सत्य खबर, पानीपत। इनेलो के मंच पर वीरेंद्र सिंह का जाना, हरियाणा के सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक विश्लेषक अपने-अपने हिसाब से वीरेंद्र सिंह और चौटाला परिवार की इस नई दोस्ती को लेकर विश्लेषण कर रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि वीरेंद्र सिंह का चौधरी देवी लाल के जयंती समारोह में जाना बीरेंद्र सिंह की एक बड़ी राजनीतिक सोच है । कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उचाना में वीरेंद्र सिंह का सबसे बड़ा राजनीतिक दुश्मन दुष्यंत चौटाला है। भाजपा की टिकट होते हुए भी वीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को दुष्यंत चौटाला ने उचाना सीट से बुरी तरह से हराया। ऐसे में दुष्यंत चौटाला वीरेंद्र सिंह का आज के समय में सबसे बड़ा राजनीतिक दुश्मन है। बताया यह भी जा रहा है कि दुष्यंत चौटाला ने केंद्र में अमित शाह और मोदी से ऐसे रिश्ते बनाए की उसने वीरेंद्र सिंह की केंद्र में अहमियत ही खत्म कर दी। यही वजह है वीरेंद्र सिंह आजकल किसानों के बहाने भाजपा पर वार करते रहते हैं।
वहीं दूसरी ओर अभय चौटाला का राजनीति में अगर कोई सबसे बड़ा दुश्मन है तो वह दुष्यंत चौटाला है। ऐसे में वीरेंद्र सिंह और अभय चौटाला मिलकर दुष्यंत चौटाला का मुकाबला करना चाहते हैं। वैसे कहते हैं राजनीति में किसी की दोस्ती और दुश्मनी स्थाई नहीं होती मौका देख कर कभी भी पासा पलटा जा सकता है। अभय सिंह चौटाला और वीरेंद्र सिंह की शुरू हुई इस दोस्ती में भी कुछ ऐसा ही है। वैसे तो पहले से कहा जाता है कि चौधरी छोटूराम और चौधरी देवीलाल की कभी नहीं बनी। दोनों ही एक दूसरे के विरोधी रहे । दोनों परिवारों की इस दुश्मनी को वीरेंद्र सिंह और ओम प्रकाश चौटाला का परिवार भी लगातार आगे बढ़ाता रहा है।
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ओम प्रकाश चौटाला से लेकर दुष्यंत चौटाला तक वीरेंद्र सिंह को उनके ही क्षेत्र उचाना में बार-बार चुनौतियां देते रहे। लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी हैं। उचाना में वीरेंद्र सिंह के गढ़ पर दुष्यंत चौटाला का कब्जा है तो दूसरी तरफ ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अभय सिंह चौटाला के पास कोई विधानसभा सीट नहीं है। दोनों से विधानसभा की सभी सीटें छीनने वाला अकेला दुष्यंत चौटाला है, तो ऐसे में वीरेंद्र सिंह को अभय सिंह चौटाला का निमंत्रण मजबूरी वंस अच्छा लगा और दोनों एक मंच पर इक_ा हुए और इस मंच पर वीरेंद्र सिंह ने चौधरी देवीलाल की जमकर प्रशंसा भी की। चौधरी देवीलाल की जयंती के मौके पर पहुंचे वीरेंद्र सिंह द्वारा चौधरी देवी लाल अच्छे कर्मों का जनता के सामने गुणगान करना भले ही एक सामाजिक परंपरा का निर्वहन था लेकिन बातों ही बातों में वीरेंद्र सिंह ने किसान आंदोलन के बहाने बीजेपी को जो जमकर खरी-खोटी सुनाई है। उससे इतना तो तय है कि भाजपा में पहले ही उनको तवज्जो नहीं मिल रही थी। अब उनकी राजनीतिक मुसीबतें और बढऩा तय है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि वीरेंद्र सिंह का इनेलो के मंच पर जाकर हरी पगड़ी पहनना इनेलो के लिए तो फ ायदेमंद रहा लेकिन चौधरी वीरेंद्र सिंह ने बिना बात की मुसीबत मोल ले ली है। वैसे चौधरी वीरेंद्र सिंह राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। उनके मन में इस मौके से किस प्रकार का राजनीतिक फ ायदा उठाने की मनसा रही होगी। यह तो वही जानते हैं लेकिन सीधे तौर पर लोगों को यही लगा की वीरेंद्र सिंह ने अपना राजनीतिक नुकसान कर लिया है।
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