Stories of becoming Haryana
सत्यखबर, चंडीगढ़।
1 नवंबर 1966 को हरियाणा का गठन हुआ, लेकिन उससे पहले इस पर राजनीति हो रही थी. हरियाणा की मांग आजादी से पहले से ही चली आ रही थी. लेकिन हरियाणा से बड़ी अलग पंजाब की मांग थी. 1930 के दशक में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल भाषाई आधा पर राज्य बनाने पर सहमत थे. लेकिन आजादी आते-आते वो भाषाई आधार पर राज्य बनाने का विरोध करने लगे क्योंकि भाषाई आधार पर राज्यों की मांग आजादी के वक्त अलगाव पर उतर आई थी. इसलिए वो इसके विपरीत हो गए.Stories of becoming Haryana
अलग हरियाणा के लिए जो लड़ाई लड़ी जा रही थी वैसे तो उसमें बहुत से लोग शामिल थे, लेकिन चौधरी देवी लाल और प्रोफेसर शेर सिंह इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. उस समय हरियाणा के ही कुछ नेता ऐसे भी थे जो अलग हरियाणा के विरोध में थे जिसमें राव बीरेंद्र सिंह और भगवत दयाल शर्मा भी शामिल थे, जो बाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बने. आजादी के बाद जब संयुक्त पंजाब के पुनर्गठन और भारत के कई राज्यों में भाषा के आधार पर अलग प्रदेश की मांग उठी तो एक कमेटी बनाई गई जिसे जेवीपी कमेटी के नाम से जाना गया. इस कमेटी में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया शामिल थे. इस कमेटी ने भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग को ठुकराते हुए कहा कि भाषा सिर्फ जोड़ने वाली शक्ति नहीं है, बल्कि एक दूसरे से अलग करने वाली ताकत भी है. क्योंकि अभी देश के विकास पर ध्यान देना जरूरी है. इसीलिए अभी हर विघटनकारी शक्ति को हतोत्साहित करना जरूरी है.
देश की आजादी के वक्त भाषा के आधार पर किसी राज्य का गठन नहीं हुआ, लेकिन केंद्र का ये निर्णय जल्द ही टूट गया. 15 दिसंबर 1952 को अलग आंध्र राज्य की मांग को लेकर पोट्टी श्रारामुलू की अनशन के दौरान मौत हो गई. जिससे अलग आंध्र की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन उग्र हो गया. सरकार को आंध्र प्रदेश बनाना पड़ा. जब भाषा के आधार पर भारत सरकार ने आंध्र प्रदेश को मंजूरी दे दी तो बाकी राज्यों की मांग भी तेजी से उठने लगी. केंद्र सरकार ने 19 दिसंबर 1953 को एक राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया. जिसे फजल अली आयोग के नाम से भी जाना जाता है. इस आयोग ने सैकड़ों शहरों और कस्बों का दौरा कर हजारों लोगों से बातचीत की. 1956 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. इस आयोग ने भी अलग हरियाणा की मांग नकार दी और कहा कि अगर हरियाणा अलग राज्य बना तो उसके पास विकास के लिए कोई संसाधन नहीं होंगे.
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राज्य पुनर्गठन आयोग ने भले ही हरियाणा की मांग ठुकरा दी थी, लेकिन आंदोलनकारी अभी भी अपनी मांगो पर अड़े हुए थे. जिसे शांत करने के लिए संयुक्त पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री भीमसेन सच्चर ने एक फॉर्मूला दिया. इसी फॉर्मूले को सच्चर फॉर्मूला कहा गया. सच्चर ने अपने फॉर्मूले में हिसार, करनाल, रोहतक, नारायणगढ़, अंबाला और कांगड़ा को हिंदी भाषी क्षेत्र माना. बाकी बचे हिस्से को पंजाबी भाषी, लेकिन दोनों क्षेत्रों की जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया. जब भीमसेन सच्चर संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री थे उस वक्त प्रताप सिंह कैरों वहां के राजस्व मंत्री थे. उन्होंने भूमि उपयोग अधिनियम के तहत अमृतसर और गुरदासपुर के दलित परिवारों को अंबाला और कुरुक्षेत्र में बसा दिया. जिसका इन क्षेत्रों के दलितों ने भारी विरोध किया. इसके बाद अलग हरियाणा की मांग और तेज हो गई.
फजल अली आयोग की रिपोर्ट में हरियाणा की मांग को स्वीकार नहीं किया गया. जिसके विरोध में चौधरी देवी लाल ने संयुक्त पंजाब की विधानसभा में हरियाणवी में बोलना शुरू कर दिया. इसका वहां बैठे सदस्यों ने विरोध किया. इस पर चौधरी देवी लाल ने कहा कि मेरे क्षेत्र की जनता यही भाषा समझती है जिसे आप नहीं समझते. चौधरी देवी लाल के इस भाषण का बड़ा असर हुआ. 1956 में भीमसेन सच्चर के बाद प्रताप सिंह कैरों संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री बने. प्रताप सिंह कैरों पंजाब के बंटवारे के सख्त खिलाफ थे. इसीलिए जब केंद्र सरकार ने पंजाब के पुनर्गठन का प्रस्ताव दिया और कहा कि प्रदेश को हिंदी और पंजाबी भाषा के आधार पर बांटा जाये लेकिन विधानसभा और गवर्नर एक ही रहे. और भाषा के आधार पर विधायकों की अलग-अलग कमेटियां बना दी जायें. इस पर पंजाब सरकार ने कमेटियों का गठन तो कर दिया, लेकिन उनकी शक्तियां बेहद कम कर दीं. इसीलिए केंद्र सरकार का ये फॉर्मूला भी फेल हो गया.Stories of becoming Haryana
हरियाणा से पहले से अलग पंजाब की मांग हो रही थी. जिसका नेतृत्व करते हुए 1960 में मास्टर तारा सिंह ने 48 दिन तक अनशन किया. लेकिन उनकी मांग तब भी पूरी नहीं हुई. अलग हरियाणा की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन का नेतृत्व चौधरी देवी लाल और प्रोफेसर शेर सिंह कर रहे थे. जिसकी वजह से इन नेताओं की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी. लेकिन हिंदी भाषी क्षेत्र के ही कई नेता अलग हरियाणा का विरोध भी कर रहे थे जिनमें हरद्वारी लाल, राव बीरेंद्र सिंह भगवत दयाल शर्मा शामिल थे. दरअसल ये तीनों नेता प्रताप सिंह कैरों के काफी करीबी माने जाते थे इसीलिए ये हरियाणा गठन के विरोध में थे.
पंजाब की मांग को लेकर भी आंदोलन चरम पर था. 1965 में संत फतह सिंह अनशन पर बैठ गए आत्मदाह की धमकी दे दी. इस आंदोलन के दबाव में पंजाब के बंटवारे की मांग जनसंघ को छोड़कर सभी ने मान ली. इसके बाद 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी और उन्होंने पंजाब के बंटवारे को मंजूरी दे दी और 23 अप्रैल 1966 को जेसी शाह के नेतृत्व में एक सीमा आयोग का गठन किया गया. जिसने 31 मई 1966 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी. 3 सितंबर 1966 को तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा में पेश किया. जिसमें कहा गया कि हरियाणा और पंजाब के उच्च न्यायालय, विश्व विद्यालय, बिजली बोर्ड और भंडारण निगम एक ही रहेंगे. इसके अलावा चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी होगी. 7 सितंबर 1966 को पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा से पास हो गया. और 18 सितंबर 1966 को राष्ट्रपति ने इस बिल पर मुहर लगाई. ऐसे 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बन गया
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