Swachh Bharat Mission: कचरे के पहाड़ न हटे, न शहर हुए साफ; कई राज्यों में सिर्फ नाममात्र का हुआ काम
Swachh Bharat Mission: स्वच्छ भारत मिशन, जो 2 अक्टूबर 2014 को प्रारंभ हुआ था, का उद्देश्य भारत के सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को स्वच्छ और कचरा-मुक्त बनाना था। यह एक महत्वाकांक्षी योजना थी, जिसका लक्ष्य था कि देश के सभी कोनों से कूड़ा-कचरा हटाकर एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण प्रदान किया जा सके। इस योजना के तहत कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएँ प्रारंभ की गईं, जिनमें से एक प्रमुख थी शहरों में कूड़े के पहाड़ों को समाप्त करना। इसके लिए केंद्र सरकार ने 3000 करोड़ रुपये से अधिक की योजना बनाई थी, और राज्यों से अपेक्षा की थी कि वे इस काम में बराबर सहयोग दें। लेकिन कई राज्यों की ढिलाई के कारण यह योजना धीमी गति का शिकार हो गई है।
कचरे के पहाड़ अभी भी बने हुए हैं एक चुनौती
स्वच्छ भारत मिशन का एक मुख्य उद्देश्य शहरों में वर्षों से जमा कूड़े के पहाड़ों को समाप्त करना था। लेकिन इन कचरे के ढेरों का अधिकांश भाग पहाड़ों का रूप ले चुका है। 1 अक्टूबर 2021 को स्वच्छ भारत मिशन 2.0 की शुरुआत के साथ, यह लक्ष्य निर्धारित किया गया था कि इन कचरे के पहाड़ों को समाप्त कर दिया जाएगा। साथ ही भविष्य में ऐसे हालात दोबारा न बनने दिए जाएं, इसके लिए कदम उठाए जाएंगे।
सरकार का लक्ष्य था कि कचरे के मौजूदा ढेरों को हटाकर उन स्थानों को हरित क्षेत्रों के रूप में विकसित किया जाएगा, ताकि वहां पर्यावरण को फिर से जीवंत किया जा सके। हालांकि, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अब तक केवल 15 प्रतिशत क्षेत्रों की सफाई की गई है, जबकि कुल कचरे का लगभग 35 प्रतिशत ही निष्पादित किया गया है।
ठोस कचरा निपटान की सुविधाओं का अभाव
देशभर में 2424 कचरा डंपिंग साइट्स हैं, जहां एक हजार टन से अधिक ठोस कचरा इकट्ठा होता है। इनमें से केवल 470 स्थानों की पूरी तरह से सफाई की जा चुकी है, जबकि 730 डंपिंग साइट्स को अब तक हाथ भी नहीं लगाया गया है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि कई शहरों में ठोस कचरे के निपटान की कोई उचित सुविधा नहीं है। इन शहरों के लिए सफाई का मतलब है घरों से कचरा इकट्ठा करके उसे शहर के बाहर कहीं फेंक देना। परंतु कई बार ये डंपिंग साइट्स अब शहरों के भीतर ही आ गई हैं, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
देश में प्रतिदिन उत्पन्न होता है डेढ़ लाख टन कचरा
मंत्रालय का अनुमान है कि कचरे के इन पहाड़ों में लगभग 15,000 एकड़ जमीन फंसी हुई है, जिसमें कुल 16 करोड़ टन कचरा जमा हो चुका है जिसे निपटाया जाना है। 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रतिदिन लगभग 1.5 लाख टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन शहरी विकास विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़ा वास्तविकता में तीन गुना अधिक है, यानी प्रतिदिन लगभग 5 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से एक तिहाई से भी कम कचरे का सही तरीके से निपटान हो पाता है।
केवल कुछ राज्यों में हो रहा है प्रभावी कार्य
गुजरात और तमिलनाडु को छोड़कर, अन्य कोई भी राज्य इस योजना पर तेजी से कार्य करने की स्थिति में नहीं है। इन दोनों राज्यों ने तीन-चौथाई लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है और यह योजना की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और पंजाब जैसे राज्यों की स्थिति एक जैसी है, जहां नाम मात्र का ही काम हो पाया है।
पश्चिम बंगाल में 143 लाख टन कचरा जमा
पश्चिम बंगाल में 143 लाख टन कचरा जमा है, जिसमें से केवल 9 लाख टन ही तीन साल में निपटाया जा सका है। कर्नाटक की स्थिति भी समान है, जिसने कचरे के पहाड़ों को छूने तक की कोशिश नहीं की है। दिल्ली की स्थिति भी बेहतर नहीं है, लेकिन गुजरात जैसे राज्य ने तीन साल में इतनी ही मात्रा में कचरे का निपटान कर दिखाया है, जो अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणा होनी चाहिए।
धीमी गति के कारण
स्वच्छ भारत मिशन के धीमे कार्यान्वयन के पीछे कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है राज्यों की उदासीनता और योजनाओं के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी। कई राज्य सरकारें इस योजना को प्राथमिकता नहीं दे पा रही हैं, जिससे कचरा प्रबंधन की योजनाएँ अधूरी रह जाती हैं। इसके अलावा, ठोस कचरे के निपटान के लिए आवश्यक अवसंरचनात्मक विकास भी धीमी गति से हो रहा है। कई जगहों पर डंपिंग साइट्स पर कचरा निपटान की मशीनें उपलब्ध नहीं हैं, और जहां उपलब्ध हैं, वे भी पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर रही हैं।
आगे का रास्ता
स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्यों को अधिक तेजी से कार्य करना होगा और इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है। कचरा निपटान के लिए तकनीकी और वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता है, और इसके लिए विभिन्न स्रोतों से धनराशि जुटाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, नागरिकों को भी इस योजना का हिस्सा बनाना आवश्यक है, क्योंकि यह योजना केवल सरकार के प्रयासों से पूरी नहीं हो सकती।
कचरे का प्रबंधन केवल एक सरकारी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने शहर को स्वच्छ रखने में योगदान दे। इसके लिए जागरूकता अभियानों की भी आवश्यकता है, जिससे लोग कचरे के प्रबंधन और स्वच्छता के महत्व को समझ सकें। कचरे को कम करने और उसका पुनर्नवीनीकरण करने की दिशा में भी लोगों को जागरूक करना होगा, ताकि स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सके।