Kiran Chaudhary fight with own people in congress
पॉलिटिकल डेस्क सत्य खबर। हरियाणा का सियासी मिजाज बड़ा ही आक्रामक है। यहां राजनीतिक कशमकश और हलचल जारी रहती है। चुनाव हो या न हों, लेकिन चुनावी मेले का आलम रहता ही है। इन दिनों हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस सबसे अधिक सुर्खियो में है और कांगे्रस में सबसे अधिक चर्चा में हैं किरण चौधरी। किरण चौधरी को लेकर लगातार खबरें चर्चा में हैं। छह नवंबर को आदमपुर के चुनावी नतीजे आने थे। चुनावी नतीजों के बीच हरियाणा में छह नवंबर को सुबह-सवेरे ही खबर वायरल होती है किरण चौधरी के बारे। खबर थी किरण केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने वाली हैं, भाजपा में जा रही हैं। किरण चौधरी ने इस खबर को फेक बताते हुए विरोधियों की चाल बताया। वैसे किरण चौधरी कांग्रेस की कशमकश में एक दमदार लीडर के रूप में जानी जाती हैं।Kiran Chaudhary fight with own people in congress
अपने बेबाक कार्यशैली को लेकर किरण चौधरी का अपना एक अलग ही रूतबा है और उनके पास अपने समर्थकों की एक लंबी फेहरिस्त है। कांग्रेस इस समय आपसी खींचतान शिकार है। पिछले करीब आठ वर्ष से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। एक के बाद एक कांग्रेस की विकेट लगातार गिर रही हैं। कांगे्रस की इन विकेटों के गिरने का कारण कांग्रेस की आपसी खींचतान ही है। अभी कुछ समय पहले ही कुलदीप बिश्रोई ने कांग्रेस को अलविदा कहा तो इससे पहले राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी बीरेंद्र सिंह व अशोक तंवर जैसे चेहरे कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं। यही वजह है कि किरण चौधरी को लेकर अफवाहों का बाजार थम नहीं रहा है। दरअसल किरण भी सोनिया गांधी दरबार में अपनी पैठ रखती हैं। खुद किरण चौधरी के ससुर चौधरी बंसीलाल हरियाणा के चार बार सीएम रहे हैं और किरण पांच बार एमएलए बन चुकी हैं।
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अभी इसी साल अप्रैल में हुए कांग्रेस में बड़े बदलाव के क्रम में किरण चौधरी की बेटी और पूर्व सांसद श्रुति चौधरी को भी प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। ऐसे में राजनीतिक पंडितों का मानना है कि किरण चौधरी कांग्रेस में रहकर ही राजनीति करेंगी। किरण चौधरी के गृह क्षेत्र भिवानी से धर्मवीर सांसद हैं। भाजपा के धर्मवीर से किरण चौधरी का हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। इसके अलावा कांग्रेस में भिवानी में किरण चौधरी के रूतबे और कद का बड़ा लीडर नहीं है। ऐसे में किरण कांग्रेस में ही अपना भविष्य सेफ मानती हैं। यही वजह है कि किरण चौधरी लगातार कांग्रेस छोडऩे की खबरों का जोरदार विरोध कर रही हैं। गौरतलब है कि करण चौधरी साल 1988 में पहली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिल्ली कैंट से विधायक चुनी गईं।
वे दिल्ली विधानसभा की डिप्टी स्पीकर भी रहीं। 2005 में तोशाम का उपचुनाव जीतकर पहली बार हरियाणा विधानसभा की सदस्य भी बनीं। इसके बाद वे लगातार 2009, 2014 और 2019 में हरियाणा के तोशाम सीट से विधायक बनने में सफल रहीं। वे 2005 से लेकर 2014 तक कांग्रेस की सरकार में वन, पर्यावरण, पर्यटन और खेल मंत्री के अलावा जनस्वास्थ्य और आबकारी मंत्री भी रहीें। दरअसल किरण चौधरी साल 1986 में सक्रिय सियासत में आ गईं। 1986 में उन्हें अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। वे दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव सहित कई पदों पर रहीं।Kiran Chaudhary fight with own people in congress
किरण चौधरी का जन्म 5 जून 1955 को उत्तरप्रदेश के फैजाबाद के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके पिता आत्मा ङ्क्षसह सेना में ब्रिगेडियर रहीं। मेरठ के कैंब्रीज सोफिया हाई स्कूल से किरण ने अपनी स्कूङ्क्षलग करने के बाद रोहतक के राजकीय कालेज से ग्रेजुएट किया। भिवानी से वकालत की डिग्री ली। सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। खास बात यह है कि दिल्ली विधानसभा की कार्यवाहक अध्यक्ष रहते हुए किरण चौधरी ने एक दर्जन से अधिक बाकमाल बिल दिल्ली विधानसभा में पारित किए। तब उन्हें तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी ने बेस्ट विधायिका के अवार्ड से सम्मानित किया। समाजसेवा में अहम योगदान के लिए किरण को प्रिर्यदर्शनी अवार्ड भी दिया गया।
किरण चौधरी ने अपने राजनीतिक कैरियर में सदा ही आंखों के लिए लड़ाई लड़ी है यही वजह है हरियाणा की राजनीति में भी वह अपने हक के लिए अड़ी बैठी है।
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