Rajasthan: वसुंधरा के कई करीबियों को झटका लगा, विरोधियों को मिली कैबिनेट में जगह
Rajasthan news Many close friends of Vasundhara were shocked
सत्य खबर/जयपुर: राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को शनिवार को दूसरा बड़ा झटका लगा। पहले बीजेपी की बड़ी जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद नहीं मिल सका और फिर शनिवार को भजनलाल कैबिनेट के विस्तार में भी वसुंधरा राजे के कई अहम समर्थकों को कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई.
राज्य में वसुंधरा के करीबी माने जाने वाले कुछ ही नेताओं को मंत्री बनने का मौका मिला है, जबकि उनके कई समर्थकों को निराशा हाथ लगी है. गौरतलब यह भी है कि शनिवार को कैबिनेट विस्तार के दौरान भी वसुंधरा राजे राजभवन में मौजूद नहीं थीं. इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में भी खूब चर्चा रही.
लंबे इंतजार के बाद विस्तार हुआ
लंबे इंतजार के बाद शनिवार को भजनलाल कैबिनेट का विस्तार हो गया. चुनाव नतीजे घोषित होने के 12 दिन बाद 15 दिसंबर को मुख्यमंत्री भजन लाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उन्हें अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने में 15 दिन लग गए. पार्टी आलाकमान की मंजूरी के बाद शनिवार को भजनलाल कैबिनेट में 22 मंत्रियों ने शपथ ली. इनमें से 12 ने कैबिनेट, पांच ने राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पांच ने राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली। इस बार 17 नए चेहरों को मंत्री बनने का मौका मिला है.
कैबिनेट विस्तार के दौरान सबकी नजरें इस बात पर थीं कि वसुंधरा के कितने समर्थक मंत्री बनने में सफल होंगे.
केवल वसुंधरा खेमे से माने जाने वाले ओटाराम देवासी को मंत्री बनने का मौका मिला है. गजेंद्र सिंह खींवसर को भी मंत्री बनाया गया है लेकिन अब उन्होंने खुद को वसुंधरा खेमे से अलग कर लिया है. इससे साफ हो गया है कि राजस्थान की राजनीति में अब वसुंधरा की कोई खास भूमिका नहीं रहेगी. आने वाले दिनों में बीजेपी आलाकमान वसुंधरा को लोकसभा चुनाव लड़ाकर केंद्रीय राजनीति में सक्रिय कर सकता है.
वसुंधरा के कट्टर विरोधियों को मंत्री बनाया गया
राज्य में नियुक्त अन्य मंत्रियों में से कोई भी वसुंधरा की टीम का सदस्य नहीं है. भजनलाल शर्मा की कैबिनेट में 16 नए चेहरों को मंत्री बनने का मौका मिला है जबकि कुछ पुराने अनुभवी नेताओं को भी मंत्री बनाया गया है. वसुंधरा के ज्यादातर समर्थकों के मंत्री नहीं बन पाने के कारण माना जा रहा है कि कैबिनेट विस्तार के जरिए वसुंधरा को कड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है.
एक और गौर करने वाली बात यह है कि जहां एक तरफ वसुंधरा के ज्यादातर समर्थकों को निराशा हाथ लगी है, वहीं दूसरी तरफ उनके कुछ कट्टर विरोधियों को भी कैबिनेट में शामिल किया गया है. वसुंधरा राजे के कट्टर विरोधी माने जाने वाले किरोड़ी लाल मीणा शपथ लेने वाले पहले मंत्री हैं. वसुंधरा के एक और बड़े विरोधी मदन दिलावर को भी कैबिनेट में जगह मिली है.
वसुंधरा के कई करीबियों को झटका लगा
वसुंधरा के करीबी माने जाने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ.जसवंत यादव और श्रीचंद कृपलानी को कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई है. वसुंधरा समर्थक कालीचरण सराफ भी मंत्री नहीं बन सके. वसुंधरा राजे के कट्टर समर्थक माने जाने वाले पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी के पोते को भी मंत्री नहीं बनाया गया है, जबकि उन्होंने पूर्व कैबिनेट मंत्री भंवर सिंह भाटी को चुनाव में हराया है. वसुंधरा खेमे से आने वाले पूर्व मंत्री दिगंबर सिंह के बेटे शैलेश सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के बेटे जगत सिंह भी कैबिनेट में जगह पाने में नाकाम रहे हैं, जबकि दोनों का संबंध मुख्यमंत्री के गृह जिले भरतपुर से है .
इस बार शैलेश सिंह ने डींग-कुम्हेर विधानसभा सीट से महाराज विश्वेंद्र सिंह को हराया है. भरतपुर से जवाहर सिंह बेढम को मंत्री बनाया गया है, जबकि वसुंधरा समर्थकों को झटका लगा है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार वसुंधरा खेमे के प्रभाव को कम करने के लिए कैबिनेट में नए चेहरों को ज्यादा मौका दिया गया है. इसके जरिए पार्टी आलाकमान ने यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में गुटबाजी करने वालों को कुछ हासिल नहीं होने वाला है.