बैठे हुए जेल से बाहर आए थे, क्योंकि उनके शरीर के बाईं ओर का हिस्सा पैरालिसिस से प्रभावित था।
साईबाबा का जेल में संघर्ष
साईबाबा ने जेल में अपने समय के दौरान कई बार आरोप लगाए कि उन्हें चिकित्सा सुविधाओं से वंचित किया गया। उन्होंने अगस्त 2023 में आरोप लगाया था कि नागपुर सेंट्रल जेल में उन्हें 9 महीने तक अस्पताल नहीं ले जाया गया, जबकि उनका बायां हिस्सा पैरालिसिस से प्रभावित था। उन्हें केवल दर्द निवारक दवाएं दी गईं और उनकी गंभीर स्थिति को नजरअंदाज किया गया। साईबाबा ने यह भी आरोप लगाया था कि उन्हें माओवादी संबंधों के झूठे मामले में फंसाया गया था और महाराष्ट्र पुलिस ने उनके अधिकारों का उल्लंघन किया।
दिल्ली से अपहरण और गिरफ्तारी के आरोप
जीएन साईबाबा, जो कि आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे, ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए थे कि उन्हें दिल्ली से अगवा कर गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी उनके घर आए और उन्हें और उनके परिवार को धमकाया। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस बात की चेतावनी दी गई थी कि अगर उन्होंने अपनी आवाज उठाना बंद नहीं किया, तो उन्हें झूठे मामले में फंसा दिया जाएगा। साईबाबा ने यह भी कहा था कि जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था, तब उन्हें व्हीलचेयर से घसीटा गया था, जिसके कारण उनके हाथ में गंभीर चोट लगी थी और इसका असर उनकी तंत्रिका प्रणाली पर भी पड़ा।
महाराष्ट्र पुलिस पर गंभीर आरोप
साईबाबा ने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें उनकी व्हीलचेयर से घसीटकर गिरफ्तार किया था, जिसके कारण उन्हें गंभीर शारीरिक चोटें आईं। उनके हाथ में चोट लगी थी और इस कारण उनकी नसों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। साईबाबा ने अपने पूरे जीवन में समाज और मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई, लेकिन उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को हमेशा निराधार बताया।
साईबाबा का सामाजिक योगदान और मृत्यु पर शोक
जीएन साईबाबा का समाज और शिक्षा क्षेत्र में अहम योगदान रहा। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाते हुए कई छात्रों को प्रेरित किया और उनकी शिक्षण विधि ने उन्हें बहुत लोकप्रिय बनाया। हालांकि, माओवादी संबंधों के आरोपों ने उनके करियर और जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित किया। साईबाबा की मृत्यु पर कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने शोक व्यक्त किया।
सीपीआई(एम) के विधायक के संबासिवा राव ने साईबाबा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि यह समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने साईबाबा के संघर्ष और उनके जीवन के अंतिम दिनों में जो दर्द सहा, उसे भी याद किया।