सत्यखबर
फेसबुक बीते कुछ दिनों से लगातार चर्चा में है। कहने को वो एक सोशल प्लेटफॉर्म है, लेकिन इन दिनों दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रोल हो रहा है। चर्चा तो इस बात की भी है कि फेसबुक जल्द ही नए नाम और नए अवतार में आने वाला है। इस प्लेटफॉर्म को बेहतर बनाने के लिए उसकी रिसर्च टीम लगातार काम कर रही है। 2019 में कंपनी के कुछ रिसर्चर ने सोशल नेटवर्क फंडामेंटल फीचर्स को लेकर रिसर्च शुरू की थी। इनमें से एक उसका लाइक बटन भी है। कंपनी के डॉक्युमेंट्स के मुताबिक, रिसर्चर ने जांच करते हुए कहा कि अगर फेसबुक अलग-अलग थम्स-अप आइकन और इंस्टाग्राम से इमोजी रिएक्शन हटा देता है, तो लोग क्या करेंगे? इस पर उन्होंने पाया कि कभी-कभी इन बटन ने इंस्टाग्राम के सबसे कम उम्र के यूजर्स को ‘तनाव और चिंता’ में डाल दिया। खासकर जब उनके पोस्ट को दोस्तों से जरूरी लाइक्स नहीं मिले। उन्होंने ये भी देखा कि जब लाइक बटन को छिपा दिया गया, तब यूजर्स पोस्ट और ऐड को कम इंटरैक्ट करते थे।
डॉक्युमेंट्स से पता चलता है कि फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग और दूसरे मैनेजर्स ने इंस्टाग्राम यूजर्स के लिए लाइक बटन छिपाने पर चर्चा की। आखिर में इंस्टाग्राम के आसपास एक पॉजिटिव प्रेस नरेटिव को तैयार करके टेस्टिंग शुरू की गई।लाइक बटन पर रिसर्च इस बात का उदाहरण था कि कैसे फेसबुक ने सोशल नेटवर्किंग की आधारभूत विशेषताओं पर सवाल उठाया है। गलत सूचना, प्राइवेसी और हेट स्पीच को लेकर कंपनी को संकट का सामना करना पड़ा है। लाइक बटन के साथ फेसबुक ने अपने शेयर बटन पर भी रिसर्च किया है। जिससे यूजर्स दूसरे लोगों द्वारा पोस्ट किए गए कंटेंट को तुरंत शेयर कर सकते हैं। इससे ये पता चलता है कि 3.5 बिलियन लोग ऑनलाइन कैसे रिएक्ट कर रहे हैं। हजारों पन्नों के इंटर्नल डॉक्युमेंट्स में की गई रिसर्च में इस बात को हाईलाइट किया गया है कि कंपनी ने जो बनाया है, उससे ही बार-बार जूझना पड़ा है।
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रिसर्च के दौरान पता चला कि इस प्लेटफॉर्म से पॉजिटिविटी काफी दूर थी। बार-बार लोगों ने इस प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल किया। लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नफरत फैलाने वाले कंटेंट को लगातार बढ़ाया है। 2019 में कुछ रिसर्चर ने कहा था कि फेसबुक ‘कोर प्रोडक्ट मशीन’ की तरह बन गया है, जिसने अपने प्लेटफॉर्म पर गलत सूचनाएं और हेट स्पीच को बढ़ने दिया है। उन्होंने पाया कि ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के तौर पर न्यूट्रल मशीन नहीं है।
रिसर्च डॉक्युमेंट्स में स्लाइड डेक, इंटर्नल डिस्कशन थ्रेड्स, चार्ट, मेमो और प्रेजेंटेशन शामिल हैं, लेकिन किसी में भी इस बात का जिक्र नहीं है कि रिजल्ट आने के बाद फेसबुक ने क्या कार्रवाई की। बीते कुछ सालों में कंपनी ने फेसबुक के कुछ फीचर्स में बदलाव किया है। इससे लोगों के लिए उन पोस्ट को छिपाना आसान हो गया है जिन्हें वे नहीं देखना चाहते हैं। फेसबुक एक ऐसे नेटवर्क को ऑपरेट करता है जहां सूचना तेजी से फैल सकती हैं। जहां यूजर्स अपने दोस्तों और फॉलोअर्स को लिंक कर सकते हैं। फेसबुक की वैल्यू 900 अरब डॉलर से ज्यादा आंकी गई है।फेसबुक को बीते साल छोड़ चुके इसके वाइस प्रेसिडेंट ब्रायन बोलैंड ने कहा कि एक कर्मचारी के तौर पर आप फेसबुक के अंदर खुलकर बातचीत कर सकते हैं, लोगों का ऐसा सोचना गलत है। परिवर्तन करना वास्तव में बहुत कठिन हो सकता है। फेसबुक की कर्मचारी फ्रांसेस हौगेन भी अब कंपनी को छोड़ चुकी हैं। उन्होंने द वॉल स्ट्रीट जर्नल को डॉक्युमेंट्स दिए थे जिसमें कंपनी को लेकर कई बड़े खुलासे किए थे। वे लगातार फेसबुक से जुड़े नए-नए खुलासे कर रही हैं।
हालांकि फेसबुक के स्पोक्सपर्सन एंडी स्टोन ने डॉक्युमेंट्स को झूठा बताते हुए पब्लिश होने वाले आर्टिकल की आलोचना की है। उन्होंने कहा- ये बात सच है कि हम बिजनेस करते हैं और प्रॉफिट कमाते हैं, लेकिन ऐसा मानना गलत है कि हम इसके लिए लोगों की सिक्योरिटी को ताक पर रख देते हैं। फेसबुक ने 13 अरब डॉलर का निवेश किया है। उसने लोगों को सुरक्षित रखने के लिए 40,000 से अधिक लोगों को काम पर रखा है।
जुकरबर्ग ने भी इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने कहा कि इन दावों में कोई सच्चाई नहीं है कि सोशल मीडिया की एक डिवीजन बच्चों को नुकसान पहुंचाती है और फायदे को सुरक्षा के मुकाबले में ज्यादा तवज्जो देती है। हम कभी भी ऐसे विज्ञापन अपने प्लेटफॉर्म पर नहीं लाना चाहते, जो नफरत फैलाने का काम करते हैं।
- मार्क जुकरबर्ग ने 17 साल पहले 2004 में फेसबुक की नींव रखी थी। तब वे हार्वर्ड के छात्र थे। शुरुआत में उन्होंने इससे कॉलेज कैम्पस के लोगों को जोड़ा। शुरुआत में इसका नाम द फेसबुक था। बाद में इसे फेसबुक का नाम दे दिया गया। 2006 में फेसबुक में कुछ नए फीचर्स को जोड़ा गया। इसमें न्यू फीड के साथ दोस्तों द्वारा पोस्ट किए गए फोटो, वीडियो और स्टेटस अपडेट अहम फीचर्स थे। 2009 में फेसबुक ने लाइक बटन को जोड़ा। ये छोटा सा थंब सोशल मीडिया नेटवर्क पर लोगों की उपस्थिति का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया।
- थंब बटन से फेसबुक को ये पता चला कि लोग कैसे अपने इमोशन को जाहिर कर रहे हैं। वे किन एक्टिविटी को पसंद कर रहे हैं। यूजर द्वारा लाइक बटन से ये भी पता चला कि वो कौन सी न्यूज, वीडियो, विज्ञापन ज्यादा देखना पसंद करते हैं और ज्यादा समय दे रहे हैं। इसके बाद कंपनी ने यूजर्स को वो कंटेंट ऑफर किया।
- फेसबुक ने ग्रुप फीचर भी जोड़ा। इसकी मदद से लोग प्राइवेट कम्युनिकेशन चैनल को जॉइन और उनके बारे में बात कर सकते हैं। इससे बिजनेस से जुड़ने और सेलिब्रिटी को फॉलो करने या उन्हें मैसेज करने की परमिशन भी मिलती है। कंपनी का एक और इनोवेशन शेयर बटन था। इससे लोग किसी भी कंटेंट जैसे फोटो, वीडियो, मैसेज, न्यूज फीड को अपनी वॉल पर शेयर कर सकते हैं।
- हालांकि रिसर्च डॉक्युमेंट के अनुसार इन सभी फीचर्स के साइड इफेक्ट्स भी हैं। कुछ लोग दूसरों से अपनी तुलना करने के लिए लाइक बटन का इस्तेमाल करने लगे। कई यूजर्स ने जानकारी को तेजी से फैलाने के लिए शेयर बटन का उपयोग किया। इसकी वजह से गलत जानकारी या कंटेंट सेकेंड्स में वायरल हो गया।
सामाजिक नेटवर्क और गलत सूचनाओं का अध्ययन करने वाले हार्वर्ड केनेडी शोरेंस्टीन सेंटर के एक सीनियर जेन लिट्विनेंको ने कहा कि अब फेसबुक खुद को इस तरह नहीं बदल सकता है कि वह एक हेल्दी सोशल नेटवर्क बन जाए, क्योंकि जब हम लाइक बटन, शेयर बटन, न्यूज फीड और उनके पावर के बारे में बात करते हैं, तो हम उस बुनियादी ढांचे के बारे में बात कर रहे हैं जिसके ऊपर नेटवर्क बनाया गया है। यानी, समस्या की जड़ बुनियादी ढांचा ही है।
टाइम मैगजीन भी जुकरबर्ग को निशाने पर ले चुकी है। मैगजीन ने कवर पर जुकरबर्ग का फोटो लगाकर ‘डिलीट फेसबुक’ के टेक्स्ट दिए थे। उसने आर्टिकल में फेसबुक की सिविल इंटीग्रिटी के बारे में विस्तार से बताया। इसमें लिखा कि सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं और नफरत फैलाने वाली पोस्ट के खिलाफ लड़ने वाली टीम के सभी मेंबर्स को अलग-थलग कर दिया गया। फेसबुक ने दिसंबर 2020 में इस टीम को हटा दिया था। इस वजह से फ्रांसेस हौगेन खुलकर सामने आईं। हौगेन ने ये भी कहा कि कंपनी ने अपने उस इंटर्नल सर्वे को भी छिपाया, जिसमें खुलासा हुआ था कि कैसे इंस्टाग्राम का एल्गोरिदम युवाओं के दिमाग पर निगेटिव असर डाल रहा है।
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