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Supreme Court से ईशा फाउंडेशन को राहत, हाई कोर्ट के पुलिस जांच आदेश पर रोक

ईशा फाउंडेशन के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव को Supreme Court से बड़ी राहत मिली है। गुरुवार को Supreme Court ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को ईशा फाउंडेशन से संबंधित आपराधिक मामलों की जांच के आदेश दिए थे। इस आदेश के खिलाफ ईशा फाउंडेशन ने Supreme Court में याचिका दायर की थी, जिसके बाद Supreme Court ने यह रोक लगाई।

Supreme Court ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के पालन पर लगाई रोक

Supreme Court ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश के पालन पर भी रोक लगा दी है, जिसमें पुलिस को ईशा फाउंडेशन के आश्रम से जुड़े एक मामले की जांच करने को कहा गया था। इस आदेश के अनुसार, पुलिस को ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी मामलों की जानकारी इकट्ठा कर कोर्ट में पेश करने को कहा गया था। लेकिन अब Supreme Court के इस निर्देश के बाद तमिलनाडु पुलिस फिलहाल इस मामले में कोई भी कार्रवाई नहीं कर पाएगी।

Supreme Court का आदेश

Supreme Court के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने गुरुवार को यह आदेश जारी किया। इस पीठ में जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला भी शामिल थे। कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि पुलिस हाई कोर्ट के आदेश के पालन में कोई कदम नहीं उठाएगी और मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार स्थिति की रिपोर्ट Supreme Court में पेश करेगी।

ईशा फाउंडेशन की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील

ईशा फाउंडेशन की ओर से Supreme Court में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि लगभग 150 पुलिसकर्मियों ने फाउंडेशन के आश्रम में छापा मारा और जांच की। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि इस तरह की जांच और छापेमारी से फाउंडेशन के कार्यों और गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

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हफ्ते की शुरुआत में होगी अगली सुनवाई

Supreme Court ने इस मामले की सुनवाई के दौरान उन महिलाओं से भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की, जो ईशा फाउंडेशन के आश्रम में रह रही थीं। इन महिलाओं ने कोर्ट को बताया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और किसी तरह की जबरदस्ती का सामना नहीं कर रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बुधवार रात पुलिस ने आश्रम से अपनी मौजूदगी हटा ली थी। इस मामले की अगली सुनवाई Supreme Court में 14 अक्टूबर से शुरू होने वाले हफ्ते में होगी।

मद्रास हाई कोर्ट का आदेश

यह मामला तब सामने आया जब 30 सितंबर को मद्रास हाई कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका पर अंतरिम आदेश जारी किया। यह याचिका तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एस. कामराज द्वारा दायर की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि ईशा फाउंडेशन के आश्रम में कुछ लोगों को अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा गया है।

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका वह याचिका होती है, जिसे किसी व्यक्ति की अवैध हिरासत या लापता व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने का निर्देश देने के लिए दाखिल किया जाता है। इस याचिका के आधार पर ही मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और पुलिस को फाउंडेशन से जुड़े आपराधिक मामलों की जानकारी इकट्ठा करने और कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया था।

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ईशा फाउंडेशन का पक्ष

ईशा फाउंडेशन का कहना है कि उसके आश्रम में सभी लोग अपनी मर्जी से रहते हैं और आश्रम में किसी भी तरह की अवैध गतिविधि नहीं होती है। फाउंडेशन ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए Supreme Court का रुख किया और इसे फाउंडेशन के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई बताया।

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