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Telangana HC order: विधानसभा अध्यक्ष को राजनीतिक प्रतिबंधों से पार पाकर निर्णय लेना होगा

Telangana HC order: तेलंगाना हाई कोर्ट ने हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें कहा गया है कि यदि विधानसभा अध्यक्ष राजनीतिक बाधाओं को पार नहीं कर पाते हैं, तो अदालत उन्हें समय सीमा देने पर मजबूर होगी। यह निर्णय विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर उठते प्रश्नों और उनके द्वारा निलंबन याचिकाओं के मामलों में की गई देरी पर आधारित है। अक्सर विधानसभा अध्यक्ष पर पक्षपात और राजनीतिक दखलंदाजी के आरोप लगाए जाते हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि राजनीतिक दलों के प्रभाव के कारण अध्यक्ष अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन नहीं कर पा रहे हैं।

अदालत के आदेश का सार

तेलंगाना हाई कोर्ट ने Assembly Speaker को निर्देश दिया है कि वह विधायक दानम नागेंद्र के खिलाफ लंबित निलंबन याचिका की सुनवाई करें और इसे चार सप्ताह के भीतर निपटाएँ। नागेंद्र के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने भारत राष्ट्र समिति (BRS) से चुनाव लड़ा और बाद में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव में भाग लिया बिना BRS से इस्तीफा दिए। इससे उनके सदस्यता पर सवाल उठते हैं, और BRS ने इस संबंध में अध्यक्ष के पास निलंबन याचिका दायर की है, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

कोर्ट का आदेश और समयसीमा

कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि चार सप्ताह के भीतर कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो वह स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले पर आदेश पारित करेगी। जस्टिस बी. विजयसेन रेड्डी ने कहा कि इस मामले में अप्रैल और जुलाई में निलंबन की याचिकाएँ दायर की गई थीं, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं आया है, जिससे याचिकाकर्ता को राहत मिलनी चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ

तेलंगाना हाई कोर्ट का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक निर्णय पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि अध्यक्ष को निश्चित समय के भीतर निलंबन याचिका का निपटारा करना चाहिए। इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि अब यह विचार करने का समय आ गया है कि क्या किसी सदस्य के निलंबन की याचिका का निर्णय अध्यक्ष के पास रहना चाहिए या नहीं, क्योंकि अध्यक्ष किसी न किसी पार्टी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित होते हैं।

राजनीतिक दबाव और तंत्र

अधिवक्ता जनरल ने कोर्ट में यह तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का पालन नहीं किया जा रहा है, लेकिन हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि तकनीकी आधारों पर या जल्दबाज़ी में याचिका को खारिज करना उचित नहीं है। यदि अधिवक्ता जनरल द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को स्वीकार किया गया, तो इससे ऐसा स्थिति बन सकती है जिसमें पार्टी के पास कोई उपाय नहीं बचेगा यदि अध्यक्ष निर्णय लेने से इनकार कर दे।

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न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता

इस प्रकार के मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता इसलिए महसूस की जाती है ताकि लोकतंत्र की सही तरीके से कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके। यदि राजनीतिक दबाव के कारण अध्यक्ष निर्णय नहीं ले पा रहे हैं, तो इससे राजनीतिक व्यवस्था में विश्वास कम होता है।

उदाहरण और परिदृश्य

झारखंड के उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि कैसे विधानसभा अध्यक्ष ने लगभग पांच वर्षों तक एक मामले को लंबित रखा, जो लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। बिहार और महाराष्ट्र में भी इसी प्रकार के मामले अदालतों में लंबित हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या अध्यक्ष को इस प्रकार के मामलों के निपटारे की स्वतंत्रता होनी चाहिए या इसे किसी स्वतंत्र तंत्र को सौंपा जाना चाहिए।

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