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Supreme Court का महत्वपूर्ण निर्णय, आउटसोर्स कर्मचारियों के अनुभव को न मानना समानता और न्याय के खिलाफ

Supreme Court ने कहा कि सरकार के किसी विभाग में आउटसोर्स कर्मचारियों के कार्य अनुभव को न मानना समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि संविधान का मूल उद्देश्य सामाजिक न्याय है, और जब कभी भी शक्तिशाली और निर्बल वर्ग के बीच संघर्ष हो, तो अदालतों को कमजोर वर्ग और गरीबों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का यह बयान न्यायमूर्ति दीपंकर दत्ता और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने दिया, जब उन्होंने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ अपील की गई थी। उच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञापन के अनुसार, उम्मीदवार मोनिका को क्लर्क के पद पर नियुक्ति से पहले 0.5 अंक अनुभव के लिए दिए जाएं।

Supreme Court का महत्वपूर्ण निर्णय, आउटसोर्स कर्मचारियों के अनुभव को न मानना समानता और न्याय के खिलाफ

विश्वविद्यालय का तर्क

विश्वविद्यालय ने तर्क दिया था कि चूंकि मोनिका को आउटसोर्स नीति के तहत नियुक्त किया गया था और उसे किसी नियमित या अनुमोदित क्लर्क के पद पर नियुक्त नहीं किया गया था, इसलिए उसका अनुभव उस पद के लिए आवश्यक अनुभव के बराबर नहीं माना जा सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नकारते हुए कहा कि अगर किसी उम्मीदवार को केवल इसलिए अंक नहीं दिए जाते क्योंकि उसने अनुमोदित पद पर नहीं बल्कि आउटसोर्स पर काम किया, तो यह संविधान की समानता और सामाजिक न्याय की जिम्मेदारी के खिलाफ होगा।

अदालत का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उम्मीदवार को अनुभव के लिए अंक न देना अनुचित और अवैध है। न्यायमूर्ति दत्ता और महादेवन ने स्पष्ट रूप से कहा कि आउटसोर्स कर्मचारियों के अनुभव को न मानना उनके अधिकारों का उल्लंघन है, खासकर जब वे उसी कार्य के लिए नियुक्त किए गए हों। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का भेदभाव न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि यह सार्वजनिक कल्याण और सामाजिक न्याय की अवधारणा के खिलाफ भी है, जिसे संविधान में निहित किया गया है।

समानता और सामाजिक न्याय का संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के प्रस्तावना और अनुच्छेद-38 का हवाला देते हुए यह भी कहा कि राज्य निकायों की जिम्मेदारी है कि वे सामाजिक व्यवस्था को इस तरह से संरक्षित करें, जिससे सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा मिले और अवसरों में असमानताएं समाप्त हों। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक चयन प्रक्रिया का वास्तविक उद्देश्य यह होना चाहिए कि योग्य उम्मीदवारों को, जिनके पास अनुभव और अन्य मानदंडों के अनुसार योग्यताएं हों, सही तरीके से चयनित किया जाए।

अदालत का संदेश

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले के माध्यम से यह संदेश दिया है कि आउटसोर्स कर्मचारियों का अनुभव, भले ही वह किसी नियमित पद पर न हो, उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि किसी अन्य उम्मीदवार का अनुभव। यह फैसला उन उम्मीदवारों के लिए एक बड़ी राहत है जो आउटसोर्स पद्धति के तहत काम करते हैं, और जिन्हें समान अवसर और न्याय की उम्मीद होती है।

कमजोर वर्ग की रक्षा में न्यायपालिका का कर्तव्य

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह कमजोर वर्ग की रक्षा करे और उन्हें समान अवसर सुनिश्चित करने में मदद करे। जब कभी भी किसी चयन प्रक्रिया में असमानता का सामना करना पड़े, तो अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे वर्गों के अधिकारों का उल्लंघन न हो। अदालत ने यह भी कहा कि जब भी किसी चयन प्रक्रिया में दो पक्ष होते हैं, एक शक्तिशाली और एक कमजोर, तो न्यायपालिका को हमेशा कमजोर पक्ष के पक्ष में निर्णय लेना चाहिए।

यह निर्णय न केवल आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए, बल्कि पूरे देश के समाज में समानता और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चयन प्रक्रिया में अनुभव को नजरअंदाज करना, खासकर जब वह अनुभव समान कार्य के लिए हो, अनुचित है। यह फैसला न केवल इस मामले में शामिल उम्मीदवारों के लिए, बल्कि उन लाखों अन्य कर्मचारियों के लिए भी एक सकारात्मक संदेश है जो आउटसोर्स के तहत काम कर रहे हैं और अपने अनुभव को मान्यता मिलने की उम्मीद कर रहे हैं।

इस निर्णय से यह भी साफ होता है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय की मूल भावना को बनाए रखने के लिए तत्पर है। सरकार और संबंधित संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारियों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव न हो और हर एक को समान अवसर दिए जाएं।

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