शांति की मिसाल बनी शहीद लेफ्टिनेंट विनय की पत्नी, कश्मीरियों के खिलाफ नफरत न फैलाएं

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में कुल 26 लोगों की जान चली गई, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे। इस भयावह हमले में नौसेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल भी शहीद हो गए। लेकिन इस दुख की घड़ी में, उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल ने जो शांति और इंसानियत का संदेश दिया, वह पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है।
हिमांशी नरवाल, जिनकी शादी 16 अप्रैल को ही विनय से हुई थी, पति के साथ हनीमून पर पहलगाम गई थीं। लेकिन नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था। विनय आतंकी हमले में शहीद हो गए। इस असहनीय दुख के बावजूद, हिमांशी ने देशवासियों से एक बेहद अहम और संवेदनशील अपील की है। उन्होंने कहा—
“हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जाएं। हम सिर्फ शांति और न्याय चाहते हैं। जो आतंकवादी इस हमले में शामिल थे, उन्हें सजा मिलनी चाहिए, लेकिन आम लोगों के खिलाफ कोई नफरत न फैले।”
उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देशभर में गुस्से का माहौल है और कई जगहों पर मुसलमानों और कश्मीरियों को निशाना बनाने की बातें हो रही हैं। हिमांशी ने अपने शब्दों से यह स्पष्ट किया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और न ही पूरे समुदाय को दोषी ठहराया जाना चाहिए।
विनय नरवाल हरियाणा के करनाल जिले के रहने वाले थे। उनके पिता सरकारी कर्मचारी हैं, मां गृहिणी हैं और छोटी बहन पढ़ाई कर रही है। विनय के शहीद होने के बाद हरियाणा सरकार ने उनके परिवार को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि नौकरी उसी सदस्य को दी जाएगी, जिसे परिवार चुनेगा।
इस हमले के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आई। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने भी घटना पर दुख जताया और कहा कि कश्मीर मुश्किल दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा—
“हमें नहीं पता कि कल क्या होगा। जिन्होंने यह हमला किया है, उन्हें पकड़ना जरूरी है। लेकिन भारत सरकार द्वारा 50 साल से रह रहे पाकिस्तानी मूल के नागरिकों को जबरन भेजना अमानवीय है।”
फारूक अब्दुल्ला के इस बयान ने नई बहस को जन्म दिया है कि क्या सरकार की प्रतिक्रिया व्यावहारिक और मानवीय है या भावनात्मक प्रतिक्रिया में लिया गया कठोर कदम।
लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की शहादत देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनकी पत्नी हिमांशी का शांति का संदेश देशवासियों के लिए एक प्रेरणा है। जब पीड़ित स्वयं नफरत के खिलाफ खड़ा हो, तो समाज को और भी ज्यादा संवेदनशील और जागरूक होना चाहिए। आतंक के खिलाफ लड़ाई जरूरी है, लेकिन इसे किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ लड़ाई में नहीं बदलना चाहिए।