सत्य खबर, नई दिल्ली । Sultan Baz Bahadur Khan and Roopmati
मुगलों के इतिहास में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर खान और रूपमती की कहानी भी दर्ज हुई. रूपमती अपनी सुरीली आवाज और सुंदरता के लिए भी जानी गईं. कहते हैं जब वो गाती थीं तो हर तरफ खामोशी छा जाती थी. लोग उनकी आवाज में खो जाते थे. उनका जन्म मध्य प्रदेश के सांरगपुर जिले के तिगंजपुर गांव में हुआ. पिता खेती-किसानी करके घर चलाते थे.
एक दिन मालवा के महाराजा बाज बहादुर खान अपने काफिले के साथ उनके गांव से गुजर रहे थे. इस दौरान रूपमती गाना गा रही थीं. बाज़ बहादुर भी संगीत में पारंगत रहे हैं और मुगलों के इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने उन्हें ‘अद्वितीय गायक’ बताया है. रूपमती के स्वर उनके कानों में पड़ते ही वो वहीं रुक गए. जिधर से उनकी आवाज आ रही थी, उसी तरफ बढ़ते चले गए. जब उनकी नजर रूपमती पर पड़ी तो देखते ही रह गए.
पहली नजर में दिल हार बैठे
बाज बहादुर पहली ही नजर में रूपमती से दिल हार बैठे. उन्होंने अपने प्यार का इजहार किया और शादी का प्रस्ताव रखा. रूपमती को प्यार में सच्चाई में नजर आई और शादी के लिए हामी भर दी. लेखिका मालती रामचंद्रन के मुताबिक, जब उन्होंने रूपमती को महल चलने को कहा तो उन्होंने एक शर्त रखी. शर्त थी कि वो रोजाना नर्मदी नदी के दर्शन करेंगी.
बाज बहादुर ने वादा पूरा किया और महल में दो गुंबदों वाला पवेलियन बनाया जहां ये रूपमती नदी को देखा करती थीं. दोनों की इस कहानी का जिक्र अहमद अल उमरी की 1599 में लिखी गई एक किताब में किया गया है. एलएम करम्प ने उसी किताब का 1926 में ‘द लेडी ऑफ द लोटस: रूपमती, मांडू की मलिका: वफ़ादारी की एक अजीबोग़रीब कहानी’ नाम से अनुवाद किया. करम्प लिखते हैं, रूपमती को संगीत और कवियत्री के तौर पर जाना गया. उनका सम्बंध रीति काव्य की धारा से था.
बाज बहादुर की सल्तनत का दायरा बढ़ा
1555 में मुस्लिम और हिंदू रस्मों के अनुसार दोनों की शादी हुई. दोनों एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे. बाज़ बहादुर रूपमती से इतना प्यार करते थे कि धीरे-धीरे राजपाट से दूरी बना ली थी. यह वो समय था जब शेरशाह सूरी का बेटा सलीम शाह सूरी तेजी से अपना साम्राज्य आगे बढ़ाने के लिए तैयारी में जुटा था. सलीम सूरी के ताकतवर शासक दौलत खान ने बाज बहादुर पर हमला करना चाहा, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया.
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बाज बहादुर ने दौलत खान का कत्ल करके उसका सिर सारंगपुर के दरवाजे पर लटका दिया और बाज बहादुर के जिन इलाकों पर उसने कब्जा कर लिया था उसे वापस हासिल किया. इलाकों को वापस पाने के बाद बाज बहादुर वापस संगीत औ भोगविलास में खो गए. यहीं से बिखराव की शुरुआत हुई. साम्राज्य के ओहदेदार लोग जनता पर जुल्म करने लगे. इसकी जानकारी मुगल बादशाह अकबर को मिली.
अकबर ने भेजी फौज
मार्च 1570 में अकबर ने माहम अंगा के बेटे अधम ख़ान को मालवा के लिए रवाना किया. फौज सारंगपुर पहुंची और दोनों के बीच जंग हुई. बाज बहादुर अधम खान का मुकाबला नहीं कर पाए और नर्मदा और ताप्ती नदी को पार करके खानदेश निकल गए हैं. जो अब महाराष्ट्र में है.
अधम खान ने बाज बहादुर की सल्तनत पर कब्जा कर लिया. इसकी गिनती उस दौर की समृद्ध सल्तनत में की जाती थी. बेइंतहा धन दौलत पाकर अधम खान ने उसका कुछ हिस्सा अकबर को भेजा और कुछ करीबी शासकों में बांट दिया. इस दौरान उसे रूपमती की खूबसूरती और खूबियों की भनक लगी. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, उसने रूपमती को पैगाम भेजा. रूपमती ने जवाब में लिखा कि “जाओ, लुटे पिटे घरवालों को न सताओ. बाज़ बहादुर गया, सब बातें गईं. अब इस काम से दिल टूट गया.”
…और हमेशा के लिए सो गईं रूपमती
अधम खान ने बार-बार अपने लोगों को भेजकर रूपमती को बुलाने की कोशिश. रूपमती यह समझ गई थीं कि मुगलों से छुटकारा पाना मुश्किल है. एक दिन सुबह-सुबह वो तैयार हुईं. फूलों की माला पहनी. इत्र लगाया और लेट गईं. अधम खान ने सैनिक भेजकर रूपमती को लाने के लिए भेजा था, लेकिन रूपमती जहर खाकर हमेशाा के लिए सो गईं थीं. इस खबर से अधम खान को गहरा झटका लगा और रूपमती को सारंगपुर में ही सुपुर्द-ए-खाक किया गया.
जब इस पूरे घटना क्रम की भनक अकबर को लगी तो वो अधम खान से नाराज हुए. बाद में बाज बहादुर ने मुगल बादशाह को कबूल किया और दरबार में काम करने लगे. जब उनकी मौत हई तो उन्हें भी रूपमती की कब्र के पास ही दफन किया गया. Sultan Baz Bahadur Khan and Roopmati
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