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Punjab: बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश, राष्ट्रपति से दो हफ्ते में निर्णय का अनुरोध

Punjab के पूर्व मुख्यमंत्री बींता सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति से इसे दो हफ्ते के भीतर विचार करने का आग्रह किया है। 1995 में बींता सिंह की हत्या के मामले में राजोआना को 2007 में मौत की सजा सुनाई गई थी, और अब सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला राष्ट्रपति के पास भेजने के निर्देश दिए हैं, ताकि इसे जल्द से जल्द निपटाया जा सके। इस याचिका की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति से जल्द फैसला लेने का अनुरोध किया

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की बेंच ने राष्ट्रपति सचिव को आदेश दिया कि बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए प्रस्तुत किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को याचिका पर दो हफ्ते के अंदर विचार करना चाहिए। बेंच ने इस दौरान यह भी बताया कि इस मामले को विशेष रूप से सुनवाई के लिए रखा गया था, लेकिन भारत सरकार की तरफ से कोई प्रतिनिधि कोर्ट में पेश नहीं हुआ।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पिछली सुनवाई में यह मामला स्थगित किया गया था, ताकि केंद्र सरकार राष्ट्रपति कार्यालय से यह सुनिश्चित कर सके कि दया याचिका पर कब निर्णय लिया जाएगा। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “चूंकि याचिकाकर्ता मौत की सजा काट रहे हैं, हम निर्देश देते हैं कि सचिव यह याचिका राष्ट्रपति के सामने रखें और उनसे यह अनुरोध करें कि वह इसे आज से दो हफ्ते के भीतर विचार करें।”

Punjab: बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश, राष्ट्रपति से दो हफ्ते में निर्णय का अनुरोध

सुप्रीम कोर्ट ने पहले दया याचिका की सुनवाई में रद्द किया था फैसले का आग्रह

इससे पहले, 25 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, पंजाब सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन से बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर जवाब मांगा था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई, 2023 को बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर फैसला देते हुए उसकी मौत की सजा को कम करने के केंद्र के अनुरोध को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि संबंधित अधिकारी इस दया याचिका पर विचार कर सकते हैं, लेकिन इसे बदलने का कोई उचित कारण नहीं था।

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राजोआना ने 2012 में अपनी दया याचिका दायर की थी, जो कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) द्वारा की गई थी। उन्होंने यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दायर की थी। अब यह याचिका राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजी गई है।

बींता सिंह की हत्या और राजोआना की भूमिका

पूर्व मुख्यमंत्री बींता सिंह की हत्या 31 अगस्त, 1995 को चंडीगढ़ के सचिवालय के बाहर हुई थी। जब बींता सिंह अपनी कार में बैठने जा रहे थे, तभी पंजाब पुलिस के जवान दिलावर सिंह बाब्बर ने वहां एक बम विस्फोट कर दिया, जिसमें बींता सिंह समेत 17 लोगों की जान चली गई। बलवंत सिंह राजोआना को 2007 में बींता सिंह की हत्या में उनकी भूमिका के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। राजोआना पंजाब पुलिस के पूर्व कांस्टेबल रहे हैं और उनका नाम इस विस्फोट में प्रमुख आरोपी के रूप में सामने आया था।

राजोआना ने अपनी सजा को चुनौती दी और यह मामला अदालत में पहुंच गया। उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने बींता सिंह की हत्या में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस मामले में 2007 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, लेकिन अब उनकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजी गई है, जिससे उनकी सजा में कोई बदलाव हो सकता है।

राष्ट्रपति के पास दया याचिका का महत्व

भारत में राष्ट्रपति को दया याचिका के लिए अंतिम अधिकार प्राप्त है। दया याचिका पर विचार करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत है, जो राष्ट्रपति को किसी भी दोषी की सजा में रियायत देने या सजा माफ करने का अधिकार प्रदान करता है। इस अधिकार का उपयोग करते हुए, राष्ट्रपति बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा को माफ कर सकते हैं या उन्हें जीवन भर की सजा में बदल सकते हैं।

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते का समय दिया है, ताकि राष्ट्रपति कार्यालय इस याचिका पर विचार कर सके। यह याचिका न केवल राजोआना के जीवन की रक्षा कर सकती है, बल्कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था की सजा में माफी देने की प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण पहलू का हिस्सा भी है।

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सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई और भविष्य की दिशा

सुप्रीम कोर्ट की ताजा कार्रवाई इस बात को उजागर करती है कि राजोआना के मामले में फैसला जल्द लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह मामला अब दो दशकों से भी ज्यादा समय से लटका हुआ है। इस फैसले के आने के बाद, भारत में कानून और न्याय व्यवस्था के संदर्भ में यह एक अहम मोड़ हो सकता है।

अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी, और इसके बाद यह स्पष्ट हो सकेगा कि क्या बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा बरकरार रहती है, या उन्हें जीवनभर की सजा या माफी मिल सकती है। यह फैसला न केवल न्यायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पंजाब और पूरे देश की राजनीति पर भी असर डाल सकता है, क्योंकि इस मामले से जुड़े कई राजनीतिक पहलू भी हैं।

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