सत्यखबर, नई दिल्ली
अफगानिस्तान के मुद्दे पर 10 नवंबर को भारत दिल्ली में NSA लेवल की बैठक का आयोजन कर रहा है, जिसकी अध्यक्षता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल करेंगे । इस रीजनल डायलॉग में रूस, ईरान और सभी मध्य एशियाई देश हिस्सा लेने वाले हैं । अफगानिस्तान के मुद्दे पर होने वाली इस बैठक में कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के शीर्ष सुरक्षा अधिकारी भी शामिल होंगे । पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान को संवारने में भारत ने तीन अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। 2001 में तालिबान से मुक्त होने के बाद से भारत ने अफगानिस्तान में संसद भवन, स्पोर्ट्स स्टेडियम से लेकर पूरे देश में सड़कों और पुलों का निर्माण कराया और तालिबान भी नई दिल्ली के इस योगदान को मानता है । जी-20 समिट हो, ब्रिक्स या द्विपक्षीय बातचीत, अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत एक मुख्य भागीदार रहा है। ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के देलारम तक की सड़क भी महत्वपूर्ण परियोजनाओं में एक है । इस 218 किलोमीटर लंबी सड़क को पूरी तरह से भारत की मदद से बनाया जा रहा है, जो आने वाले दिनों में अफगानिस्तान को सीधे चाबहार बंदरगाह से जोड़ेगी । इसके अलावा भारत की मदद से कई हॉस्पिटल बनाए गए । कई पावर ट्रांसमिशन स्टेशन, स्माल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स चलाए भी जा रहे हैं ।
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इससे पहले ईरान ने 2018 और 2019 में इस तरह की बैठक का आयोजन किया था । दिल्ली में होने वाली बैठक उसी कड़ी का हिस्सा है, हालांकि इस बार बैठक में भारत के अलावा सात देश हिस्सा ले रहे हैं । भारत ने क्षेत्रीय सुरक्षा पर होने वाली इस महत्वपूर्ण बैठक के लिए पाकिस्तान और चीन को भी आमंत्रित किया था, लेकिन दोनों देशों ने इसमें हिस्सा लेने से इनकार कर दिया । चीन ने बैठक में हिस्सा नहीं लेने की वजह पहले से तय कार्यक्रमों को बताया है और कहा कि वह अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत के साथ बहुपक्षीय और द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत के लिए तैयार है ।नई दिल्ली में होने वाली बैठक में अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद आतंकवाद, कट्टरपंथ और ड्रग्स के बढ़ते खतरों से निपटने में व्यावहारिक सहयोग के लिए चर्चा हो सकती है । इसके अलावा अफगानिस्तान में ‘अनिश्चितता’ चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय रहने वाला है । साथ ही संकट से जूझ रहे अफगानिस्तान में मानवीय सहायता पहुंचाने को लेकर बातचीत की संभावना है ।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सूत्रों ने बताया कि बैठक में शामिल हो रहे 8 देशों के बीच अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद की सुरक्षा जटिलताओं पर चर्चा होगी । उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से लोगों की सीमा पार आवाजाही के साथ-साथ वहां अमेरिकी बलों द्वारा छोड़े गए सैन्य उपकरणों और हथियारों से उत्पन्न खतरे पर भी सुरक्षा अधिकारियों द्वारा विचार-विमर्श किए जाने की उम्मीद है । हालांकि इस बैठक में तालिबान को मान्यता दिए जाने को लेकर बातचीत नहीं होगी ।सूत्रों ने कहा कि वार्ता में शामिल हो रहे देशों में से किसी ने भी तालिबान को मान्यता नहीं दी है और अफगानिस्तान की स्थिति पर उन सभी की समान चिंताएं हैं । उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की कार्रवाइयों और इरादों के बीच विश्वसनीयता संबंधी अंतर है । विदेश मंत्रालय ने कहा सभी देशों का प्रतिनिधित्व उनके संबंधित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार या सुरक्षा परिषदों के सचिवों द्वारा किया जाएगा ।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “उच्चस्तरीय वार्ता में क्षेत्र में अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम से उत्पन्न सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की जाएगी । इसमें प्रासंगिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के उपायों पर विचार किया जाएगा और शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता को बढ़ावा देने में अफगानिस्तान के लोगों का समर्थन किया जाएगा । भारत के पारंपरिक रूप से अफगानिस्तान के लोगों के साथ घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं । नई दिल्ली ने अफगानिस्तान के समक्ष उत्पन्न सुरक्षा और मानवीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए एकीकृत अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया का आह्वान किया है । यह बैठक उस दिशा में एक कदम है.”
पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह भारत की मेजबानी में अफगानिस्तान पर होने वाली बैठक में शामिल नहीं होंगे, साथ ही उन्होंने अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने वाले देश के रूप में नई दिल्ली की भूमिका को खारिज किया था । इससे पहले ईरान में 2018 और 2019 में हुए बैठक में भी भारत की भागीदारी के चलते पाकिस्तान ने शामिल होने से इनकार कर दिया था ।अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने और मानवीय सहायता पहुंचाने को लेकर पाकिस्तान का दोहरापन पहले भी सामने आता रहा है । हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई थी कि भारत ने अफगानिस्तान को सड़क मार्ग से अनाज भेजने के लिए पिछले महीने पाकिस्तान से संपर्क किया था । हालांकि पाकिस्तान ने भारत के प्रस्ताव का अब तक कोई जवाब नहीं दिया है । अधिकारियों ने बताया था कि 50,000 मीट्रिक टन गेहूं पाकिस्तान के जरिए अफगानिस्तान पहुंचाने में 5,000 ट्रकों की जरूरत होगी ।
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