प्रधानमंत्री रहते हुए कई बार हुई थी Jawaharlal Nehru की हत्या की कोशिश, जानें कैसे बची थी जान
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित Jawaharlal Nehru का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल कई इतिहासिक घटनाओं और संघर्षों से भरा हुआ था। 15 अगस्त 1947 को जब देश को स्वतंत्रता मिली, तब नेहरू ने अपनी नेतृत्व क्षमता से भारत को एक नई दिशा देने का प्रयास किया। हालांकि, उनकी कार्यशैली और विचारधारा से न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई लोगों को आपत्ति थी, जिसके चलते उनके ऊपर कई बार हमले भी हुए। इन हमलों के बावजूद, नेहरू हर बार बच गए और अपनी राजनीतिक यात्रा को जारी रखा। आइए जानते हैं, कैसे उनके ऊपर कई बार हुई हत्या की कोशिशें नाकाम हुईं और उनकी सुरक्षा में क्या खास इंतजाम किए गए थे।
पहली हत्या की कोशिश: माउंट आबू का हादसा
नेहरू की हत्या की पहली बड़ी कोशिश माउंट आबू में हुई थी। यह घटना 1950 के दशक की शुरुआत में घटी, जब कुछ असंतुष्ट तत्वों ने प्रधानमंत्री के काफिले पर हमला करने की योजना बनाई थी। हालांकि, उनके सुरक्षा काफिले की तत्परता और मुस्तैदी के कारण यह हमला विफल हो गया। सुरक्षाबलों ने समय रहते हमलावरों को पकड़ लिया और इस हमले को नाकाम कर दिया। इस घटना ने नेहरू की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिए और उनके सुरक्षा इंतजामों को और कड़ा किया गया।
पाकिस्तान यात्रा के दौरान हमले का प्रयास
1950 के दशक में, पंडित नेहरू ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने के लिए पाकिस्तान की यात्रा की थी। यह यात्रा दोनों देशों के बीच शांति की दिशा में एक अहम कदम थी। हालांकि, इस यात्रा के दौरान कुछ कट्टरपंथियों ने प्रधानमंत्री पर हमला करने की साजिश रची। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता और प्रधानमंत्री की सूझबूझ ने हमलावरों के प्रयास को नाकाम कर दिया। इस घटना ने नेहरू की सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए प्रेरित किया।
धार्मिक उन्मादियों से खतरा
नेहरू की जान के लिए खतरा केवल राजनीतिक विरोधियों से नहीं, बल्कि धार्मिक उन्मादियों से भी था। नेहरू ने हमेशा धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाई और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश की। यही कारण था कि कट्टरपंथी तत्वों ने कई बार उनकी हत्या की साजिशें रचीं। हालांकि, इन साजिशों को भी समय रहते नाकाम कर दिया गया और नेहरू की सुरक्षा में कोई कमी नहीं आई।
संसद में बम विस्फोट का मामला
1950 के दशक में एक और बड़ी घटना सामने आई, जब कुछ असामाजिक तत्वों ने भारतीय संसद भवन में बम विस्फोट करने की योजना बनाई। इनका मकसद था पंडित नेहरू को निशाना बनाना। यह साजिश भी सुरक्षाबलों की तत्परता और चुस्ती से विफल हो गई। संसद भवन की सुरक्षा को तत्परता से बढ़ाया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को टाला जा सके।
नेहरू की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
इन घटनाओं के बाद पंडित नेहरू की सुरक्षा के इंतजाम और भी कड़े किए गए। उनके पास एक विशेष सुरक्षा दल था, जो हमेशा उनके साथ रहता था। इसके अलावा, नेहरू को सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने से पहले सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता था। उनके साथ चलने वाले सुरक्षाकर्मी हमेशा उनकी सुरक्षा की स्थिति का आंकलन करते थे और किसी भी खतरे से निपटने के लिए तैयार रहते थे। इसके बावजूद, पंडित नेहरू अपनी सादगी और जनता से जुड़ाव को प्राथमिकता देते थे, और कभी भी अपनी सुरक्षा के लिए अत्यधिक सतर्कता नहीं दिखाते थे।
सुरक्षा पर सवाल: जनता से जुड़ाव की चाह
नेहरू का व्यक्तित्व हमेशा जनता के बीच सहज था। वे कभी भी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित नहीं रहते थे और सार्वजनिक स्थलों पर आम जनता से मिलने के लिए बिना किसी भारी सुरक्षा घेरे के जाते थे। उनकी यह सादगी और जनसंपर्क की शैली कई बार उनके लिए खतरनाक साबित हुई। वे हमेशा मानते थे कि उन्हें अपनी जनता के बीच रहकर उनका विश्वास अर्जित करना चाहिए, न कि सुरक्षा के घेरे में। इसी वजह से, उन पर हमले की कोशिशें हुईं, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की तत्परता और उनकी सूझबूझ ने उन्हें बचा लिया।
पंडित नेहरू के कार्यकाल के दौरान देश ने न केवल स्वतंत्रता प्राप्त की, बल्कि कई कठिनाइयों का भी सामना किया। उनके ऊपर कई बार हमले हुए, लेकिन उन्होंने कभी अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटे। उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम और उनकी सूझबूझ ने हर बार उन्हें बचाया। उनका जीवन यह बताता है कि एक नेता को न केवल अपनी सुरक्षा, बल्कि देश की जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए। पंडित नेहरू का यह कर्तव्य और संघर्ष उन्हें आज भी एक महान नेता के रूप में याद दिलाता है, जिन्होंने भारत को एक मजबूत और विकसित राष्ट्र बनाने में अपनी पूरी शक्ति और निष्ठा लगाई।
नेहरू की सुरक्षा पर जो ध्यान दिया गया, वह आज भी हमें यह सिखाता है कि एक नेता की सुरक्षा केवल उनके जीवन की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र की समृद्धि और जनता के विश्वास की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है।